सर्दी लगती है
सर्दी लगती है
दो मित्र कृष्ण और पार्थ एक बाइक पर सवार होकर किसी धार्मिक स्थल पर भ्रमण को निकले। दोनों ही अमीर परिवार से हैं। सर्द मौसम में धीरे धीरे रास्ते में इधर उधर की बातें करते हुए चले जा रहे हैं।
यहां यह महत्वपूर्ण है कि बाइक कौन चला रहा है, क्योंकि सर्दी बहुत है और कोरोना महामारी के कारण यातायात के साधन नहीं चल रहे है, जाना भी बहुत दूर तक है, पास ही जाना होता तो पैदल भी चला जा सकता है, इसलिए बाइक से ही यहां वहां जा सकते हैं। बाइक का फायदा यह है कि इससे समय की बचत होती है और संकरे रास्तों से भी इससे आसानी से गुजरा जा सकता है।
जब महाभारत के नायक श्री कृष्ण, पार्थ(अर्जुन) का रथ चला सकते हैं तो यहां भी बाइक कृष्ण ही चला रहा है और जाहिर है कि सर्दी कृष्ण को ही अधिक लग रही है।
सड़क के एक तरफ पर्वत श्रृंखला और दूसरी तरफ हरे भरे लहलहाते खेत, बड़ा सुन्दर और मन को हर्षित करने वाला दृश्य है ना। पार्थ ही है जो चारों ओर देखकर इस दृश्य का आनंद उठा सकता है, कृष्ण को तो बस सामने देखकर ही बाइक जो चलानी है, नहीं तो सावधानी हटी और दुर्घटना घटी वाली बात हो जायेंगी। पार्थ पर्वतों की तरफ देखकर कृष्ण से कहता है कि यार कहते हैं जहां पर्वत होते हैं, वहां जब सूर्योदय होता है तो पर्वतों के बीच सूर्य बहुत ही सुन्दर लगता है, क्या तुमने कभी ऐसा देखा है, अगर मुझे कभी मौका मिले तो मैं पर्वतों के बीच से सूर्योदय होता हुआ देखना चाहता हूं। तब कृष्ण कहता है कि मैंने भी सिर्फ ऐसा मोबाइल के फोटो में ही देखा है और तुझे भी पता है ही कि मेरा फेसबुक और वॉट्स ऐप का प्रोफाइल फोटो भी यही है और कृष्ण आगे कहता है कि मेरे पिता अपने अनुभव से कहते हैं कि जहां अगर पर्वत होते हैं वहां सूर्योदय पर्वतों के बीच से होकर ही होता है।
ये तो बहुत ही आश्चर्यजनक है "ऐसा पार्थ कृष्ण से कहता है।
इसी तरह बातें करते हुए वे आखिर अपने गंतव्य स्थल तक पहुंच जाते हैं। वहां पर बनी बावड़ी, कुंड और बरगद और पीपल के पेड़ो को देखते ही रह जाते हैं।
इसी बीच कृष्ण जो कि मोबाइल का ज्यादा शौकीन था, उसने अपना मोबाइल निकाला और फोटो खींचने लगा और सभी फोटो को फेसबुक पर शेयर कर दिया। इस तरह बड़ी प्रसन्नता से इधर उधर की बातें करते हुए सुन्दर दृश्यों का आनंद लेते हैं।
इसी तरह बातों बातों में दिन कब ढलने लगा ,पता ही नहीं चला, पर जब एक अजनबी पर्यटक (जो कि एक बहुत सुन्दर लड़की थी) ने कृष्ण से पुछा कि "हैलो यू समय कितना हुआ है। तब पता चला कि शाम के साढ़े तीन बज चुके थे पर कृष्ण ने पहले नहीं बताया और ये कहां कि आपको भी अंग्रेजी मेरे जैसे ही आती है, तब लड़की ने कहा कि वो कैसे तो कृष्ण ने कहा कि मैं भी शुरू में दो शब्द अंग्रेजी के बोल के हिन्दी बोल देता हूं, अभी समय तो साढ़े तीन बज गए हैं, लड़की तब कहती हैं कि ओके नाइस, तब कृष्ण कहता है कि वो हैलो अपना नाम तो बताओ तब लड़की ने बताया कि उसका नाम कृष्णा है, तब पार्थ से रहा नहीं गया और बीच में बोलते हुए कहा कि हैलो मेम! तब तो आपको हमसे और भी बातें करनी चाहिए।
