सरगी
सरगी
सीमा परेशान इधर उधर घर में घूम रही है, कभी भगवान के सामने जा खड़ी होती कभी बालकनी में।
दरवाजे की घंटी बजते ही उसने दौड़ कर दरवाजा खोला, रमेश को सही सलामत खड़ा देख चैन की सांस ली।
सीमा दुख मिश्रित गुस्से में लगभग चिल्लाते हुए बोली- "कहाँ रह गए थे? पता भी है कितनी देर हो गईं? मैं कितनी परेशान थी, कैसे-कैसे खयाल आ रहे थे?"
रमेश सीमा को जोर से धक्का दे कर लड़खड़ाते हुए अंदर कमरे में चल गया। सीमा का सिर मेज के कोने से टकराया और उसके माथे से खून बहने लगा, वह दोनों हाथों से माथा पकड़ कर खून को रोकने की कोशिश करने लगी, तभी घड़ी पर नजर गई ढाई बजे रहे थे। वह सरगी खाने के लिए रसोई में जाने के लिए उठ खड़ी हुई। क्योंकि संस्कारों में बंधे होने के कारण आज वह अपने आत्मसम्मान के हत्यारे के लिये करवा चौथ का व्रत जो रखने जा रही थी।