सप्तऋषि
सप्तऋषि
भारत देश मे बहुत कठिन दौर चल रहा था। कोरोना से सारा देश सहमा हुआ था। ऐसे में एक छोटा सा पिछड़ा गाँव सीतापुर।
यह प्रकृति की संपदा से भरपूर, सभी का आपस मे भाई चारा व इंसानियत का रिश्ता। महिलाएं भी सुखी थी। इस गाँव मे छ दोस्त थे। बचपन से साथ मे खेले- पढ़े और अब हायर सेकेंडरी मे साथ मे जाते है। इन दोस्तों के नाम है अर्जुन जो की पुलिस बनाना चाहता है, दूसरा सोमेश जो की डॉक्टर बनकर गाँव की सेवा करना चाहता है, तीसरा तरुण जो बड़ा होकर अपने पिताजी का गैरेज संभालना चाहता है। चौथा है चिराग जो की पढ़ने मे कमजोर है पर कुछ बनकर अपने माता पिता की सेवा करना चाहता है । इसमे दो गाँव की लक्ष्मी व सरस्वती समान बहने भी थी। नीति बड़ी थी जो की खाना बनाने में निपुण थी और छोटी नियति थी जिसके पैर जमीं पर रहते ही नही थे क्योंकि वो आसमा को छूँना चाहती थी।
ये सारे दोस्त इस गाँव के बिगड़े माहौल से बहुत दुःखी थे। वो सब मिलकर इस विषम परिस्थितियों का मुकाबला कर रहे थे। अर्जुन, सोमेश्, तरुण व चिराग घर-घर जाकर स्वछता की जानकारी देते। बड़े- बुजुर्ग- महिलाओं व खास तौर पर बच्चो की देखभाल करते थे। नीति और नियति दोनों बहने गरीबों के लिए खाना बनाकर पहुँचा जाती। नियति अपनी पढ़ाई रात मे किया करती थी। इन सबकी मेहनत व जागरूकता की खबर धीरे- धीरे आस- पास के गाँव मे फैलने लगी। सभी नवयुवक व युवती इन दोस्तों से सबक लेकर अपने अपने गाँव मे स्वछता व जागरूकता अभियान चलाने लगे।
आखिर इन सबकी मेहनत रंग लाई और सीतापुर गाँव कोरोना मुक्त घोषित हो गया। पर उसी साल अर्जुन, सोमेश्, तरुण को पढ़ने के लिए शहर जाना पड़ा। गाँववालों ने खुशी की आँसु के साथ विदा किया।
आज उसी बचपन के गुलमोहर पुष्प के वृक्ष के नीचे ये सारे बाल मित्र इकठ्ठा हुए थे। समय के चक्र ने अर्जुन को खाकी वर्दी दी तो सोमेश् अपने श्वेत कोट मे मुस्कुरा रहा था। वही बगल मे तरुण नीले रंग के वस्त्र मे एक बड़े गैरज का मालिक बन कर खड़ा था। चिराग भी दूर से मुस्कुराता हुआ गर्व से सफाई कर्मी का अस्त्र लिए चला आ रहा था। नीति सबके लिए जश्न का केक बनाकर लाई थी। पर सबकी नज़र नियति का इंतज़ार कर रही थी।
अचानक एक बड़ी गाड़ी धूल उड़ाती हुई आई और इन पाँचों के पास आकर रुक गई। कार का दरवाजा खुला उसमे से जो शख़्स सियत उतरी वो कोई और नही विमान परिचारिका के गणवेश मे नियति थी....।
सबका जोरदार स्वागत पूरे गाँव मे किया गया। कोरोना काल की याद ताजा हुई, इन सभी दोस्तों की प्रशंसा व सराहना की गई। इन सभी ने अपने समूह को सप्तर्षि नाम दिया। सभी को बड़ा अचरज हुआ कि ये अर्जुन, सोमेश्, तरुण, चिराग, निति व नियति छ ही है तो सातवाँ कौन है?
अंत मे इन सभी दोस्तों ने मुस्कुराते हुए एक साथ उपर आसमा की तरफ इशारा किया और सभी ने सप्तर्षि का लिए तालियों की शोर के साथ स्वागत किया.....।