सुहागरात
सुहागरात
"सुहागरात है घूँघट उठा रहा हूँ मैं .....सिमट रही है तू शरमा के अपनी बाहों में।"
कमरे से आती हुई इस मधुर गीत की आवाज़ ने अक्षय को बेचैन कर दिया था। वो आत्मबोध और ग्लानि में कहीं मरा जा रहा था।आज उसके बड़े भाई अजय की सुहागरात थी। आखिर जूली कब तक सिमटती रहेगी ? उसे ना तो सिमटना आता है और ना ही शरमाना .... वो तो किसी आज़ाद पंछी की भांति हमेशा खुल कर उसे कामवासना के लिए आमंत्रित करती थी। वहीं दूसरी ओर अजय कितना शालीन और सौभय है। क्या वो जूली का ये रुप सह पायेगा ? क्या उसे जब अक्षय और जूली के संबंधों का पता चलेगा तो वो आत्महत्या नहीं कर लेगा ?
अचानक से गीत की आवाज बंद हो जाती है। कमरे का दरवाजा खुलता है और अंदर से अजय भैया बाहर आकर घर में मौजूद औरतों को आवाज लगाते हैं। सभी आँगन से लपककर ऊपर अजय भैया के कमरे की ओर भागती हैं। मैं नीचे अपने कमरे की खिड़की से ही सब देख रहा था।
करीब आधे घंटे बाद सब हँसती हुई नीचे उतर रहीं थी। सविता भाभी मम्मी से कह रही थी , " इतनी शर्मीली लड़की हमने आज तक नहीं देखी .... बेचारी को कुछ नहीं पता। बड़ी मुश्किल से सब समझाकर उसे सुहागरात के लिए तैयार किया है। अजय को भी बोलकर आई हूँ कि ज़ोर - ज़बरदस्ती ना करे। जितना आराम से हो पाये बस उतना करे .... कोई मेला थोड़ी ना है जो आज ही खत्म हो जायेगा। अभी तो पूरी ज़िन्दगी पड़ी है ... धीरे - धीरे स्वाद लेकर खाना खाने का मज़ा ही कुछ और है। सुना है अजय को दुपट्टा तक हटाने नहीं दिया .... कह रही थी दुपट्टा हटाते ही बच्चे हो जाते हैं। " सभी एक साथ खिलखिलाकर जोर से हँस पड़ीं।
कमरे का दरवाजा फिर से बंद हो जाता है और उसी खूबसूरत से मधुर गीत की आवाज मेरे कानों में अब एक सुकून भरा स्वर बिखेर रही थी ......
"सुहागरात है घूँघट उठा रहा हूँ मैं .....सिमट रही है तू शरमा के अपनी बाहों में।"