सफलता का राज़ (कहानी)
सफलता का राज़ (कहानी)


बारिश तेज़ होती जा रही थी। सीमा और उसकी माँ, झुग्गी के छप्पर से टपक रहे पानी के नीचे किचिन के बर्तन लगाती जा रहीं थीं। एक समय ऐसा आया कि सारे बर्तन टपकों के नीचे लगा दिए लेकिन पानी टपकना बंद नहीं हुआ। तब दोनों थक हार कर एक कोने में बैठ गईं। अब की बार सीमा की किताबों के बस्ते पर पानी टपकने लगा। सीमा दौड़ कर गई और बस्ते को उठा कर गोदी में रख कर बैठ गई। उसे चिन्ता थी कि अगर बस्ता गीला हुआ तो उसकी पढ़ाई का नुकसान हो जाएगा।
तभी पिताजी दौड़ते आए।
"जल्दीजल्दी सारा सामान समेटो। पास ही नाले का पानी तेज़ी से चढ़ रहा है।"
पूरी झोपड़ पट्टी में कोहराम मच गया था। सीमा अपने गले में बसता टांगें उन्हीं बर्तनों को जो टपकने पर लगाए थे, एक बोरी में भरने लगी। अब उनकी जरूरत नहीं थी। सब कुछ तरबतर हो गया था।
क्या समेटो, क्या नहीं तीनों को समझ नहीं आ रहा था। जो जिस की समझ आया छोटीछोटी बोरियों में भरकर पक्के मकानों की तरफ भागे। किसी ने छत पर सामान रखने को जगह दे दी। वहीं टावर के पास दुबक कर बैठ गए । जान बच गई थी। दूसरे दिन पानी तो उतर गया लेकिन अपने पीछे तमाम गंदगी छोड़ गया। पूरे शहर का गंदा नाला था। जो भी गंदगी बहा कर लाया, यहाँ वहाँ फैली पड़ी थी।
ऐसा ही होता है। बारिश का पानी उतर तो जाता है लेकिन ज़िन्दगी की मुश्किलें बढ़ा जाता है।
मजबूरी में पास की कालोनी में एक कमरा किराये से ले लिया। अब समस्या उस तरह की नहीं थी लेकिन हर महीने किराये की तलवार सर पर लटकी रहती थी। एक तो पिताजी की फुटपाथ की दुकान भी उस बाढ़ में बह गई थी। उस समय, सीमा नौवीं क्लास में थी। तब आसपास के लोगों ने सहायता करने के दृष्टिकोण से इससे छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़वाना शुरू कर दिया। अभी पिताजी की मजदूरी और सीमा की ट्यूशन से घर की गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ी ही थी कि माँ का बीमारी के कारण अचानक देहाँत हो गया।
ज़िन्दगी भी जब इम्तेहान लेने पर आती है तो ऐसा नहीं है कि किसी एक विषय का एक ही पपेर ले ले। हर विषय का अलग इम्तिहान होता है और सबमें पास होना ज़रूरी है।
घर की ज़िम्मेदारियां, पढ़ाई लिखाई और ट्यूशन में ज़िन्दगी बट गई थी। लेकिन किसी तरह सामंजस्य आ गया था। ज़िन्दगी की तल्खियां उसे ज़मीन पर कदम रखने से डराने लगी लेकिन वो क्या करे उसके हौसले की उड़ान तो सातवें आसमान पर थी।
दिन गुज़रते जा रहे थे। लेकिन बस तारीखें ही बदलतीं थीं। हालात हैं कि बदलने का नाम ही नहीं ले रहे थे। अभी त्याग और तपस्या के और बहुत सारे मुकाम बाकी थे।
न कोई संगी साथी था। न कोई रहबर। चारों तरफ घनघोप अंधेरे। बस कहीं दूर एक दिए कि लौ टिमटिमाती दिखती थी तो बस उसकी ये किताबें थीं । उसे पूरी उम्मीद थी कि यही उसे सही रास्ता दिखाकर न सिर्फ मंज़िल तक पहुँचाएंगी बल्कि इसके और इसकी मंज़िल के दरमियान छाए अंधेरे को भी रौशनी देंगीं। उसने उन किताबों से बातें करना सीख लिया । था।
डायरियों में अपने अहसासात और अपने जज़्बात दर्ज कर दिए थे। उन पर अपनी हसरतें और उम्मीदें भी लिख दीं थीं। क्या पता कब पूरी ही जाएं। बस जो थोड़ाबहुत खाली समय था, पास के ही पुस्तकालय को समर्पित कर दिया। जो रेफ्रेंस बुक्स थीं उनको वहीं बैठ कर पढ़ती और जो किताबें इशू करा कर लाती उन्हें पढ़ने में दिन रात जुटी रहती।
आज धड़कते दिल से सीमा अपने रिजल्ट को देख रही थी। उसे अपने ऊपर यकीन नहीं हो रहा था। आज उसकी डायरी में दर्ज सारी आरज़ूएँ, तमन्नाएं, बाहर निकल कर उसका स्वागत करने को बेताब थीं। सारी किताबें जिन्होंने गहरी होती हुई रातों में इसका साथ दिया था। इसको कामयाबी देना चाह रहीं थीं। उसका दिल उसके काबू में नहीं था।
उठी और पिताजी से जाकर लिपट गई।
हाँ, पापा आज में सिविल सर्विसेज में पास हो गई।
उन्होंने भी खुशी से बेटी के माथे को चूम लिया। सिर पर स्नेह का हाथ रख कर ढेर सारा आशीर्वाद दिया, दुआएँ दीं।
बेटी ये तुम्हारी मेहनत का सिला है। भगवान तुम्हें सदा सुखी रहे। माता रानी का आशीवार्द सदा तुम्हारे ऊपर बना रहे।
अब तक तो प्रेस मीडिया के लोग भी आ चुके थे।माइक तो बहुत सारे थे। लेकिन बोलने वाला ज़बान एक ही थी। वही मुसीबत की मारी गूंगी ज़बान, जो अपनीं दस्तान किसी को सुनाना अपनी गरीबी का मज़ाक समझती थी।
आज गर्व के साथ खुद की ही कहानी सुनानी थी।
"तो फिर ये सफलता कैसे पाई। आप अपने यहाँ तक के सफर की पूरी कहानी बताइये?" एक रिपोर्टर पूछ रहा था।
"तो इस सफलता का श्रेय आप किसे देतीं हैं। किसी कोचिंग को। किसी इंस्टीट्यूशन को।" दूसरा रिपोर्ट पूछ रहा था।
"अच्छा तो मेडम आप ये बताइये कि आपको सिविल सर्विसेस की प्रेरणा किस से मिली।" तीसरे ने प्रश्न किया।
आप सब के सवालों का एक ही जवाब है मेरे पास, किताबें, किताबें, और केवल किताबें।
यही मेरी प्रेरणा हैं, यही मेरी सफलता का राज़ हैं, यही मेरी संगी सहेली हैं।