सातवां फेरा - इश्क़ का !!!
सातवां फेरा - इश्क़ का !!!
सुकृति अपने पिता जी के साथ इलाहाबाद (प्रयागराज) में रहती थी। खुद का बड़ा मकान था उनका, सुकृति ने जब से होश संभला तब से ग्राउंड फ्लोर पर खुद की फैमिली और पहली मंजिल पर एक किरायदार की फैमिली देखी। उस परिवार में था नितिन और उसके मम्मी-पापा ।
सुकृति अपने मम्मी-पापा के तलाक के फैसले के अनुसार, पिता जी के साथ रहती थी।
उसके पिता जी बहुत गुसैल और बेफ़िकार इंसान थे। फ़ैसले के अनुसार सुकृति को रख तो लिया था पर कभी उस पर ध्यान नहीं देते थे।
अगर कोई ध्यान देता था, तो वो था नितिन का परिवार। स्कूल जाते वक्त सुकृति की दो चोटी बनाने से लेकर, बड़े होने पर सुकृति को साड़ी पहनाने तक, सब सुकृति ने इसी फैमिली में सीखा।
वैसे नितिन के मम्मी-पापा यहाँ नितिन की पढ़ाई की वजह से शहर में रहते थे, बाकी गांव में उनकी अच्छी खासी जमीन थी तो, उसके मम्मी पापा महीने के लगभग 15 दिन गांव में ही रहते थे।
इधर सुकृति के पापा शाम को ऑफिस के बाद अपनी दूसरी बीवी के घर चले जाते हैं, मन होता तो रात को सोने आते घर में, नहीं मन होता तो नहीं भी आते।
इन सबके बीच बचे सुकृति और नितिन, जो लगभग महीने के 15 दिन अकेले इस बड़े से घर में रहते थे। एक दूसरे के पूरक ही थे दोनों। रात में सुकृति को डर लगता तो नितिन नीचे दूसरे रूम में लेटने आ जाता था। सुकृति को मार्केट से कुछ भी लाना होता था, तो नितिन साथ जाता था, यहाँ तक की सुकृति को कॉलेज में एडमिशन दिलाने तक वो गया था। इसी तरह साथ निभाते-निभाते वो दोनों इस मोड़ पर आ गए थे, जहां एक वक्त बाद दोनों ने एक दूसरे से कुछ भी नहीं छुपाया, उसमें से एक चीज़ थी 'प्यार', पर दोनों में से किसी ने शादी के बारे में नहीं सोचा था, न ही इस बात को गौर किया था।
खैर सुकृति का कॉलेज खत्म हुआ।
और, आज उसके पिताजी ने लड़के वालो को देखने के लिए एक मंदिर में बुलाया है। नितिन मन ही मन में मना रहा था कि, चाहे कैसे भी, ये रिश्ता कैंसिल हो जाए और उसे एक मौका मिले वो करने का, जो उसे पहले कर देना चाहिए था। वो सुकृति को किसी और की होते नहीं देखना चाहता था।
खैर सुकृति के कहने पर उसको मंदिर तक, बाइक पर ले गया क्योंकि सुकृति के पिता जी को कोई फिकर नहीं थी, वो तो बस जान छुड़ा रहे थे सुकृति की शादी करके। सीधा अपनी बीवी के घर से ही आ गए थे, वो भी दिए गए वक़्त पर।
वहां पहुँच कर पता चला की आज लड़के वालों के घर में कोई बीमार हो गया है। तो प्लान आगे के लिए शिफ्ट हो गया, ये सुनकर उसके पापा चले गए वापस अपनी बीवी के घर और नितिन को बोला सुकृति को घर ले जाए। आज भगवान ने नितिन की सुन ली।
दोनों ने सोचा आये ही है तो क्यों ना मंदिर के दर्शन कर ले, वो मंदिर के दरवाजे पर खड़े थे कि,
नितिन : आओ सुकु (प्यार से) आज सातवां फेरा पूरा करें। शायद भगवान भी यही चाहते हैं।
सुकृति : सातवां फेरा ? कैसे ? बताना तो ? क्या ही बोले जा रहे हो नितिन तुम ?
