"रिवाज या लालच "
"रिवाज या लालच "
"हैलो समधन जी! कैसी हैं आप? मैंने सोचा कि आपको याद दिला दूं कि शिखा की गोद भराई आने वाली है| सब तैयारी हो गई है ना? देखना हमारा सबके सामने तमाशा ना बने" शिखा की सास लता जी ने फोन पर कहा|
दूसरी तरफ शिखा की मां साधना जी अपनी समधन के मुंह से तमाशा बनने वाली बात सुनकर दुखी हो गईं| गुस्सा तो बहुत आया लेकिन बेटी की सास को कुछ कह दिया तो बाद में बेटी को ही परेशानी होगी यह सोच कर उन्होंने खुद पर संयम रखकर कहा|
"आप चिंता ना करें... सब तैयारियां अच्छे से चल रही है। आप तो बस हमारी बेटी शिखा का ध्यान रखें|"
"हां ..हां जरूर ! क्यों नहीं ,आखिर आपकी बेटी हमारी बहू भी तो है" कहकर शिखा की सास ने फोन काट दिया
साधना जी परेशान हो गई क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही तीज का त्योहार गया था । जिस पर उन्होंने अपनी बेटी के ससुराल वालों के लिए खाने - पीने का सामान और कपड़े वगैरह सब भिजवाया था।
शादी को 2 साल हो गए। लेकिन हर त्योहार पर बेटी की सास लता जी कुछ ना कुछ लेने के बहाने ढूंढते रहती थी।
हर बार कोई न कोई रिवाज बता कर अपना लालच पूरा करती थी।
साधना जी सब समझती थी लेकिन जहां बात रीति- रिवाज की आ जाए..वहां चुप रहने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था।
शिखा उनके घर की बड़ी बेटी थी। उसके दो छोटे भाई- बहन भी थे और दोनों ही पढ़ाई कर रहे थे। उन दोनों का भी काफी खर्चा होता था और साथ ही में शिखा के पापा की बैंक कलर्क की नौकरी में तनख्वाह भी बहुत ज्यादा नहीं थी। लेकिन फिर भी वह अपनी हैसियत से ज्यादा ही बेटी को देते थे।
शिखा को अपने घर की स्थिति के बारे में अच्छे से पता था। उसने अपनी सासू मां से बात करने की कई बार कोशिश की लेकिन उसकी सासू मां का एक ही जवाब होता था
यह तो हमारे घर का रिवाज है... अगर तुम्हारे मां -बाप यह रीति रिवाज भी नहीं निभा सकते हैं... और थोड़ा सा देने में भी कंजूसी करते हैं तो इसमें मैं क्या कर सकती हूं.... हमारी रस्मो रिवाज तो उन्हें पूरी करनी ही पड़ेगी। और इस घर की बहू होने के नाते तुम्हारा भी यही फर्ज बनता है कि तुम इस घर के तौर तरीके अच्छे से अपना लो..."
सासू मां से तर्क- वितर्क करना शिखा को अच्छा नहीं लगता था। उसे अच्छे से पता था कि उसकी कही हुई बातों का उसकी सासू मां पर कोई असर नहीं होने वाला..
कई बार उसने अपने पति लोकेश से भी बात करने की कोशिश की। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि इस मामले में जब भी लोकेश अपनी मां से बात करता तो घर में बवाल आ जाता। घर के बड़ों के बीच की बात कहकर लता जी उसे भी चुप करवा देती...
फिर गोद भराई की रस्म का दिन आया। शिखा के मम्मी -पापा ने अपनी तरफ से सारा सामान बहुत अच्छे से दिया। लेकिन फिर भी लता जी ने उस में कुछ ना कुछ कमी निकाल ही दी। क्योंकि उनका लालच दिन- प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था।
फिर भी उन्होंने जाते जाते सबको सुना ही दिया
"इस बार तो हुआ सो हुआ.... मैं कुछ नहीं कहूंगी.. लेकिन बच्चे के होने पर तो कम से कम हमारा मान सम्मान अच्छे से कर देना... और जो भी लाना हमारे रीति-रिवाजों को ध्यान में रखकर ही लाना...."
यह बात सुनकर शिखा के घर वालों को बहुत गुस्सा आया। लेकिन हंसी-खुशी का माहौल ना बिगड़े इसलिए सब चुप ही रहे। क्योंकि लता जी की आदत से आप सब वाकिफ हो चुके थे।
फिर धीरे-धीरे वक्त गुजरता गया। शिखा ने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया। सारी रस्में अच्छे से निभाई गई।
फिर घर में शिखा की ननद अनु की शादी की बात चलने लगी। और देखते-देखते अनु का रिश्ता पक्का हो गया। सगाई के बाद जल्दी शादी का मुहूर्त निकल गया। घर में शादी की तैयारी जोर- शोर से चलने लगी।
सब रस्मों रिवाजों के अनुसार शादी निपटने के बाद... एक दिन अनु की सासू मां अनु के घर मिलने अाई। शिखा और लता जी ने उनका खूब अच्छे से स्वागत किया।
धीरे-धीरे बातें होने लगी। फिर अनु की सासू मां ने कहना शुरू किया
देखिए समधन जी! शादी का माहौल था.. और आप लोग भी काफी व्यस्त थे इसलिए मैंने उस समय कुछ नहीं कहा...। लेकिन आपने हमारे रीति रिवाजों का बिल्कुल भी सम्मान नहीं किया... और ना ही हमारे रहन-सहन के हिसाब से लेन-देन किया.... हमारे सब रिश्तेदारों के सामने आपने हमारी बेइज्जती करवा दी..."
यह सुनकर लता जी सदमे में आ गई
"लेकिन समधन जी! हमने अपनी तरफ से सब कुछ बहुत अच्छे से किया है। हमने अपनी बेटी की शादी में किसी भी तरह की कंजूसी नहीं की.... पता नहीं कहां कमी रह गई जो आपको पसंद नहीं आया..."
"देखिए लता जी! मेरा घर काफी संपन्न है और मुझे लेनदेन का कोई लालच नहीं है। लेकिन बेटी के ससुराल वालों की रिवाज तो किसी भी हाल में हर मां-बाप को निभाने पड़ते हैं। तो आप भी निभाइए..... और आगे से थोड़ा ध्यान रखना"”
यह सब बातें शिखा और लोकेश भी सुन रहे थे।
उनके जाने के बाद... लोकेश अपनी मां के पास बैठा, और कहने लगा
"मां! कहते हैं...दुनिया में हर चीज घूम फिर कर वापस जरूर आती है। आपने जो अपनी बहू के साथ किया या उसके मायके वालों के साथ जो किया... हुबहू वही आपकी बेटी के साथ हो रहा है.."
कल तक जब आप रिवाजों के नाम पर शिखा के मायके वालों से हर बार कुछ न कुछ सामान मंगवाती थी... जबकि आपको अच्छे से उसके घर के हालात के बारे में पता था..। मैंने बहुत बार आपको समझाने का प्रयास किया लेकिन आप तो समझने को तैयार नहीं थीं।
आज ठीक वैसे ही अनु के ससुराल वाले आपसे कोई ना कोई सामान मांग कर रहे हैं। भले ही आपने अपनी तरफ से अपनी बेटी को अच्छे से अच्छी चीजें दी हो लेकिन उसकी सासू मां को कुछ भी पसंद नहीं आया।
अब आपको कैसा लग रहा है..? चाहे कुछ भी हो अपने शौक और अपना घर तो अपनी कमाई से ही चलता है। फिर दूसरे की कमाई और दूसरे की चीजों पर लालच क्यों करना। कोई दुखी होकर आपकी फरमाइश पूरी कर रहा है ताकि आप उसकी बेटी को परेशान ना करो.... क्या यह सही चीज है..?
अगर आप लालच ना दिखाती तो हो सकता है कि शायद अनु की सासू मां भी लालची ना होती...। आपकी बहू शिखा के माता-पिता भी आपकी बातों से इसी प्रकार दुखी होते होंगे जब आप उन्हें कम लेनदेन का ताना देती होंगी।
आज लता जी को सब बात समझ में आई।
फिर उन्होंने अपनी बहू शिखा का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा
"बेटा! मुझे माफ कर दे! मैं बेटे की मां बनकर लालच में आ गई थी। मुफ्त का सामान देखकर ...और पाने की लालसा के चक्कर में अपने ही रीति-रिवाज बनाए जा रही थी।
आज मेरे साथ ऐसा हुआ तब मैं महसूस कर पा रही हूं कि तुम्हारी मां पर भी यही सब बीता होगा। अब से मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी। मैं दिल से तुझसे माफी मांगती हूं....
शिखा भी यह सब सुनकर अपनी सासू मां के गले लग गई और उनके रिश्ते में मिठास वापस आ गई।
इस कहानी के माध्यम से मेरा उद्देश्य किसी की व्यक्तिगत भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। कुछ सास बहुत अच्छी होती हैं जो लेनदेन में कम ही विश्वास रखती हैं।
लेकिन आज भी दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो रिवाज के नाम पर बहू के मायके वालों से कुछ ना कुछ चीजें लेने के चक्कर में रहते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि यह रिवाज घर परिवार के सदस्यों को आपस में करीब लाने के लिए होते हैं ना कि इन रस्मों के नाम पर दूसरों से कुछ ना कुछ पाने की उम्मीद करना....।