Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Pradeep Kumar Tiwary

Romance Tragedy

3  

Pradeep Kumar Tiwary

Romance Tragedy

सुनो प्रिये..

सुनो प्रिये..

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सुनो प्रिये...सोचता हूँ तुम्हारे ना होने से क्या बदला है, कभी-कभी लगता है कुछ नहीं क्योंकि ऐसा लगता है कि तुम मेरे बिल्कुल पास हो मेरे साथ हो ..और तुमने कहा था ना किसी के चले जाने से ज़िन्दगी नहीं रुकती यही सच है हम सबकी अपना अतीत भुलाकर आगे बढ़ना पड़ता है, पर अब सोचता हूँ कि तुमने आधा सच बोला था, तुमने ये नहीं बताया कि किसी के जाने के बाद ज़िन्दगी चलती तो है पर इसमें पहले जैसी बात नहीं होती ना खुशी ना ग़म ना चिंता ना उन सब चिंताओं से उभर पाने की कोशिश ...सबकुछ खाली-खाली सा होता है। 

आज भी जब तुम्हारे ख़त पढ़ता हूँ तो मुस्करा देता हूँ,  सब कुछ आंखों के आगे जीवंत हो उठता है वो चाहे बारिश में भीगकर आने के बाद तुम्हारा मुझ पर गुस्सा होना हो या देर से घर आने पे नाराज़ होना हो सब कुछ। 

अब भी मुझे याद है घर का दरवाजा नॉक करने पर तुम्हारा वो बेसब्री से दौड़कर दरवाज़ा खोलना, तुम्हें क्या लगता है मुझे नहीं पता चलता था, मुझे दरवाज़े के उस तरफ़ से तुम्हारे कदमों की आहट और उसमें छुपी बेचैनी साफ साफ सुनाई देती थी। आज भी वो नाईटलैंप है जिसे तुमने कितनी ज़िद्द करके खरीदा था पर आज वो नाईट लैंप मैं नहीं जलाता अब अंधेरा ही मुझे अच्छा लगता है...आज भी घर के किसी कोने में मुझे तुम्हारी टूटी हुई चूड़ियों के टुकड़े दिख जाते है...आज भी कंगन का वो टुकड़ा मैंने बहुत सहेज़ कर रखा है जो तुम्हारी ज़िद की वजह से टूटे थे ..."मुझे गोद में उठाओ मैं सोफे और बेड पे चढ़ के घर के जाले साफ नहीं करूंगी...मुझे तुम उठाओ तो मैं साफ करूंगी और उस दिन हम दोनों ही गिरते गिरते बचे थे पर कंगन टूट गया...

क्या हुआ, कैसे हुआ, क्यूँ हुआ मुझे पता नहीं, मगर सच यही है कि अब तुम मेरे साथ नहीं हो पर तुम मुझसे दूर भी नहीं हो ...दूर होकर पास रहना, पास रहकर दूर होने से अच्छा है ।।

तुम्हें पता है जब मैं तुम्हारे शहर से हमारे टूटे हुए रिश्तों का बोझ उठाये निकल रहा था, उस वक़्त ऐसा लगा कि मैं अपने पीछे ख़ुद को उसी शहर में छोड़कर जा रहा हूँ। मैंने पलटकर देखा था, तुम बालकनी में खड़े होकर मुझे जाते हुए देख रही थी, मुझे हर कदम पे ऐसा लगता था कि अभी तुम दौड़ती हुई आओगी और कहोगी कि- बस इतना ही प्यार था तुम्हारा मैं तुमसे नाराज़ क्या हुई और तुम मुझे छोड़कर जा रहे हो ये भी नहीं सोचा कि मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं पाऊंगी ऐसा कैसे हो सकता है कि हम एक दूसरे से अलग हो जाए और तब मैं जाते जाते बार बार पीछे मुड़कर देखता कि शायद तुम मेरे पीछे दौड़ती हुई आ रही होगी मुझे वापस घर ले जाने के लिए लेकिन सड़क पर मुझे उन अजनबी और कुछ जाने पहचाने चेहरों में कहीं तुम्हारा चेहरा नहीं दिखाई दिया, मैं धीरे धीरे तुमसे दूर होता गया, मुझे तब भी यकीन नहीं हुआ था कि हम अब हमेशा के लिए अलग हो गए है, कि अब हम कभी एक दूसरे को देख नहीं पाएंगे। इस दुनिया में हम दोनों ही होंगे मगर अपनी-अपनी दुनिया में। मुझे तो उस वक़्त भी यकीन नहीं हुआ जब स्टेशन से मेरी ट्रैन मुझे तुमसे बहुत दूर किसी अजनबी जगह ले जाने के लिए रवाना हुई, मुझे लगा था कि अभी तुम ट्रैन के डब्बे में कहीं से आ जाओगी और कहोगी -चलो हम साथ चलते है सबसे दूर ज़िन्दगी को नए सिरे से शुरू करते है पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं हुआ। आख़िरकार मैंने खुद को समझा लिया कि हमारा साथ यहीं तक था।

पर हाँ मैं शायद खुद को वहीं छोड़ आया हूँ, तुम जाके देखना उस स्टेशन पे जहाँ मैं तुम्हारा घंटों बेसब्री से इंतज़ार करता था और फिर तुम आती थी हम कितनी देर बातें करते थे हमें किसी की कोई फिक्र नहीं होती थी ना जाने कितने आते जाते लोग हमें देखते थे मुस्कराते थे चले जाते थे, वो भी हमें जानने लगे थे।

तुम पूछना उस मंदिर वाले बाबा से कि आपने कहीं उसको देखा है क्या ? आखिर जब तक तुम नहीं आती थी तो मैं उनके पास ही जाकर बैठता था ना। तुम ढूंढना तुम्हारे सिरहाने तकिए के नीचे मेरे सारे सपने मेरी नींदे सब वहीं मिलेंगे तुम्हें वो सब वहीं छोड़ आया हूँ मैं। तुम पार्क की उस बेंच पे मुझे ढूंढना जहां कभी सुबह शाम हम मिला करते थे, शायद मैं तुम्हें आज भी वहां दिख जाऊं तुम्हारा इंतजार करते हुए अतीत के चादर में लिपटा हुआ।



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