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ritesh deo

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"मनोवैज्ञानिक शोषण का जाल

"मनोवैज्ञानिक शोषण का जाल

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"मनोवैज्ञानिक शोषण का जाल: जब सहानुभूति हथियार बन जाती है"

आधुनिक समाज में रिश्तों की जटिलताएँ जितनी तेज़ी से बदल रही हैं, उतनी ही तेज़ी से भावनात्मक और मानसिक शोषण के नए तरीके उभरकर सामने आ रहे हैं। विशेषकर कुछ पुरुषों द्वारा महिलाओं के साथ किया गया भावनात्मक, मानसिक और आर्थिक शोषण एक ऐसा विषय है जिसे अक्सर "सहानुभूति" या "दया" की ओट में छुपा दिया जाता है।

यह लेख उन परिघटनाओं पर प्रकाश डालता है जहाँ कुछ चालाक पुरुष भावनात्मक रूप से असहाय, दुःखी या टूट चुकी महिलाओं को अपने जाल में फँसाकर धीरे-धीरे उनका शोषण करते हैं बिना कोई बाहरी हिंसा या ज़बरदस्ती किए। यह प्रक्रिया इतनी सूक्ष्म और धीमी होती है कि महिला को इसका अहसास तब तक नहीं होता जब तक वह पूरी तरह इस जाल में नहीं फँस जाती।

1. शुरुआत: बातचीत की मासूम परतें

शोषण की इस प्रक्रिया की शुरुआत बेहद सामान्य और मासूम लगती है। ये पुरुष अक्सर ऐसे स्थानों पर महिलाओं से संपर्क बनाते हैं जहाँ वे पहले से ही कमजोर मानसिक स्थिति में होती हैं जैसे कि:

सोशल मीडिया (जहाँ लोग अपने भाव साझा करते हैं),

कार्यस्थल (जहाँ लंबे समय तक संपर्क बना रहता है),

पड़ोस या जान-पहचान के दायरे में।

शुरुआत होती है हल्की-फुल्की बातचीत से “कैसी हो?”, “सब ठीक है?”, “आज उदास लग रही हो” जैसी बातें। ये पुरुष बहुत धैर्य से धीरे-धीरे महिला के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकारी इकट्ठा करते हैं खासकर उसके दुःख, संघर्ष, टूटे रिश्ते, पारिवारिक झगड़े आदि।

2. "सहानुभूति" की चादर में लिपटा विश्वास

एक बार जब महिला अपनी बात बताने लगती है, तो सामने वाला व्यक्ति एक "हमदर्द" का मुखौटा पहन लेता है। वह कभी किसी की बुराई नहीं करता ना उसके पति की, ना उसके माता-पिता की, ना समाज की। बल्कि कहता है, "तुम्हें अपने पति की बात माननी चाहिए", "माँ-बाप जो कहते हैं उसमें कुछ तो सोच होगी"।

इस तरह की बातें महिला के भीतर एक भ्रम पैदा करती हैं उसे लगता है कि यह व्यक्ति तो उसका भला ही चाहता है, किसी का बुरा नहीं चाहता। धीरे-धीरे महिला इस व्यक्ति से अपनी बातें शेयर करने की आदती हो जाती है। यह वही 21–25 दिन की "आदत" की साइकोलॉजिकल थ्योरी है अगर कोई चीज़ लगातार कुछ समय तक की जाए, तो वह दिनचर्या बन जाती है।

3. नियंत्रण और निर्भरता का ताना-बाना

अब संबंध एक ऐसे मुकाम पर पहुँचता है जहाँ महिला अपनी भावनात्मक निर्भरता उस पुरुष पर बना चुकी होती है। उसे लगता है कि वह ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो उसे समझता है, सुनता है और समर्थन करता है।

यहीं से शोषण की प्रक्रिया शुरु होती है:

