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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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स्पर्श

स्पर्श

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एक दिन प्रातःकाल एक सुंदर फुलवारी में प्राकृत के दिये हुए उपहार का आनंद ले रहा था। हल्की हल्की धूप पीछे से हरी हरी लताओं से छन छन के आ रही थी। मन हरी घास पर टांग कर खुद को खुले आसमान में छोड़ दिया था मैंने। और सुबह की सुगंधित हवा में खुद को तरोताजा महसूस कर रहा था। तभी एक नेत्रहीन बालिका ने सुंदर पुष्पों का एक गुच्छा छोटी सी डोलची से उठा कर जिनमें कुंद ,गुलाब और दशमत के फूल थे, मेरे हाँथो में रख दिया और बोल पड़ी "साहब बोहनी नही हुई है । आप इसे ले लीजिए सिर्फ बीस रूपये का फूल है।"


 मुझे उसकी बातें सुनाई दे रही थी, वह अंधी लड़की दिखाई दे रही थी पर उस एक क्षण मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मैं स्वयं वहाँ नही हूँ। कुछ सोचता समझता उससे पहले मेरे हाँथ ऊपर की जेब मे गए और दस दस की दो नोट निकाल लर मैंने उसके हाँथो में रख दिया। यद्यपि मुझे फूलों की कोई आवश्यकता नही थी उसदिन। घर का माली पूजा के फूल रोज घर पर ही पहुँचा जाता है पर उसके फूल बेचने की शैली में जो आकर्षक था उससे मैं बच न सका। 


उसने "धन्यवाद साहब..!" कहकर उन नोटों को अपने फ्रॉक की झुगली में रखते हुए डोलची मे हाँथ टटोलकर मेरी तरफ एक गुलाब का फूल बढ़ा दिया और कहा साहब "यह मेरी तरफ से बोहनी करवाने के लिए उपहार है।"


गुलाब के फूल का डंठल उसके हाँथ से अपने हाँथ में लेते लेते मेरी आँख छलछला आई और मैंने उसके सर पर हाँथ रखने के लिए अपने हाँथ बढ़ाते हुए उससे कहा


"क्या तुम्हे पता है..कि तुम इन फूलों से भी ज्यादा सुंदर हो।नाम क्या है तुम्हारा ..?" उसने अपने एक हाँथ से अपनी नाक को छूते हुए कहा साहब "रोहणी'..! नाम है मेरा। क्या आप सच कह रहे है..? मैं इन फूलों से भी ज्यादा सुंदर हूँ?" और कुछ सोचने लगी फिर अपनी टोकरी एक हाँथ में लेकर दूसरे हाँथ से अपने बालों को ठीक करती हुई आगे बढ़ गई। उसके कामलाकृत बाल चेहरे पर मुस्कान की एक निर्मल चमक थी। और उस चमक में उसका सम्पूर्ण मन तैरने लगा था। मैं खड़े खड़े उसे देखता रहा दूर तक जहाँ किसी और को वह अपनी सुंदर शैली में फूल बेचने लगी थी। 


उसका वह फूलों का गुच्छा और सुंदर उपहार लिए लिए मैं घर आ गया और रसोई में काम कर रही पत्नी के पास जाकर उन्हें उनके बालों में चुपचाप खोंस दिया। अब उसका उपहार और भी सुंदर लग रहा था। और पत्नी के भी चेहरे पर वही निर्मल मुस्कान तैर गयी जो उस फूल बेचने वाली छोटी लड़की के चेहरे पर मैंने देखा था दोनों में कोई अंतर था यह ठीक ठीक कह पाना मेरे लिए मुश्किल था।



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