Priyanka Mudgil

Abstract Tragedy Inspirational

4  

Priyanka Mudgil

Abstract Tragedy Inspirational

ससुर नहीं...पिता हूं तुम्हारा!

ससुर नहीं...पिता हूं तुम्हारा!

8 mins
303


हौसला ना हार कर सामना जहान का.....

सुरेश जी ने गुनगुनाते हुए रीमा को चाय का कप पकड़ाया

" यह लो...रीमा बेटा! चाय पी लो और यह सिर्फ मैं गाना नहीं गुनगुना रहा था.... बल्कि तुम्हारे लिए कह रहा था..."

"लेकिन पापा मैं कैसे सब का सामना करूं ..?आते -जाते सब लोग मुझ पर ताना कसते हैं ...मैं लड़की हूं तो क्या तो हर बात पर मुझ पर ही उंगलियां उठेंगी..?"

"देखो बेटा! जितना तुम दुनिया और लोगों की बातों पर ध्यान देगी, उतना ही तुम खुद को तकलीफ पहुंचाओगी। तुम सब की बातों को सोच सोचकर अपनी तबीयत खराब कर लोगी लेकिन इस बात से किसी को जरा सा भी फर्क पड़ने वाला नहीं है... जमाना ही ऐसा है इसलिए सिर्फ तुम अपने बारे में सोचो..."

आइए बढ़ते हैं कहानी की ओर..

इस कहानी की नायिका है रीमा। जोकि अपने ससुर सुरेश जी और सास निर्मला जी के साथ रहती है। रीमा काफी पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की थी और वह शादी से पहले सुरेश जी के ऑफिस में ही काम करती थी। सुरेश जी को रीमा का व्यवहार बहुत पसंद था। वो मन ही मन उसे अपनी बहू के रूप में देखते थे।

एक दिन मौका पाकर जब रीमा ऑफिस से घर जाने के लिए लेट हो गई तो सुरेश जी उसे घर तक छोड़ने का बहाना लेकर उसके माता-पिता से मिलने चले गए। ताकि उसे रीमा के बारे में और उसके परिवार के बारे में सारी जानकारी मिल जाए। रीमा के माता- पिता से मिलकर उनके विचारों से सुरेश जी बहुत प्रभावित हुए।

सुरेश जी का बेटा नितिन भी एक

मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर था। सुरेश जी ने नितिन को रीमा के बारे में बताया। नितिन भी अच्छे आधुनिक विचारों वाला लड़का था और वह भी चाहता था कि उसकी भावी पत्नी अपने पैरों पर खड़ी हो और फिर ऊपर से सुरेश जी रीमा को अच्छे से जानते समझते भी थे ।

नितिन के 1-2 दोस्तों ने अपने माता-पिता की सहमति के बिना लव मैरिज की थी जिससे कि उनके माता-पिता को बुरी तरह टूटते हुए भी देखा था इसलिए उसने मन ही मन फैसला लिया था कि जब भी वह शादी करेगा तो सिर्फ अपने मम्मी -पापा की पसंद की लड़की से ही करेगा क्योंकि उसकी नजर में यह अधिकार माता -पिता को मिलना चाहिए और माता-पिता से बढ़कर अपने बच्चे के लिए अच्छा जीवनसाथी और कोई नहीं चुन सकता । जब उसे पता चला कि सुरेश जी रीमा को बहुत पसंद करते हैं तो उसने बिना समय गवाएं सुरेश जी को शादी के लिए हां बोल दिया। सुरेश जी की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा। उन्होंने तय समय पर नितिन और रीमा की शादी करवा दी।

सुरेश जी और उनका परिवार आधुनिक विचारों के ही थे इसलिए शादी के बाद भी रीमा उसी तरह से नौकरी करती रही जैसे शादी से पहले करती थी। सुरेश जी ने कभी भी रीमा को ससुर की तरह ट्रीट नहीं किया बल्कि वो उसे अपनी बेटी की तरह मानते थे। रीमा शादी के बाद बहुत खुश थी लेकिन जब वह एक बहू के रूप में आई तो सुरेश जी से कुछ भी कहते हुए हिचकिचाती थी ।

तभी एक दिन सुरेश जी ने रीमा को अपने पास बुला कर कहा," देखो बेटा! माना कि अब रिश्ते में तुम मेरी बहू और मैं तुम्हारा ससुर हूं लेकिन तुम्हारा बेबाक बोलना मुझे बहुत पसंद आया था... आज के समय में लड़कियों को ऐसा ही होना चाहिए ....तुम मेरे साथ वैसे ही रहो जैसे अपने पापा के साथ रहती हो ...ठीक वैसे ही जिद करो और एक बेटी की तरह ही मुझसे रूठो क्योंकि मेरी जिंदगी में एक बेटी की कमी हमेशा मुझे खलती थी और अब मैं वह कमी पूरी करना चाहता हूं.."

