तितली
तितली


अक्सर शाम को घर की खिड़की के पास बैठ जाता हूं और बाहर झांकने से ऐसा लगता है कि दुनिया इतनी ही बड़ी है मेरे कमरे जितनी, कम से कम इस बहाने मैं खुद को संतुष्ट कर लेता हूं कि दुनिया इतनी भी अच्छी नहीं कि इसे देखने के लिए कमरे से बाहर निकला जाए। जितना अंधेरा मेरे कमरे में है उतना ही अंधेरा बाहर भी है, जितनी रोशनी मेरी खिड़की छनकर अंदर आती है, उतनी ही रोशनी बाहर की दुनिया के हिस्से में भी होगी, रही बात अकेलेपन की तो बाहर तो लोग इतनी भीड़ में अपनों के साथ होकर अकेलेपन का शिकार है, मैं अपने कमरे में इस अकेलेपन का आदी हो गया हूं या ये अकेलापन ही अब मेरी उम्रभर का साथी है। अब ये अकेलापन काटने को नही दौड़ता वो हर वक्त मेरे साथ होता, मेरे साथ हंसते हुए, मुस्कराते हुए, उदास भी खुश भी।
ऐसे ही एक शाम जाने कहां से वो तितली मेरी खिड़की पे आ बैठी, बहुत खूबसूरत रंग बिरंगी तितली।
मैं उसे देखता रह गया, उसके पंखों में शानदार नक्काशी थी ..ना जाने कितने रंगों से नहाकर आई थी। मैंने इतने रंग एक साथ कभी नहीं देखे थे।
मेरे इस अंधेरे कमरे में सिवाय काले रंग के और कुछ नहीं था, ये अंधेरा मैं बचपन से देखता आ रहा हूं, मैं जैसे जैसे बड़ा होता गया वैसे वैसे ये अंधेरा भी गहरा होता गया गाढ़ा घना काले रंग का अंधेरा।
आज उस तितली को देखकर लगा कि शायद मेरे कमरे की दीवारें भी उसके पंखों के रंग से रंग जाएगी शायद मेरे कमरे में उजाला हमेशा के लिए हो जाएगा।
मैंने तितली से पूछा - सुनो क्या तुम कुछ देर मेरे साथ बैठोगी यहां ?
उसने कहा - नहीं यहां तो बहुत अंधेरा है यहां कोई कैसे रह सकता है।
मैंने कहा - क्यूं कोई कैसे नहीं रह सकता यहां ? मैं तो कब से यहां हूं यही रहता हूं ..
तितली बोल पड़ी - नहीं तुम यहां रहते नहीं हो बल्कि तुम यहां कैद हो।
मैंने पूछा - कैद ? ये कैद क्या होती हैं ?
तितली बोली - वो नहीं समझोगे तुम ...तुम अगर चाहो तो मैं तुम्हें अपनी दुनिया में ले जा सकती हूं वहां रंग ही रंग है उजाला ही उजाला है हर तरफ।
मैंने उससे कहा – तुम ही रुक जाओ ना यहां मेरे पास
तितली बोली – नहीं मैं इस अंधेरे में घुट के मर जाऊंगी मैं यहां नहीं रह पाऊंगी।
मैंने कहा – मैं तुम्हारी दुनिया में नहीं जा सकता मैं वहां मर जाऊंगा।
आखिर में जाते जाते तितली बोली – तुम परेशान मत होना मैं फिर आऊंगी तुमसे मिलने।
मैं खुश हो गया कि तितली फिर आयेगी तो हम बातें करेंगे कुछ देर को सही मेरे कमरे की दीवारें उसके पंखों के रंग से रंग बिरंगी हो उठेंगी।
बरसों बीत गए तितली वापस नहीं आई, मेरे कमरे की दीवारों का रंग दिन ब दिन गहरा होता जा रहा है .. काला रंग धीरे धीरे और गाढ़ा होता जा रहा है। मैं अब भी अक्सर शाम को खिड़की पे जाकर घंटों उसका इंतजार करता हूं कि शायद वो किसी रोज मेरी खिड़की से होकर गुजरे।