सुखद
सुखद
जैसे-जैसे सामान कार में रखे जा रहे थे;मेरा दिल बैठा जा रहा था।आँसुओ को छुपाने के लिए चश्मे का सहारा लिया और चुपचाप आकर बैठ गई ।गाड़ी में ,गौरव मेरे बग़ल में बैठ गया ।नवीन ने स्टेयरिंग सम्भाला माहौल को हल्का करने की उनकी नाकाम कोशिश...गौरव हाँ ,हूँ, में ही जवाब दे रहा था।दो घंटे का लंबा सफ़र इतनी जल्दी गुज़र गया । एयरपोर्ट आ चुका था ट्रॉली पर सामान रख पाँव छूकर गौरव अंदर चला गया ।
घर आकर निढाल होकर बिस्तर पर लेट गई थी ।आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे ।नवीन से रहा नहीं गया ...बोल पड़े "क्या बच्चों जैसा रो रही हो ,आ जाएगा ,दो साल में ।इतना अच्छा मौक़ा कहाँ मिलता है सबको अमेरिका के इतने अच्छे विश्वविद्यालय में पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है बेटा को, तुम्हें तो ख़ुश होना चाहिए ।"
अपने आप को सँभाल लिया था मैंने ।अमेरिका में भव्य समारोह में डिग्री लेते हुए बेटे को देख एक बार फिर ख़ुशी के आँसू छलक आए थे।डिग्री मेरे हाथों में और टोपी जब गौरव ने मुझे पहनाया तो हंसते हुए हमने खुब फोटो खिंचवाए ।बहुत अच्छी नौकरी मिली थी बेटे को लेकिन हमारे लाख समझाने के बावजूद गौरव ज़िद पर अड़ा रहा ।वापस स्वदेश लौटने का निश्चय कर लिया था ,बोला-नहीं माँ ,”मैंने अपना सपना तो सजा लिया अब आपके सपने को साकार करूँगा ।आप ही तो कहती थीं ना -“विदेशी शिक्षा का लाभ अपने देश में आकर देना चाहिए।"
“हाँ -कहा तो था लेकिन मेरे सपने की फ़िक्र मत करो अपना कैरियर देखो" ,मैंने ज़ोर देकर कहा ।दो महीने अमेरिका भ्रमण कर हमदोनों वापस आ गए थे ।
आज एयरपोर्ट जाते वक्त मैं फूली नहीं समा रही थी ,अमेरिका की पढ़ाई कर गौरव स्वदेश जो लौट रहा था हमेशा के लिए । हमारे दिए संस्कार अमेरिका की चकाचौंध से ज़्यादा चमक रहा था ।गाड़ी में बज रहे गाने के साथ मैं भी गुनगुना रही थी -पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा...।