सोच में फर्क
सोच में फर्क
रमा को समझना मेरे बस की बात नहीं घर में घुसते ही अनु बड़बड़ाई थी। न जाने वो किस मिट्टी की बनी है। पति रमण के पास उसके लिए शिकायत व तानो के सिवा कुछ भी नहीं। परन्तु वो है कि पति से इतना अधिक प्यार करती है कि उसका सब कुछ माफ कर देती है। कुछ दिनों से रमण उसे तलाक देने की अल्टीमेटम दे चुका है। फिर भी वो है कि उसका पसंदीदा खाना बनाने की फिक्र में रहती है। बड़ी मछली रमण को पसंद है कहकर मार्केट से ले आई थी आज। मैं जब उससे मिलने उसके घर गई तो वह बड़े चाव से मछली तल रही थी। जबकि उसे पता है कि रमण उसे छोड़ने की धमकी दे चुका है।
“आ बैठ। “मुझे देख उसने कहा। पास में पड़ी मूढ़े पर मैं बैठ गई ।
“रमण के लिए फिस करी बना रही हूँ।” उसने कहा।
“दिख रहा है मुझे।” मैंने संक्षिप्त जवाब दिया। वह सामान्य होकर काम कर रही थी ।
“ये सब क्यों करती हो तुम ?” मुझसे रहा नहीं गया इसलिए मैं बोल उठी।
“मुझे अच्छा लगता है यह सब करके। जानती हूँ वो मुझे तलाक देगा मुझे छोड़ देगा। भूल जाएगा। परंतु जितना दिन वो अभी मेरे साथ है। यह हक वह मुझसे नहीं छिन सकता।” कहती हुई वो फीस करी को डिश में डालकर सजाने लगी और मैं यही सोच रही हूँ सोच का शायद यही फर्क है ।