Arunima Thakur

Abstract Inspirational

4.7  

Arunima Thakur

Abstract Inspirational

स्वतंत्रता का च्युंइगम

स्वतंत्रता का च्युंइगम

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आह ! सुबह उठते ही मेरी कराह निकल गई। रात को ठीक से सो भी नहीं पाई थी। यह महीने के कुछ दिन, आज की इक्कीसवीं सदी में भी नई नई दवाओं के होते हुए भी कितने दुखदाई होते हैं। बचपन से ही मुझे पहले दो दिन बहुत दुखता था। तब माँ कहती थी बस कुछ साल दर्द होगा, शादी के बाद नहीं होता है। शादी के बाद लोगों ने बोला एक बार बच्चे हो जाए, फिर दर्द नहीं होता। क्या कहें सब बेकार की बातें हैं। यह दर्द तो जीवन का एक हिस्सा है। बाकी, दर्द तो अपनी जगह है, पर मैं चाहती हूँ कि मेरे पति इस दर्द को समझे l पर नहीं बचपन से उन्हें संवेदनशील बनाया ही नहीं गया है। जो वह इस पक्ष को देख कर समझ सके। कितना भी दर्द हो घर के सारे काम तो अभी करने ही करने है। अरे भाई तीसों दिन काम करती हूँ सिर्फ़ एक दो दिन तुम हाथ बटाँ दो तो। पर नहीं !

 कभी-कभी सोचती हूँ पुराना जमाना कितना अच्छा था। आज स्त्री स्वतंत्रता, नारी सशक्तिकरण या प्रगतिवादी सोच ने हम महिलाओं पर दोगुनी तिगुनी जिम्मेदारियाँ डाल दी है। हम स्त्रियों को स्वतंत्रता का च्युंइगम पकड़ा दिया गया है, बिना स्वाद का बस चबाते रहों। पहले तो औरत का काम सिर्फ़ घर चलाना था। बाकी बाहर की सभी जिम्मेदारी पुरुषों की थी। पुरुषों से बराबरी करके महिलायों ने क्या पा लिया ? मासिक के समय में घर की महिलाएं एक जगह आराम से बैठे कुछ काम ना करें यह नियम भी महिलाओं के आराम के लिए ही था। पर वह भी महिलाओं की पता नहीं कौन सी सोच, कि क्यों ना करें ? क्यों न छुए ? क्यों न घूमें ? अरे सोचो तो महिलाओं को कम से कम पाँच से आठ दिन की स्वतंत्रता मिलती थी घर के काम से, जिम्मेदारियों से। खैर अभी यह सब सोच कर क्या फायदा चलो ज्यादा सोचने बैठी तो बच्चों को स्कूल के लिए देर हो जाएगी और पतिदेव का टिफिन भी रह जाएगा।

नहा धोकर काम पर लग गई। बच्चों को तैयार किया। स्कूल बस तक छोड़ा। पति को बेड टी (सुबह की चाय बिस्तर पर ) पकड़ाई। उसके बाद मोबाइल लेकर संदेश (मैसेज) देखते हुए मैं अपनी चाय पीने बैठ गई। संदेशों (मैसेजेस) पर सरसरी निगाह डाली। मुख्यत: सारे मैसेज गुड मॉर्निंग के थे। बाद में आराम से देखूँगी फिर जवाब दूँगी। यह क्या ? ननिहाल समूह पर इतने सारे मैसेज। क्या हो गया ? खोल कर देखा तो बड़े मामा के शांत होने की खबर थी। रात को दो बजे उनका देहांत हुआ था। हाथ की चाय हाथ में ही रह गई। आँखों से आँसू गिरने लगे। बड़े मामा, बचपन की सारी यादों के मुख्य बिंदु। मम्मी की मार -डाँट से बचाने वाले , सारी फरमाइशे चाहे वह मम्मी से ही क्यों न हो मामा के द्वारा ही पूरी होती। वैसे तो बीमार थे, पर चाह कर भी हम देखने नहीं जा पाए थे। घुट कर रह जाती। मकड़ी जैसा जीवन है, काम कुछ भी नहीं व्यस्तता दिनभर की। मैं यादों में डूब गई। 

होश तब आया जब पतिदेव जरा जोर से बोले, "मेरा नाश्ता कहाँ है ? टिफिन तैयार नहीं हुआ अभी तक"? हाथ में बिना पिए चाय का प्याला वही मेज पर रख मैं ससोईघर की ओर भागी। नसीब सब बना कर रखा था। फटाफट चाय चढ़ाई। पति को नाश्ता दिया, टिफिन लगाया, चाय दी। सामने मेज पर ही मेरा बिना पिया चाय का कप रखा था। पर पति ने नहीं पूछा क्या हुआ ? क्यों नहीं पिया ? चलो इन सब की तो मुझे आदत है। इसलिए मैं खुद से ही बोली, "बड़े मामा जी का देहांत हो गया"। 

 पति वैसे ही नाश्ता करते करते बोले, "ओह ! जाना चाहती हो"? 

मन भर आया जब बीमार थे तब तो इतनी बार बोलने पर भी ना तो अकेले जाने दिया ना ही साथ जाने का समय निकाल सकें। अब मरने पर क्या जाना ? मैं कुछ नहीं बोली। नाश्ता करके हाथ धोकर पति ऑफिस के लिए निकलने लगे तो टिफिन उठाते वक्त बोले, "देखो शाम को तैयार रहना। बच्चों का खाना बनाकर रख देना l

हमें मिस्टर दलवी की पार्टी में जाना है"। 

 मैंने कहा, "मेरा मन नहीं है"। 

"क्यों मन क्यों नहीं है ? तुम्हारे मामा जी के मरने से ज़माना तो नहीं थम जाएगा। क्या तुम खाना पीना छोड़ दोगी" ? 

गुस्सा तो बहुत आया पर मैं बोली कुछ नहीं। फिर धीरे से बोली , "मामा जी के कारण नहीं I आज मेरा पहला दिन है। मुझे दर्द बहुत है मैं सुविधाजनक महसूस नहीं कर रही हूँ"। 

"क्या यार ! यह तुम औरतों का हर महीने का रोना है। और इसके लिए तुम पार्टी में नहीं जाओगी ? पहले से मालूम था तो कोई दवाई ले लेनी चाहिए थी। वैसे भी पार्टी में तो तुम्हें आना ही है। और हाँ ढंग से तैयार होना मेरी बीवी सबसे सुंदर दिखनी चाहिए I सबको पता तो होना चाहिए मेरी बीवी कितनी सुंदर है"।

"हे भगवान ! यह आदमी मुझे समझता क्या है ? क्या इसके लिए मेरे दर्द, मेरी भावनाओं, मेरे मन की कोई कीमत नहीं है ? क्या मैं इनके लिए सिर्फ एक सुंदर सजावटी गुड़िया हूँ ? जैसे दुकानों की शान और उनकी इज्जत बढ़ाने वाली मैनिक्विन की तरह ? क्या मेरी अहमियत भी एक मैनिक्विन जैसी है ? या फिर शायद उस से भी बदतर क्योंकि मैनिक्विन की भावनाएं नही होती तो उन्हें बुरा भी नहीं लगता होगा या फिर मैनिक्विन को कथित स्वतंत्रता का च्युंईगम नही चबाना पड़ता है।


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