क्यों भला "ऐसा कृष्णा ने कहा,
क्योंकि संयोग से मेरे मित्र का नाम कृष्ण है इसलिए पार्थ बोला।
वाह सो स्वीट " ऐसा कृष्णा ने कहा और उन्होने आपस में कहां से आए हो, क्या करते हो, कहां तक पढ़ें हो ,इस तरह की सामान्य जानकारी वाली अनेक बातें की। और इसी तरह समय बीतता गया तब कृष्णा ने कहा कि तुमको वापस नहीं जाना क्या क्योंकि तुम बहुत दूर से आए हो तो सर्दी में ठीठूर नहीं जाओगे।
हां! तुम सही कहती हो, चलो पार्थ अब हमें चलना चाहिए।
थोड़ा रुको ! क्या मैं भी आपके साथ चल सकती हूं, मुझे भी आपके शहर ही चलना है, कृष्णा कहती हैं।
पार्थ थोड़ा संकोच में था पर अपनी बात कहने से पहले ही कृष्ण कह देता है कि तुमको एतराज नहीं है तो बेशक, बिना डरे चल सकती हो। तब कृष्णा बाइक पर बैठ जाती है लेकिन इस बार एक परिवर्तन यह होता है कि बाइक पार्थ चला रहा होता है।
परिस्थितियां कब बदल जाए कोई नहीं कह सकता, रास्ते तो है अपनी ही जगह ,पर चलकर तो हमें जाना होता है और इसी बीच अजनबियों से बातें जीवन को आनंदित करती है। हम हमारे अपनों से कहां बातें कर पाते हैं क्योंकि बातें करने का समय ही कहां मिल पाता है, गांवों में तो साथ में खेती का काम करते हुए आपस में बातें हो ही जाती है पर शहरों में हालत तो बहुत खराब होती, माता पिता भी नौकरी में किसी ऑफिस में काम कर रहे होते हैं या कोई काम ढूंढ रहे होते हैं और बच्चे तो अपने भविष्य की चिंता में किसी कोचिंग सेंटर में ट्यूशन जा रहे होते हैं या फिर अपने मोबाइल में ऑनलाइन पढ़ते कम गेम ज्यादा खेल रहे होते हैं। शहरों में स्वयं के जीवन की जिम्मेदारी स्वयं को ही उठानी होती है।
बाइक पर चलते चलते अचानक पार्थ गाने लगता है कि" दो एकम दो, दो दूनी चार, बहुत सर्दी लग रही है मेरे यार"
तब जवाब में कृष्णा गाती है " तीन एकम तीन, तीन दूनी छह, थोड़ा रुक कर फिर चलते हैं।
तब तीनों एक साथ ठहाका लगाते हैं तब तक पार्थ से भी बाइक की रेस कम हो जाती है और बाइक अपने आप रूक जाती है।
तब कृष्ण कहता है कि लो बाईक भी अब कृष्णा की बात मानने लगी। इतना कहते ही तीनों जोर से ठहाका लगाते है।
थोड़ी देर बाद पास ही के गांव के एक बुजुर्ग किसान गुजरते हुए कहता हैं कि आप लोगों कि बाईक तो पंक्चर हो गई है।
इतना सुनते ही तीनों के होश उड़ गए और तीनों एक साथ कहते हैं क्या सच में,और एक दूसरे का मुंह देखने लग जाते हैं जैसे कि पहली बार देखा हो।
तब बुजुर्ग किसान से रहा नहीं गया और कहा कि अब तो सूर्यास्त हो गया है और बाइक को ठीक करने के लिए भी बहुत दूर तक जाना पड़ता है, और रास्ते में चोर-लूटेरे भी बहुत है तो मेरी मानो आज रात मेरी झोंपड़ी जो की वो सामने दिख रही है में रात गुजार सकते हो।
