स्वरा...
स्वरा...
"मेरी रसोई तो घर में सब उंगलियां चाट चाट कर खाते है... अब क्या बताऊं भाभी आपको, जब भी कोई मेहमान हमारे घर आते है मेरी सासु मां कहती है की बहु आज तुम ही बनाओ सारा खाना, तुम्हारे हाथ का स्वाद खा कर मेहमान उंगलियां चाटते रहेंगे.!!" श्रद्धा बोली।
"हां मेरी बेटी क्या किसी से कम है!! जीती रह बेटी ऐसे ही अपने ससुराल का दिल जीत ले। ताकि घर में तेरा ही राज चले। यहां तो सास को एक समय का खाना भी मन पसंद का नसीब नहीं होता!!" दीप्ती जी अपनी बहु सुगंधा पर इशारा कर कहती है।
दीप्ती जी अपनी बहु सुगंधा के सामने इशारा कर कहती है, तभी सुगंधा की बड़ी बेटी स्वरा वहाँ आ पहुंचती है...
"ओह बुआ जी आए हुए है... तभी मैं सोचूं की खुद की इतनी वाहा वहाई तो हमारी प्यारी बुआजी ही कर सकती है!! क्यों बुआजी कैसी है आप? अगर आप इतना अच्छा खाना बनाती हैं तो बुआजी कभी हमें भी तो खाना बना कर खिलाएं अपने हाथों से। और आपकी सास तो जब अति है कुछ और ही कहती है... क्यों दादी मां सच कहा ना मैंने!! और हां आप एक काम करना मां, आज के बाद से ना आप दादी मां को रोज सुबह आलू पूरी देना बंध कर दीजिए, वो क्या है ना दादी को गैस जो हो जाता है!! क्यों दादी चलेगा ना आपको?" स्वरा बोली।
"क्यों बुढ़ापे में खमखा अपनी दादी के पीछे पड़ी रहती है तू !! जब देखो तब अपनी मां की चमची बनी रहती हो घर पर, कुछ काम का भी देख लिया करो ताकि अपने बाप पर बोझ ना बनी रहो!!" दीप्ती जी बोली।
"ससससस.... स्वरा क्या है ये, क्या बोले जा रही है? जरा जगह देख कर बोला करो!! देखती नहीं यहां सब बड़े बैठे है!! किसने बोला बड़ों के बीच में बोलने के लिए!! इसी लिए फिर तुम्हारी दादी मुझे ही कहती है की बेटियों को कोई संस्कार नहीं दिए!! जाओ जा कर अपने कमरे में पढ़ाई करो कॉलेज की परीक्षाएं नजदीक नहीं आ रही!!"
"माफ करना श्रद्धा, यह तो कुछ भी बोलती रहती है। तुम उसकी बातों का बुरा मत मानो, पता नहीं कॉलेज जा कर ज्यादा ही बिगड़ गई है!!"
"नहीं मां मैं तो इस घर में रह कर बिगड़ गई हूं!! खास कर प्यारी दादी मां और प्यारे हमारे पिताजी की वजह से!! जो हमारे पैदा होते ही हमसे पीछा छुड़वाने के में लगे रहते है!! वैसे ढूंढ लो दूल्हा ताकि जल्द ही इस जेल जैसे घर से बाहर निकल जाऊं!!"
यह बोलती हुई स्वरा अपने कमरे में जाती है और जोर से दरवाजा बंद करती है। पर स्वरा की यह हरकत और अपनी दादी मां और बुआजी को देखने का नजरिया उसका, उसके घर में चल रहे रूढ़िवादी सोच की वजह से ही थी। जब स्वरा पैदा हुई तब भी दीप्ती जी को बेटा ही चाहिए था। फिर जब स्वरा की बहन रागिनी पैदा हुई तब स्वरा कमरे के बाहर से अपने पिता और दादी की बाते सुन कर ही वह अपने मन में यह मन लेती है की वो और उसकी बहन दोनों ही इस घर में अनचाहिते थे। तब से ही स्वरा अपने दादी और पिता को देख गाल फूला लेती है। और तब से ही उसका रिश्ता उसके पिता और दादी मां से थोड़ा खट्टा सा हो जाता है। और बुआजी को वो इसीलिए पसंद नहीं करती थी, क्यों की वह एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोलती जिसके बाद दीप्ती जी अपनी बहु सुगंधा को ताने मरने से बाज नहीं आती थी।
"बस भाभी बहुत हुआ!! मैं ऐसे अपनी ही बेज़्जती करवाने अपने मौके नहीं आती!! आप अपनी बेटी को जरा तमीज सीखा दीजिए, की बड़ों से बात कैसे करते है। हमारे मां बाप ने तो हमें ऐसे संस्कार नहीं दिए!!"
"और नहीं तो क्या!! तू किस से कह रही है बेटी, यह मां बेटी एक ही थाली में तो खाते है।"
और सुगंधा कुछ नहीं बोलती और चुप चाप अपने रसोई में जा कर अपना काम करती हैं, क्यों इस घर में यह सब रोज का ही था।
ऐसे ही हमारे घर में भी जब बच्चे होते है, तो उनके सामने बड़ों को भी कभी कभी संभल कर बोलना चाहिए, ताकि उनके दिल और दिमाग को ठेस ना पहुंचे, बुरा असर ना पड़े... क्यों की कई बार ऐसा होता है की बच्चे बड़ों से ही सीखते है।
धन्यवाद,
("इस कहानी के किरदार नाम और स्थान काल्पनिक है, अगर आपको मेरी कहानी अच्छी लगी तो मुझे सपोर्ट जरूर करिएगा!!")