अपने ससुर के मुंह से यह सब बातें सुनकर रीमा उनके गले से लग गई और अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझती थी कि उसको इतना प्यार करने वाला ससुराल मिला है। उसकी सासू मां निर्मला जी भी रीमा और नितिन में कभी कोई भेदभाव नहीं करती थी।

वक्त अपनी गति से चले जा रहा था कि एक बार किसी एक्सीडेंट में नितिन की मौत हो गई । पूरा परिवार पूरी तरह से बिखर गया था । रीमा तो एकदम चुप हो गई थी लेकिन जब उसने अपने सास-ससुर की हालत देखी तो उससे रहा नहीं गया। वह उन्हें हर कदम पर हौसला देती... अपने दिल की तकलीफ और दर्द को अपने अंदर समेटे हुए अपने चेहरे पर मुस्कुराहट बनाए रखती थी।

सुरेश जी और विमला जी भी अपनी बहू के दर्द को अच्छे से जानते थे । और वह उनकी खुशी के लिए ही मुस्कुराती रहती है यह भी भली-भांति समझते थे। इसलिए अब वो दोनो धीरे-धीरे इस दर्द से खुद को उभार रहे थे।

धीरे-धीरे रीमा ने अपने आप को घर तक ही सीमित कर लिया। उसका बाहर कभी किसी से भी मिलने का मन नहीं करता था और ना ही वह ऑफिस जाना चाहती थी। लेकिन सुरेश जी ने उससे जिद की कि वह ऑफिस दोबारा से ज्वाइन कर ले ताकि उसका मन लगा रहे।

लेकिन वह कहते हैं ना जब किसी भी लड़की पर इस तरह की विपदा आती है या फिर उसके पति का साथ नहीं रहता है तो लोग बिना उस लड़की के दर्द और तकलीफ को समझे उस पर उंगली उठाने में जरा भी देर नहीं करते... ऐसा ही कुछ रीमा के साथ भी हुआ।

आइए चलते है कहानी के वर्तमान में...

सुरेश जी की तबीयत कुछ दिन से ठीक नहीं चल रही थी इसलिए वो दफ्तर न जाकर घर पर ही कुछ दिन के लिए आराम कर रहे थे । रीमा भी उनकी देखभाल करना चाहती थी ।

लेकिन उसकी सास निर्मला जी ने उसे यह कहकर मना कर दिया

" रीमा बेटा !! तुम्हारे पापा का ख्याल रखने के लिए मैं हूं घर पर... तुम जाकर ऑफिस का काम संभालो... हमारी बिल्कुल चिंता मत करो ...मुझे पता है कि अब तुम हमारा बेटा हो... लेकिन जब भी कोई जरूरत होगी तो मैं तुम्हें फोन कर दूंगी ...अब तुम शांति से ऑफिस जाओ... यहां की चिंता मत करो "

रीमा भी चुपचाप ऑफिस के लिए निकल गई। उस दिन शाम को एकदम से मौसम खराब हो गया और बाहर बारिश हो रही थी। रीमा को ऑफिस से निकलने में थोड़ी देर हो गई ।जैसे ही वह बाहर आई तो देखा गाड़ी का टायर पंचर हो गया था और ऐसे में वह कर भी क्या सकती थी। तभी उसके सहकर्मी राजीव ने उसे घर तक छोड़ने के लिए कहा। रीमा के पास और कोई चारा नहीं था और उसे घर भी जल्दी पहुंचना था क्योंकि उसे अपने ससुर जी की बहुत चिंता सता रही थी। इसलिए वह राजीव की बात मानकर उसके साथ गाड़ी में घर आ गई।

जैसे ही घर गाड़ी घर के आगे रुकी ।आस-पड़ोस के कुछ लोगों ने रीमा को देख कर बातें बनाना शुरू कर दिया। घर के अंदर आते हुए रीमा के कानों में कुछ आवाजें पड़ी...

