Priyanka Mudgil

Inspirational Children

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Priyanka Mudgil

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आखिर कब तक..??

आखिर कब तक..??

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"अभी भी समय है...अभी भी देर नहीं हुई है...अब भी अगर आप चाहो तो अपने सपने को पूरा कर सकती हो मम्मा.." 16 वर्षीय निक्की ने अपनी मां रागिनी से कहा

"नहीं बेटा! सब क्या सोचेंगे...?"

"सब क्या सोचेंगे ....सब क्या कहेंगे...अब तक ये सोच सोचकर आप अपना मन ,अपनी इच्छाओं को मारती आई हो मम्मा....आखिर कब तक....."

ये बोलकर निक्की गुस्से में अपने कमरे में चली गई।

रागिनी वहीं बैठी बैठी कुछ सोच रही थी। आज बहुत उदास थी वो...लेकिन निक्की का कहा एक एक शब्द अब उसके कानों में गूंज रहा था।


सही तो कहा मेरी बेटी ने...आखिर कब तक.... मैं सबके लिए अपनी खुशियों की बलि देती रहूंगी । जब भी घर में कोई दूसरा सदस्य कुछ काम या अपने मन की करना चाहता ...तो पूरा परिवार उसका साथ देता। लेकिन बात जब रागिनी की इच्छाओं की होती, तो हर किसी का मुंह फूल जाता..


आइए मिलते है रागिनी से..

विनायक जी और वसुधा जी के घर की बड़ी बहू थी रागिनी।

अपने बड़े बेटे आशीष के लिए एक नजर में ही रागिनी , वसुधा जी को बहू के रूप में पसंद आ गई थी। ग्रेजुएशन करते ही रागिनी की शादी हो गई। वो आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन घरवालों के निर्णय के आगे उसकी एक न चली। फिर भी वसुधा जी ने रागिनी से कहा कि वो शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकती है...या जो उसकी मर्जी हो वो कर सकती है...उन्हें कोई एतराज नहीं है..

ये सुनकर तो रागिनी जैसे सातवें आसमान में थी कि उसे ऐसी सास मिल रही है जो उसकी इच्छाओं का सम्मान करती है।


लेकिन शादी के बाद जब उसने पढ़ने की इच्छा जताई तो उसे कोई न कोई बहाना बनाकर टाल दिया जाता और वो मन मसोसकर रह जाती। उसका पति आशीष अगर उसका साथ देता तो घर में कलह हो जाती। इसलिए  रागिनी ने अपनी खुशियां त्याग दी। वो दो बच्चों की मां भी बन गई।

सब काम करती,सबका ख्याल रखती...लेकिन मन में एक कसक सी थी। जब बच्चे बड़े हुए तो उसने सोचा कि क्यों ना छोटी मोटी नौकरी ही कर लूं, जिससे मुझे सुकून मिले।

तब सासू मां और ससुर जी का जवाब आया, "भले घर की बहुएं बाहर जाकर नौकरी नहीं करती...आखिर तुम्हें क्या कमी है यहां ... अपना घर और बच्चे संभालो यही तुम्हारा काम है""

रागिनी विरोध नहीं कर पाई और फिर आंसुओं के घूंट पीकर रह गई।


कुछ साल बाद घर के छोटे बेटे योगेश की शादी हुई और शालिनी घर की छोटी बहू बनकर आ गई। सबने शालिनी का धूमधाम से स्वागत किया। रागिनी भी शालिनी को अपनी देवरानी के रूप में पाकर बहुत खुश थी । उसे लगता था कि जैसे कोई और घर में ऐसा व्यक्ति आने वाला है जो उसके मन की तकलीफ को शायद समझ पाए।

शालिनी शादी से पहले नौकरी करती थी और शादी के बाद भी उसने अपने नौकरी पर जाना जारी रखा। अब धीरे-धीरे सासू मां का रवैया बदलने लगा था। जहां वह रागिनी को बात-बात पर टोकती रहती थी, वही शालिनी की हर बात में हां से हां मिलाती। रागिनी को यह सब देख कर बहुत हैरान होती।

अगर सासू मां उसकी देवरानी से कुछ भी कहती ....तो देवरानी दो टूक का जवाब देकर सासू मां का मुंह बंद कर देती थी। यह सब देख कर भी रागिनी की हिम्मत नहीं होती थी कि वह अपनी देवरानी की तरह सासू मां को जवाब दें या उनकी बातों को अनसुना कर दे।

अब देवरानी को भी एक बेटा हुआ तो उसको संभालने की जिम्मेदारी भी रागिनी के ऊपर आ गई ।


सासू मां कहती ," शालिनी ऑफिस में इतना काम करती है... पूरा दिन तक जाती है बेचारी.... क्या क्या करेगी वो..? जहां तुम अपने दो बच्चों को खाना खिलाती हो वहां एक बच्चा और सही.... क्या फर्क पड़ता है तुम्हें..... कौन सा कोई बाहर ऑफिस का काम करने जाना पड़ता है ..""

