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V. Aaradhyaa

Classics Inspirational

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V. Aaradhyaa

Classics Inspirational

स्त्री और संतुलन

स्त्री और संतुलन

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कभी किसी भी परिस्थिति में

खुद का स्त्री होना नहीं भूलती है,


किसी हदस से आतंकित होकर  

कभी घोर विलाप नहीं करती है,


तो कभी खुशियों की अतिरेकता से

अत्यधिक उन्मादित नहीं होती है,


आरम्भ से अंत तक जीवन चक्र में

बिना तनिक भी विचलित हुए,


बिना किसीको रत्ती भर कष्ट पहुँचाए 

निर्बाध निरंतर चलती रहती है :


भला एक स्त्री से बढ़कर संतुलन किसे आता।


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