Manisha Debnath

Tragedy Inspirational

4.5  

Manisha Debnath

Tragedy Inspirational

"जानकी जीवन धारा"

"जानकी जीवन धारा"

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"बेटा कौन हो तुम? कहाँ से आई हो? तुम्हारा नाम? कोई अता पता? जो भी तुम्हें याद है हमें बेझिझक बताओ!! डरो नहीं, हम सब तुम्हारे साथ है।" प्रेरणा जी बोली।


"नहीं, मुझे कुछ भी याद नहीं, मैं कहाँ से आई हूं, मेरा नाम मुझे कुछ याद नहीं, बस यही पता है की मैं एक स्टेशन पर रुकी थी, मेरी ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी थी, और मेरी ट्रेन छूट गई। उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है की क्या हुआ, कैसे हुआ!!" मुझे अपने घर जाना है, मुझे अपने घर पहुंचा दो, मैं मरना नहीं चाहती, मुझे अपने घर जाना है!!" लड़की बोली।


"ठीक है बेटा, हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा देंगे, पर कुछ याद करने की कोशिश तो करो, तभी तो हम तुम्हें घर भेज सकते है, और देखो यह तुम्हारी बच्ची है!! क्या तुम बता सकती हो की इसका पिता कौन है?" प्रेरणा जी की साथी बोली।


"नहीं... नहीं, नहीं मैं कुछ भी नहीं जानती!! और ये बेटी मेरी नहीं हो सकती, मैं तो मेरी तो शादी हुए अभी २ महीने ही हुए है, यह मेरी बेटी नहीं हो सकती!!" लड़की बोली।


"क्या शादी हुई है तुम्हारी? ठीक से याद करो, कब हुई किस से हुई तुम्हारी शादी? और पति कौन है तुम्हारा? ससुराल वालों का नाम? शहर कुछ भी याद है?" प्रेरणा जी ने इस लड़की को अपनी पिछली जिंदगी याद दिलाने की कोशिश करते है।


इतने सवाल लड़की संभाल नहीं पाती और अचानक बेहोश हो जाती है...

"अभी उसकी हालत ठीक नहीं है, आप दोबारा जब होश में आए तब उसे बात करिएगा!!" डॉक्टर साहब बोले।

"पर डॉक्टर साहब इसका बस अपनी शादी ही याद है!! बाकी सब हम इसे याद कैसे दिला पाएंगे? क्या इसका कोई और रास्ता है?" प्रेरणा जी ने पूछा।

"जी हां हमें इसको शॉक थेरेपी देनी होगी। तभी शायद कुछ इसको याद आए लेकिन हम इसकी गारंटी नहीं दे सकते।" डॉक्टर साहब बोले।


"डॉक्टर साहब जो बन पड़ता है वो कीजिए, इसके इलाज का सारा खर्चा हम महिलाएं ही उठाएंगी!! और तब तक इसकी नवजात बच्ची हम हमारे पास ले चलते है... बेचारी पता नहीं इसकी हालत ऐसी कैसे हो गई, अब तो वो कुछ याद कर के बताए तभी कुछ कर पाएंगे।" प्रेरणा जी और उसकी साथी समाज सेविका बोली।


दरअसल जो लड़की का अस्पताल में इलाज चलता है, वो सुहानी है... कुछ दिन पहले वो बहुत ही बुरी हालत में, प्रेरणा जी को स्टेशन के बाहर मिलती है। सुहानी अपना नाम पता घर सब कुछ भूल चुकी थी, ऊपर से दिमागी हालत भी ठीक नहीं थी, और ९ महीने के पेट से भी थी, जिस वजह से वो सड़क किनारे चीखती चिल्लाती हुई दर्द से तड़प रही थी। किसी ने प्रेरणा जी और उनकी संस्था को खबर दी और वह तुरंत वहाँ पहुंच गए। उसकी हालत देख प्रेरणा जी और उनके साथी समाज सेविका उसे अस्पताल ले आए। और फिर सुननी ने सुंदर सी एक बेटी को जन्म दिया। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह थी की सुहानी अपना नाम पता सब भूल चुकी थी। उसको बस अपनी दो महीने पहले की शादी ही याद रही। ना पति का नाम यार था, ना उसका ससुराल का कोई पता था ना मायके का।