रागिनी का मन होता कि वह बोल दे ....लेकिन घर की शांति के लिए अक्सर चुप ही रह जाती।


एक दिन आशीष ने रागिनी को अपने पास बिठाकर कहा, " देखो रागिनी! अपनी खुशियों के लिए तुम्हें आवाज उठानी ही पड़ेगी। जहां मैं तुम्हारे लिए बोल पड़ता हूं, वहां तुम चुप्पी साध लेती हो। ऐसा कब तक चलेगा... अगर तुम भी कुछ करना चाहती हो तो मेरा तुम्हें पूरी तरह से सपोर्ट मिलेगा..""

रागिनी बस मुस्कुरा कर रह गई।

क्योंकि धीरे-धीरे उसकी मन की इच्छा मरती जा रही थी। अब तो रागिनी की बेटी भी 16 साल की हो चली थी।


आइए अब चलते हैं वर्तमान में...

एक दिन घर पर रागिनी और उसकी बेटी निक्की के अलावा कोई भी नहीं था। निक्की अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थी और रागिनी अपना काम निपटाकर कुछ देर के लिए गाने सुनने बैठी।

तभी उसका मनपसंद गाना बजा और वह उठकर डांस करने लगी। उसे ध्यान ही नहीं रहा कि निक्की उसे छुप-छुपकर देख रही है।

आज निक्की ने भी पहली बार अपनी मां को इतना खुश देखा था । वह दौड़ कर रागिनी के गले लगकर कहने लगी

" वाह मम्मा! आप कितना अच्छा डांस करती हो .....आपने पहले क्यों नहीं बताया कि आपको डांस करना आता है..?"


तब रागिनी ने बताया," मुझे बचपन से ही डांस करने का बहुत शौक रहा है । मेरी शादी होने तक भी मैं डांस सीखती थी और आसपास के बच्चों को सिखाती थी। डांस मेरा जुनून है ...मुझे बहुत खुशी देता है.... मैं चाहती थी कि मैं एक डांस एकेडमी खोलूं जहां बच्चों को डांस सिखाऊं "

" वाव मम्मा! बहुत अच्छी बात है.... मैं पापा से बात करती हूं"


तभी रागिनी ने कहा, "नहीं निक्की बेटा, पहले की बात और थी ....अभी ये सब मेरे बस का नहीं है.."

"आप ऐसा क्यों सोचते हो..मम्मा? मैंने देखा की जब आप डांस करते हो तो आपके चेहरे की खुशी और आपकी आंखों की चमक आज से पहले मैंने पहले कभी नहीं देखी....

आप एक बार सबसे बात करके तो देखिए.."

"कोई फायदा नहीं है निक्की..... जो जैसा है वैसा ही चलेगा । अब मुझे इन सब चीजो की आदत हो गई है" उदास होकर रुआंसी हो गई रागिनी


लेकिन फिर भी निक्की की बातों ने रागिनी के मन पर गहरा असर किया और रागिनी के सपनों को जैसे पंख लग गए थे। अबकी बार जब सबने रागिनी का विरोध किया तो निक्की ने अपनी मां का पूरा साथ दिया और रागिनी भी पूरे आत्मविश्वास के साथ सबके सामने खड़ी थी। इसलिए सबको इस बार उसका साथ देना ही पड़ा।


तभी आशीष ने रागिनी को आवाज दी, "रागिनी! आज खाने में कितनी देर करोगी.. बहुत जोरों से भूख लगी है"

रागिनी में निक्की की ओर देखकर कहा," देर भले हुई है... लेकिन अभी भी समय है... आप डिनर आराम से कर सकते हैं... खाना तैयार है "कहकर रागिनी हंसने लगी।

हर रोज की तरह आज भी वह घर के कामों में लगी थी लेकिन आज उसका मन खुशी से झूम रहा था कि आज वह अपने सपने पूरा करने जा रही थी वह भी अपनी बेटी की वजह से...


प्रिय पाठकगण! हमारे जीवन में कोई ना कोई ऐसा जरूर होता है जो हमारी इच्छाओं और खुशियों का सम्मान करता है । आपके जीवन में ऐसा कौन है जिसने आपका इस तरह से साथ दिया हो। अपनी खुशी के लिए कई बार हमें खुद भी कदम उठाना पड़ता है...क्योंकि आखिर कब तक... हम स्त्रियां अपनी खुशियों को कुर्बान करती रहेंगी..?



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