तीनों ने आपस में सलाह की तीनों यहीं रुकने पर सहमत हुए और पार्थ बुजुर्ग किसान से बोलता है कि ठीक है अंकल आपका धन्यवाद। तीनों ने रुकने के लिए हामी तो भर दी पर किसान के यहां तो सर्दी से बचने के लिए जो कुछ वस्त्र थे वे जूट के रेशों से बने हुए थे, जूट के रेशे जिनको छूते ही खुजली होती है तो उनको ओढ़कर कैसे पुरी रात बीतेगी। इस समस्या से निजात पाने के लिए कृष्णा ने किसान अंकल से कहा कि अब आप ही कुछ करें हमने ऐसे वस्त्र धारण करने तो दूर देखें भी नहीं है।
तब किसान अंकल ने कहा कि यहां इसका एक ही उपाय हो सकता है और वह ये कि मैं यहां अग्नि जला देता हूं और आपको इसके चारों ओर बैठकर ही पुरी रात गुजारनी होगी
"सिर्फ हमको आप कहां जायेंगे अंकल "ऐसा कृष्णा ने डरते हुए कहा।
तब किसान अंकल ने कहा कि घबराओ मत ये सामने जो खेत है मैं इनमें पुरी रात जागकर सिंचाई करूंगा यदि मैं आज सिंचाई नहीं कर पाता हूं तो फिर एक महीने तक अपने खेतों को नहीं सींच पाऊंगा, वैसे मैं यहीं हूं सामने और थोड़ी थोड़ी देर में इधर अपनी सर्दी मिटाने को आता रहूंगा, आप लोग अग्नि जलायें रखना और बिल्कुल भी चिंतित मत होना।
इतना कहते ही किसान अंकल लकड़ियों का गट्ठर उनके पास रख कर चले जाते हैं।
इसके बाद पार्थ कृष्ण से कहता है कि आज मेरी और तुम्हारी एक इच्छा भी पूरी हो जाएगी।
कृष्ण के कुछ कहने से पहले ही कृष्णा ने कहा कि कौन सी इच्छा?
यहीं कि सुबह सूर्य को पर्वतों के बीच से उदय होने की इच्छा "पार्थ ने कहा।
वो तो मैं भी देखना चाहूंगी , क्योंकि हर पर्वतों वाले स्थानों पर सूर्योदय एक अनोखे अंदाज में दिखाई देता है कृष्णा ने कहा।
कुछ देर सन्नाटा छा जाता है , अंधेरा धीरे धीरे गहराता है।
और फिर चन्द्र देव का उदय होता है। इसी बीच कृष्णा के मोबाइल की रिंग बजती है "जब चांद सनम छत पर आये"
और कृष्णा थोड़ी दूर जाकर मम्मी से बात करती है तो कहती है कि मैं मेरी सहेली के यहां रूकी हुई हूं आप चिंता ना करे, इतना कहकर कॉल कट कर देती है।
कृष्णा के आते ही कृष्णा को लक्ष्य कर पार्थ कहता है कि कितने सुंदर लग रहे हैं ना चन्द्र देव , इतना सुन्दर भी कोई होता है, मेम आपकी तरह। कृष्णा मुस्कुरा कर बात टालते हुए कहती हैं कि मुझे बहुत सर्दी लग रही है।
इसी बीच कृष्ण कहता है कि सच में मुझे भी बहुत लग रही है।
"हमें अग्नि के पास भी इतनी सर्दी लग रही है तो उन किसान अंकल का क्या हाल हो रहा होगा, वो थोड़ी थोड़ी देर में आने को कह गए पर अभी तक नहीं आये, कृष्ण तुम जरा अपने मोबाइल की फ्लैशलाइट ऑन करो , तुम्हें नहीं लगता कि हमें उनको खोजना चाहिए " पार्थ संकोच में नि:श्वास मे अपनी बात कहता है।
अरे हां! बातों बातों में हम तो उन्हें भूल ही गये , कृष्ण ने कहा।
ये आदत सबकी होती है की दो कठिन परिस्थितियों में से किसी एक को चुनना हो तो कम कठिन को ही चुन लिया जाता है।