कुछ महीनों के इलाज के बाद जब सुहानी ठीक हुई, तो उसने अपनी दर्द भरी कहानी सुनाई। सुहानी की उमर महज़ १९ साल थी। उसने कॉलेज के दौरान ही फेसबुक से एक लड़के से प्यार किया। उसके साथ शादी की, और फिर उसके लिए अपना घर परिवार छोड़ भाग आई। और उस लड़के से शादी कर ली। लेकिन जब दो महीने बाद वो मां बन ने वाली थी, तो उसके पति ने उसे कहा,

"सुहानी में बहुत खुशनसीब हूं की मुझे तुम मिली। और अब तो मैं पिता भी बनने वाला हूँ । इसी खुशी में हम हमारे कुलदेवी के मंदिर दर्शन के लिए चलते है। अगर हम अभी ट्रेन में निकलते है तो बस यही कुछ ४ घंटे का समय लगेगा।"

यह बोल सुहानी को इसके पति ने ट्रेन में बिठा कर मंदिर ले जाने का वादा कर जब ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी, सुहानी का पति सुहानी को बताए बिना ही ट्रिन से उतर गया। उसके बाद सुहानी पूरे ट्रेन में अपने पति को ढूंढती रही। वो नहीं मिला, और अंत में ट्रेन जब आखरी स्टेशन पर रुकी, तो सुहानी के पास न पैसे थे, ना उसके कपड़े ना अनजान शहर में कोई उसका अपना था। जिसके सदमे से सुहानी ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया था। उसके बाद वो प्रेरणा जी को मिली।

उसकी दर्दनाक कहानी सुन, प्रेरणा जी और साथी भावुक हो उठे। और उसे कहा की अगर वो अपने पति के घर जाना चाहती है तो वो उसे पहुंचा सकते है, और अगर वो अपने मां बाप के घर जाना चाहती है तो भी ठीक है। लेकिन सुहानी ने माना करते हुए कहा की, अब सुहानी वहाँ नहीं जाना चाहती, बस यही रहना चाहती है। तो प्रेरणा जी उसे अपनी संस्था में लेकर जाती है। संस्था में उसके जैसी और भी औरतें थी। वह भी सुहानी चुप चुप सी रहने लगी, उसे अपनी बेटी का खयाल रहना न खुद का बस एक जगह बेटी रहती, और फिर प्रेरणा जी ने उसको अपनी कहानी सुनाई, की शादी बाद उसको भी उसके ससुराल वालों ने दहेज के लिए जलाने की कोशिश की, लेकिन फिर इस संस्थान की मालकिन जानकी जी, जिनके नाम से यह संस्था चल रही थी, "जानकी जीवनधारा" उन्होंने ही प्रेरणा जी की जान बचाई। जानकी जी तो अब नहीं रही। उसके बाद प्रेरणा जी ने ही इस संस्थान को चलाने की जिम्मेदारी उसके ऊपर ले ली, और यह उसके जैसी ही यह कई औरतें है, जो यह रह कर तरह तरह के काम कर अपना जीवन गुजार रही है।


प्रेरणा जी की यह बात सुन सुहानी को हिम्मत मिलती है, और यह सोच कर पुरानी बाते भूल जाती है की, जिस तरह उसने एक प्यार के लिए अपने मां का घर छोड़ा ऐसे ही शायद यह उसकी गलती की सजा होगी, लेकिन अब उसे अपनी बेटी के लिए जीना है।


(यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित हैं। लेकिन कहानी में दर्शाए गए पत्र और उनके नाम काल्पनिक है।)


धन्यवाद,



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