मानसिक शोषण: धीरे-धीरे वह पुरुष महिला की सोच पर नियंत्रण करने लगता है “वो लोग तुम्हें कभी नहीं समझेंगे”, “तुम्हारा दिल बहुत अच्छा है, पर दुनिया मतलबी है”, “अगर तुमने मेरी बात मानी होती तो…” जैसी बातें कहकर guilt और dependency दोनों को बढ़ाता है।

शारीरिक शोषण: फिर वह सहानुभूति के बहाने निकटता बढ़ाता है कभी गले लगाना, कभी हाथ पकड़ना, और फिर धीरे-धीरे संबंध को शारीरिक स्तर पर ले जाना। चूंकि महिला पहले ही भावनात्मक रूप से जुड़ चुकी होती है, वह विरोध नहीं कर पाती, या फिर समझ नहीं पाती कि ये सब उसकी इच्छा के विरुद्ध हो रहा है।

आर्थिक शोषण: कई बार यह पुरुष महिला से पैसों की माँग करने लगता है "मैं अभी मुश्किल में हूँ", "अगर तुम मदद नहीं करोगी तो मैं टूट जाऊँगा", या "ये हमारा ही तो पैसा है" जैसे वाक्य कहकर उसे आर्थिक रूप से भी शोषित करता है।

4. भ्रम और अपराधबोध का चक्र

सबसे खतरनाक स्थिति तब आती है जब महिला को धीरे-धीरे ये अहसास होने लगता है कि वह शोषण का शिकार हो रही है। लेकिन उस समय तक वह इतनी guilt, शर्म और भ्रम में घिर चुकी होती है कि वह इस स्थिति से निकलने का साहस नहीं जुटा पाती।

उसे लगता है, “शायद मुझसे ही गलती हुई है”

“अब तो मैं बहुत आगे बढ़ चुकी हूँ, वापस कैसे जाऊँ?”

“कहीं मैं ही गलत तो नहीं समझ रही?”

यह सब भावनाएँ उस पर इतना मानसिक भार डाल देती हैं कि वह या तो खुद को पूरी तरह उस व्यक्ति के हवाले कर देती है, या फिर पूरी तरह टूट जाती है।

5. समाधान और सतर्कता की राह

इस प्रकार के मानसिक और भावनात्मक शोषण से बचने के लिए निम्न बिंदु महत्वपूर्ण हैं:

भावनात्मक रूप से सचेत रहें: कोई भी व्यक्ति जो सिर्फ "सुनने" और "समझने" का नाटक करता है, जरूरी नहीं कि वह सच में हितैषी हो।

अपनी बातें सिर्फ भरोसेमंद और पुराने संबंधों में साझा करें, नए लोगों के साथ जल्द भावनात्मक खुलापन न दिखाएं।

स्वावलंबी बनें: अपनी पहचान, आत्मबल और आर्थिक स्वतंत्रता को बनाए रखना सबसे बड़ा बचाव है।

रेड फ्लैग्स पहचानें: अगर कोई व्यक्ति बहुत जल्दी भावनात्मक नज़दीकियाँ बढ़ा रहा है, तो यह संकेत हो सकता है कि उसके इरादे शुद्ध नहीं हैं।

समय-समय पर आत्ममंथन करें: क्या यह रिश्ता आपको मजबूत बना रहा है या और कमजोर?

हर सहानुभूति सच्ची नहीं होती, और हर "अच्छा व्यवहार" निष्कलंक नहीं होता। यह आवश्यक है कि महिलाएँ न केवल बाहरी शोषण से, बल्कि अंदर ही अंदर होने वाले मानसिक और भावनात्मक हमलों से भी खुद को सुरक्षित रखें।

समाज को इस विषय पर संवाद करने, जागरूकता फैलाने और ऐसी घटनाओं पर सख्ती से प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता है। ताकि शोषण सिर्फ शारीरिक स्तर पर ही नहीं, मानसिक स्तर पर भी पहचाना जाए और रोका जा सके।


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