नितिन : हाँ ! सातवां फेरा।
पता है सुकृति पहला फेरा हमने जब लिया था, जब हम आँगन में पकड़म पकड़ाई खेल रहे थे, उस आम के पेड़ के न जाने कितने चक्कर
लगा डाले थे हम दोनों ने और आखिर में मैंने तुम्हें पकड़ ही लिए था। वो था हमारा 'पहला फेरा'।
जब तुम्हारे रूठ जाने पर मैं तुम्हें कॉलेज लेने गया था ये सोच कर, कि तुम देख कर खुश हो जाओगी, मान जाओगी।
पर देखो ना, तुम मुझे देखकर दूसरी गली में मुड़ गई थी और मैं तुम्हारे पीछे-पीछे तुम्हें मनाने। आखिर तुम मान ही गयी थी।
ये था 'दूसरा फेरा'।
वो जब किचन में रोटी बनाते समय तुम पर छिपकिली गिरी थी और मैं तुमसे चीनी लेने आया थ। तुम किचन से बेडरूम तक दौड़ गई थी
और मैं तुम्हारे पीछे-पीछे, वो था 'तीसरा फेरा'।
वैसा बता दूँ, वो छिपकिली रबर की थी और मैंने ही चुपके से गिरायी थी।
वो जब मूवी हॉल में हम दोनों सीट्स के लिए झगड़ रहे थे फिर आखिरकार फैसला हुआ कि इंटरवल के पहले तुम मेरी सीट पर और
मैं तुम्हारी , इंटरवल के बाद फिर अदला-बदली..वो जो अदला-बदली थी, वो प्यार की थी, रोमांस की थी, जिद की थी, वो था 'चौथा फेरा'।
वो जब पहली बार मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हें चूमने की लाख कोशिश कर रहा था और तुम नखरे करते हुए, मुझे नीचे से ऊपर तक
दौड़ा रही थी, नख़रे कर रही थी, आखिर में, जीत मैं ही गया था, फिर जब तुमने मुझे प्यार से गले लगा ही लिया था, वहां पूरा हुआ था 'पाँचवाँ
फेरा'।
वो जब तुम अचानक रात में बीमार हो गयी थी, और कोई घर में नहीं था, कोई साधन भी नहीं मिला था। मैं तुमको गोद में लेकर हॉस्पिटल
के चक्कर काट रहा था। वहां पूरा हुआ था 'छठा फेरा'।
आओ आज मंदिर के चक्कर लगा कर अपने 'सात फेरे' पूरे करते हैं, इतना तो करोगी न मेरे लिए।
मैं जनता हूं तुम अपने पिता जी के खिलाफ नहीं जाओगी पर अगर तुमने आज मेरे साथ ये सातवां फेरा ले लिया, तो यहाँ बैठे भगवान की कसम, मैं तुमको कहीं जाने नहीं दूंगा।
सुकृति को ज्यादा समय नहीं लगा कुछ भी सोचने में, आखिर जिसके साथ बचपन बीता है, जो एक बाप, भाई, माँ की तरह सुकृति के साथ हमेशा रहा है, उसको सुकृति कैसे जिंदगी भर के लिए अकेला छोड़ देती। जिसको हमेशा से वो प्यार करती आयी है, उसको अकेला तड़पता कैसे छोड़ दे, वो भी उस इंसान(पिता जी ) कि बातों के लिए, जिसने सुकृति का दुःख सुख तक नहीं पूछा कभी।
सुकृति ने आंखों के आंसू पोंछते हुए, नितिन को साड़ी के पल्लू संभलने का इशारा करते हुए बोला, इतनी देर क्यों लगाई पागल। मैं तो कब से 'हाँ' बोलने की प्रैक्टिस कर के बैठी हूं।
और फिर उनके इश्क़ का-सातवां फेरा पूरा हुआ।