सुझ-बुझ
सुझ-बुझ
गाँव का जोरदार शहरीकरण हो रहा था। रहन-सहन, बोली-बाणी सब में भयंकर बदलाव। पुराने लोग तो थोड़ा बहुत अपनी परम्परा बचाये भी थे पर यह नयी पीढ़ी ने तो पूरा ही अपने को शहरी बना लिया था। उनके कपड़े में जींस आदि शामिल हो गये थे। दुपट्टा तो धूल ही खा रहा था। नई बहूयें थोड़े दिन तो साड़ी और घुंघट को सहन कर लेतीं पर,पति के सामने रम्भा बनकर वो अपने जिंस टाॅप की बात मनवा ही लेतीं।
अब झूलों पर कजरी के बजाय सावन में डिस्को आयोजन होता जहां फूहड़ ढंग के नाच-गाने होते। जो जितनी फूहड़ता दर्शाता उतनी ही अच्छा समझा जाता।
अपने मायके में आयी कमला बुआ यह सब देख-देखकर हैरान थी भाई-भावज से अम्मा के मरने के बाद किसी बात में बहस हो गई थी बस उन्होंने मायके न आने का प्रण कर लिया था। लेकिन बीस सालों के बाद अचानक भाई उन्हें अपने बेटे की शादी में लेने आ गये वह भी थोड़ी मान-मनौव्वल के बाद उनके साथ जाने को तैयार हो गयीं। मायके की ललक कभी छूटती है क्या?
जब बुआ मायके की देहरी पर पहुंची तो उन्हें बहुत जोर का रोना आ गया। रोने की आवाज़ सुनकर घर से लोग बाहर आ गये। भावज ने बाहर आकर उन्हें अंकवार में भर लिया और रोने लगीं। उन दोनों को रोते देखकर नयी पीढ़ी के बच्चों ने मज़ाक बना लिया। वे सब हीहीहीही कर हंस पड़े। छोटे भाई की पत्नी लोटे में पानी और सिंदूर लेकर खडी़ थी उसने बुआ के दोनों तरफ लोटे से पानी गिराया और सिंदूर लगाकर उन्हें अंदर ले गई । बच्चों का हंसना बुआ को थोड़ा बुरा तो लगा लेकिन वो चुप लगा गईं। घर में एक ऊंची मचिया पर बैठाकर बड़ी भावज ने पैर में हल्दी लगाकर उनका मल-मल कर पैर धोया और अच्छी तरह पोंछकर उन्हें दही और गुड़ की शरबत पीने को दी। बुआ मायके आकर खूब प्रसन्न थीं।
मिलने-जुलने बाले बुआ से मिलने आने लगे थे। बुआ अपने समय के लोगों से मिलकर बहुत प्रसन्न थीं।
अब शादी की गहमागहमी जोरों पर थी रिंग सेरेमनी में दूल्हा-दूल्हन को एक साथ देखकर बुआ घोर आश्चर्य में थीं फिर मेहंदी हल्दी सब में भतीजे का बढ़-चढ़ कर भाग लेना उन्हें पल-पल गुस्सा दिला रहा था पर वो चुप लगा गईं। हद तो तब हो गई जब बारात में जाने को दूल्हे की मम्मी, चाची, बहन सभी औरतें तैयार थीं पर, बुआ ने जाने से मना कर दिया और कहने लगीं 'अरे कितने सारे रस्म होते हैं बारात जाने के बाद वो कौन करेगा? अब सब बुआ को पुरातनपंथी कह चिढा़ने लगे लेकिन बुआ जाने को राजी नहीं हुईं। बाकी लोग तो चले गये लेकिन दूल्हे की माँ-चाची और एक नौकरानी घर में रह गये। सारे रीति-रिवाज हो गये तो सभी औरतें अपने-अपने घर चली गईं। उसी समय बुआ वाशरूम गईं तो उन्हें लगा कि दो लोग आपस में बातें कर रहे हैं उन्होंने ध्यान से सुना, 'अरे यार औरतें
जब सो जायेंगी तो हमलोग घर में घुसकर सारे पैसे और गहने उठा लेंगे'। दूसरी आवाज आई ,'अगर औरतें जाग गयीं तो?' फिर आवाज़ आई, 'जाग जायेंगी तो हम उन्हें मौत की नींद सुला देंगे'। अब बुआ समझ गयीं की उन सब की जान खतरे में है।
वो वाशरूम से बाहर आकर अपनी भाभीयों को बोलीं ,'सुनों भाई को फोन करके पूछो शादी पुरी होने में कितना समय और है तब तो आगे के रस्म -रिवाज करना होगा। फिर उन्होंने अपनी भाभी को झूंझलाकर कहा मुझे फोन दो मैं सारी बातें समझ लेती हूँ। और फोन लेकर अंदर रुम में जाने लगीं और भाभियों को भी किसी काम के बहाने वहीं बुला लिया। फिर धीमी आवाज में सारी बातें समझाईं। फिर बाहर आकर जोर-जोर से बोलने लगी सबको जाकर गीत गाने के लिए बुला लाओ। बाहर जाकर भाभीयों ने पुलिस को फोन कर सब बता दिया और जल्दी से आने की प्रार्थना की।
पुलिस बालों ने पंद्रह मिनट में आने को कहा। घर आकर भाभीयों ने बताया सब बस पंद्रह मिनट के लिए ही आयेंगी। और आप भी जल्दी सब कर लिजीए दीदी! ताकि हम जल्दी से सो सके, बहुत थकावट हो रही है। चोरों ने सोचा चलो पंद्रह-बीस मिनट की बात है। अचानक ठीक पंद्रह मिनट के बाद पुलिस ने आकर सबको दबोच लिया और उनकी पिटाई शुरू की और थाने ले गये। सुबह अख़बारों की सुर्खियों में बुआ और उनकी दोनों भाभीयों तथा नौकरानी की वीरता बडे़-बडे़ अक्षरों में छपी थीं।
बारात गये लोग भी सुबह इस खबर को पढ़कर अचंभित थे। क्योंकि दोनों चोरों की तलाश पुलिस बहुत दिनों से कर रही थी ये बहुत बडे़ डकैत थे। बुआ की बहादुरी और त्वरित सुझ-बुझ से बहुत बड़ी दुर्घटना टल गई थी।
बुआ सबके लिए एक उदाहरण बन गई थीं।