स्वतंत्र भारत की महिलाएं
स्वतंत्र भारत की महिलाएं
इस वर्ष हम आजादी के 75 साल बाद "स्वतंत्रता दिवस" एक महान राष्टीय पर्व के रूप में मनाया गया है।
स्वतंत्रता दिवस मनाने का जो सौभाग्य हमें हासिल हुआ है इसके लिए एक लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। मुगलों और अंग्रेजों से लड़कर हमने आजादी पाई है और आजादी पाने के बाद "स्वतंत्रता दिवस " एक राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। आज़ादी के 75 वें साल पर इस बार हम सब स्वतंत्रता दिवस का झंडा फहराया गया है। इस झंडा फहराने के लिए जो कुर्बानी दी गई है उसे भुलाया नहीं जा सकता है। सैकड़ों नेताओं और हजारों युवाओं ने अपनी जान की कुर्बानी दी है। वर्षो से हम उन तमाम स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते और सादर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में स्थित "अमर जवान ज्योति " स्मारक पर पुष्प अर्पित करते हैं। कुछ महान योद्धाओं की गिनती नहीं है और ना ही उनके नाम पर कहीं कोई स्थल सुनिश्चित की गई है परन्तु वो सभी योद्धाओं को भी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं।
यह तो सर्वविदित है कि देश के महान युवाओं और योद्धाओं ने अपनी जान की कुर्बानी दी है। किन्तु परोक्ष रूप से महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 में देश आजाद होने तक जो विरांगनाएं डटी रही उनमें सबसे पहले कित्तूर की रानी चेन्नमा, बेगम हजरत महल, ऐनी बेसेंट, भीकाजी कामा, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, अरूणा आसफ अली, कमला नेहरू, डाॅ लक्ष्मी सहगल और दुर्गा बाई देशमुख जी शामिल हैं। दुर्गा बाई देशमुख जी गांधी जी से बहुत प्रभावित थी और उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया था। भारत की आज़ादी में एक वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और एक राजनेता की सक्रिय भूमिका निभाई थी।
वर्तमान में बेहद चिंताजनक स्थिति है। कि जिस देश की आजादी में महिलाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था उसी देश में उनकी अगली पीढ़ी असुरक्षित है। आजाद होकर भी महिलाएं कहां आज़ाद हो सकी हैं ? भले ही चांद और मंगल तक की यात्रा कर चुकी है। जेट लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं। ओटो, ट्रक, ट्रेन और मेट्रो तक चला रही हैं। सिर्फ अपने देश में ही नहीं विदेशों में जाकर भी महिलाओं ने अपना परचम लहराया है।