"" हाय देखो तो...कितनी बेशर्म लड़की है यह... हमें तो इसका चाल - चलन पहले ही सही नहीं लगता था"

" हां सही कहा आपने... ऐसी लड़कियों को तो सिर्फ मौका मिलना चाहिए बाहर निकलने का... पति को मरे कुछ समय भी नहीं हुआ ... इसने तो दूसरे लड़कों पर डोरे डालने शुरू कर दिए "

"पता नहीं सुरेश जी और निर्मला जी को इसके कारनामे क्यों नहीं दिखाई देते हैं"

" खैर हमें क्या....उनके घर की इज्जत... अब घर की बहू को इतना सर चढ़ाएंगे तो बहुत तो नाचेगी ही ना... धीरे-धीरे अपने सारे रंग दिखा देगी"

इतनी जली- कटी बातें सुनने के बाद भी रीमा कुछ नहीं बोली और चुपचाप घर के अंदर आ गई।

"अब कैसी तबीयत है पापा!! रीमा ने पूछा

"मैं ठीक हूं बेटा ...लेकिन तुम्हारी आवाज ऐसी क्यों लग रही है.. कुछ हुआ है क्या ..?"

"नहीं पापा !! सब ठीक है... बस थोड़ा थक गई हूं.. कपड़े चेंज करके आती हूं फिर आपसे बातें करती हूं "

ऐसा बोल कर वो अपने कमरे में चली गई और वहां जाकर बुरी तरह टूट कर रोने लगी । वह रीमा ,जो हर गलत बात का विरोध करती थी... वह लड़की जो किसी भी तरह की गलत बात को सुनकर बिना जवाब दिए घर नहीं आती थी ....आज कैसे वो चुपचाप खुद के चरित्र पर उंगली उठने के बावजूद भी सब कुछ सुनकर ,सहकर घर आ गई.... खुद का ऐसा रूप देखकर वो खुद हैरान थी... क्यों इतना बदल गई थी वह... आज उसका खुद से सवाल करने का मन कर रहा था... मैं पहले तो ऐसी नहीं थी.. अगर नितिन मेरा साथ समय से पहले छोड़ कर चले गए तो इसमें मेरी क्या गलती... क्या उनके जाने से मैं चरित्रहीन हो गई हूं.... क्यों लोग बिना सोचे समझे किसी के बारे में कुछ भी धारणा बना लेते हैं और बिना उसके दर्द तकलीफ जाने कुछ भी बोलने से पहले एक बार भी नहीं सोचते...... यह सब सोचते सोचते कब उसकी आंख लग गई उसे भी नहीं पता चला।

जब वह सुबह उठी तो उसके सास - ससुर उसके पास आए।

सुरेश जी ने पूछा ,"क्या हुआ है बेटा ...कोई परेशानी है क्या..?"

" नहीं पापा! सब ठीक है ...."

"तुम मेरी बेटी हो... चाहे तुम कुछ ना कहो... लेकिन तुम्हारी आंखें मुझे सब बता रही हैं .."

रोते-रोते रीमा ने सारी बातें अपने सास - ससुर को बता दी।

और कहने लगी," पापा- मम्मा! अब से मैं ऑफिस नहीं जाऊंगी... प्लीज मुझे घर पर ही रहने दीजिए ...मुझसे अब यह सब और सहन नहीं होगा..."

तभी सुरेश जी ने कहा ,"मेरी बेटी  इतनी जल्दी कैसे हार मान सकती है..? मैं तुम्हारा ससुर नहीं पिता हूं... अब से तुम अपनी जिंदगी खुल कर जिओगी.... बिना इन घटिया मानसिकता वाले लोगों की बातों का विचार करे.... मुझे मेरी वही बेबाक और बिना डरे अपनी बात कहने वाली रीमा चाहिए.... जब हम बुरी तरह से टूट गए थे तो तुमने हर पल अपना दर्द छुपा कर के हमारा हौसला बढ़ाया.... एक बेटी की तरह हमारा ख्याल रखा... अब हमारा भी फर्ज बनता है कि एक माता पिता होने का फर्ज निभाएं और तुम्हारी जिंदगी में खुशियां भर दे.... अब से तुम वैसे ही जियो जैसे शादी से पहले जीती थी ....मैं तुम्हारे साथ हमेशा खड़ा हूं..."

अपने ससुर के मुंह से यह सब बातें सुनकर रीमा उनके गले लगकर जोरों से रोने लगी लेकिन आज उसकी आंखों में यह आंसू ख़ुशी के थे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract