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ritesh deo

Tragedy Inspirational

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ritesh deo

Tragedy Inspirational

एक चुभन

एक चुभन

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पुरानी साड़ियों के बदले बर्तनों के लिए मोल भाव करती सम्पन्न घर की महिला ने अंततः दो साड़ियों के बदले एक टब पसंद किया...


"नहीं दीदी, बदले में तीन साड़ियों से कम तो नहीं लूँगा।" बर्तन वाले ने टब को वापस अपने हाथ में लेते हुए कहा।


"अरे भैया, एक- एक बार की पहनी हुई तो हैं...बिल्कुल नई जैसी...! एक टब के बदले में तो ये दो भी ज्यादा हैं, मैं तो फिर भी दे रही हूँ..."


"नहीं, नहीं...तीन से कम में तो नहीं हो पायेगा, बर्तन वाला फिर बोला..."


एक दूसरे को अपनी पसंद के सौदे पर मनाने की इस प्रक्रिया के दौरान गृह स्वामिनी को घर के खुले दरवाजे पर देखकर सहसा गली से गुजरती अर्द्धविक्षिप्त महिला ने वहाँ आकर खाना मांगा...!


आदतन हिकारत से उठी महिला की नजरें उस महिला के कपड़ों पर गईं। अलग अलग कतरनों को गाँठ बाँध कर बनायी गयी उसकी साड़ी, उसके युवा शरीर को ढँकने का असफल प्रयास कर रही थी...! एकबारगी उसने मुँह बिचकाया पर सुबह-सुबह की याचक है, यह सोचकर अंदर से रात की बची हुई रोटियां मंगवायी और उसे रोटी देकर पलटते हुए उसने बर्तन वाले से कहा, "भैय्या क्या सोचा? दो साड़ियों में दे रहे हो या मैं वापस रख लूँ...!" बर्तन वाले ने उसे इस बार चुपचाप टब पकड़ाया और अपना गठ्ठर बाँध कर बाहर निकला...!


 अपनी जीत पर मुस्कुराती हुई महिला दरवाजा बंद करने को उठी तभी उसकी नज़र सामने की ओर गयी...! गली के मुहाने पर बर्तन वाला अपना गठ्ठर खोलकर उसकी दी हुई साड़ियों में से एक साड़ी उस अर्धविक्षिप्त महिला को दे रहा था। हाथ में पकड़ा हुआ टब अब उसे चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था...!


कुछ देने के लिए हैसियत नहीं, दिल बड़ा होना चाहिए....!!


आपके पास क्या है और कितना है, यह कोई मायने नहीं रखता है। आपकी सोच व नियत सर्वोपरि होना आवश्यक है। ये वही समझता है जो इन परिस्थितियों से गुजरा हो...!!


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