क्या सर्दी और क्या खुजली साहब तीनों ने जूट के रेशों से बनें वस्त्र (कम्बल या चादर) ओढ़े और ऐसे किसान अंकल को ढूंढने निकले जैसे कि धर्मात्मा युधिष्ठिर सत्य को खोजने के लिए महात्मा विदुर के पीछे गये थे, बहुत खोजने के बाद किसान अंकल खेत की मेड पर बेहोश पड़े हुए मिलें, किसान अंकल दुबले पतले ही थे तो कृष्ण और पार्थ ने उनको आसानी से उठा लिया और अग्नि के पास ले आये, पर होश न आने से तीनों बहुत ही घबराहट से इतनी सर्दी में भी पसीने से लथपथ हो गये।
कृष्णा कुछ हिम्मत करके बोलती है कि पार्थ तुम जो कह रहे थे कि चांद कितना सुन्दर है, यह चांद ऐसे अनेक किसान अंकलो की मेहनत को देखकर ही गर्व से चमकता है क्योंकि ये किसान अंकल अगर इतनी मेहनत नहीं करते हैं तो चांद को भी कौन चांद सनम और कौन चंदा मामा कह पाता। और कोई स्वयं पर गर्व तभी तो करता है कि कोई उसकी प्रशंसा करें। पर ऐसे किसान अंकलो की कभी भी प्रशंसा करते हुए मैंने किसी को नहीं देखा, स्वयं अभावों में रहकर भी दूसरों के अभाव मिटाने को हमेशा तत्पर रहते हैं , जैसे कि हमें भी आज अगर ये सहारा नहीं देते तो हमारा भी यहीं हाल होता, अब तो चन्द्र देव से प्रार्थना है कि अपनी कृपा से इनको होश में ले आये क्यों कि जब ये बेहोश हुए थे तब चन्द्र देव ही साक्षी थे कि इनके साथ क्या हुआ। इतना कहते हुए कृष्णा अपनी हथेलियों को गर्म करके किसान अंकल कि हथेलियों को आपस में रगड़ती है।
कुछ समय निकलने पर सूर्य देव पर्वतों से होकर जैसे ही निकलने लगे तो किसान अंकल भी होश में आ गये, जैसे की चन्द्र देव बड़े भाई से कह गये हो कि मैं तो शीतल यानि शांत करता हूं ,अब आपको ही किसान अंकल में ऊर्जा का संचार करना होगा, होश में आते ही किसान अंकल ने बताया कि रात को नीलगायों ने फसल पर आक्रमण कर दिया, मैं उन्हें भगाने को दौड़ा, मैंने अपनी फसल को तो बचा लिया पर सांस फूलने के कारण मैं गिर के बेहोश हो गया, अगर आप लोग आज नहीं होते तो मैं नहीं बच पाता।
तब कृष्ण कहने लगता है नहीं अंकल आज अगर आप भी हमें सहारा नहीं देते तो हम भी नहीं बच पाते, बाइक का पंक्चर होना और आपकी इस नजर पड़ना एक अद्भुत घटना है अंकल।
धीमे और रूक रूक कर किसान अंकल कहते हैं कि हां बेटा! तभी तो कहते हैं कि थोड़ा बुरा क्या होता है कि इंसान जल्दी घबरा जाता है और ईश्वर को दोष देने लगता है।
और अंत में बाइक को ठीक करवाते समय पार्थ, कृष्ण से कहता है कि उगते सूर्य को पर्वतों के बीच से देखना मायने नहीं रखता है पर किसी राष्ट्र के उगते सूर्य रूपी किसानों को कठिनाइयों के पर्वतों से निकालना बहुत महत्वपूर्ण हैं।
हां पार्थ! मैंने भी तुम दोनों पर भरोसा करके कोई गलती नहीं की है और तुम मुझे आज से भाभी बुला सकते हो।
इतना सुनते ही कृष्ण ने कृष्णा को गले लगाकर कहा कि पार्थ तुम्हारी सर्दी असर कर गई।