अकेली सी हूं
अकेली सी हूं
अकेली सी हूँ...
अभी ये डूबते सूरज का वक्त है।
मैं छत के किसी ऐसे कोने पर बैठी हूँ जहाँ से ये शहर उम्रदराज से...बेजान,चुप और,रुआंसू सा दिखाई देता है।
यह सब मैंने सिर्फ देखा था,मैने खुद को ये सब महसूस नहीं होने दिया कि ये शहर उदास है।
ना जाने क्यूं उदास है,शहर से वजह पूछना अभी मेरे बस की बात नहीं।
खैर,
छत का ये कोना मेरी जिंदगी के कई खाश अध्यात्मिक और भयाभय पलों का गवाह रहा है।
यहां बैठकर मैनें प्रेम को भुलाना सीखा,और फिर जीना।
यही जगह रही थी जब मैं उसके मेरे ना होने के अह्सास से खुद को भिगो लेती थी।
मैं नहीं रोती थी ये आँखें ही थी जो उसे याद करके भर आती थी।
मेरे कठोर ह्दय में ...मैं घाव ना पलने दूँ,यह तो फिर भी प्रेम है।
अब...
कई दफा पखवाडों के बीतने के साथ मेरी ये जिन्दगी भी खाली सी हो जाती है...
जैसे वर्षाकाल के साथ ही चली जाती है नमी।
ऐसे तमाम रास्तों पर जहां मैने खुद को मुक्कमल सा पाया वहीं उन्ही रास्तों पर मेरी उम्मीदें मुझे झकझोर देती है।
जिससे बे-हिसाब...बे-उम्मीद प्रेम चाहिए वही से मेरे कुछ ख्वाब खुद को कमज़ोर सा महसूस करने लगते हैं।
मेरी यह कोशिश कि...
'मै ख़ुद को खुद ही खुश रख सकती हूँ मुझे भयभीत भी नहीं करती।'
हरगिज मैनें ये ख्वाब खुद को कहीं बर्बाद करने के लिए पाला होगा।
कई दफाओं के ये वाकिये मुझे मेरे नितांत अकेलेपन की ओर ले जाते हैं...
और इस ओर आते आते मेरी मुस्कराहट भी कहीं खो जाती है...
क्यूंकि शुरू से ही मुझे लगता है कि
अकेलापन एक दुर्दशा है।
पर शायद ऐसा नहीं है।
हो ना हो बुद्ध और पैगम्बर यहीं से गुजरे थे।
अकेलापन हमारे अन्तर्मन को निखार देने वाली इकलौती ऐसी स्थिति है ...
जो हमें हमसे रूबरू कराती,हमारे अन्दर की तमाम संधों को नए विचारों से लेप देती है।
जिस से हम खुद की मरम्मत कर पाते हैं।
यूँ तो मुझे डूबते सूरज को हर बार देखकर लगता है।कि मैं भी इसी के साथ डूब जाऊ..और फ़िर दूसरी सुबह मुझे याद हो कि मेरी रोशनी इस जहान के लिए जरुरी है।
इसका मतलब ये नहीं कि जिंदगी के सिकवे मुझ से झेले नहीं जा रहे...इसका मतलब फिर से नए सिरे से कुछ लिखूं............. कुछ भी।
...उसकी मुस्कराहट
.........उसकी बेचैनी
.........उसकी चाहत
......उसकी व्यस्तता
....या फिर कयी रोज रात को उसका कहीं खो जाना।
जैसे वह किसी ऐसे पहाड़ पर बैठा हो जिसने अपनी छाती पर एक बड़े शहर को पनाह दे रखी है।
और ये पहाड़ शहर के बोझ तले नहीं जी पा रहा हो अपनी खुद की जिंदगी..जैसे पहाड थम गया हो।
जिंदगी में ज़िन्दगी के असल मायने ढूँढना...सूरज से धूप की गुजारिश करना है।
अब मालूं नहीं...
पर तुझसे प्रेम की हर रिवायत निभानी है मुझे।
