हाथ का काम
हाथ का काम
मैंने देखा है उन्हें हमेशा से काम करते हुए, अब तो उम्र भी हो चुकी थी। उनकी आँखें भी कमजोर होने लगी थी। फिर भी वे अपने दैनिक कामों से छुट्टी नहीं लेते थे। उन्हें काम करना अच्छा लगता था। सड़क के किनारे पीपल के पेड़ के नीचे वे बैठते थे। वहीं लोग आते थे अपने बाल कटवाने और दाढ़ी बनवाने। कभी कभार हम भी उन्हें घर बुलवाते थे बच्चों के बाल कटवाने।
इसी काम से उनका घर चलता है। पत्नी कम उम्र में ही चल बसी थी दो बेटे उनकी दुनिया थी। अब तो बेटे भी बड़े हो गये थे। एक को कम्पनी में नौकरी लगी थी, दूसरे ने चाय की दुकान चलाता था। दोनों की शादियाँ भी हो चुकी थी। बच्चे नहीं चाहते कि वह और काम करे पर वह कहा सुनते काम जो उन्हें प्रिय है।
आज ऑफिस से वापस घर जाते समय वह भी ऑटों के लिये खड़े थे। मुझे देख मुस्कुरा उठे। मैंने कहा- "चाचाजी सरकार भी रिटायरमेंट देती है पर आप अब भी काम क्यों कर रहे हैं ? जबकि अब तो बेटा भी आपका कमाने लगा है।"
"बिटिया तुम ठीक कह रही हो, काम के लिये बेटों ने कई बार मना किया है, पर मैं घर में बैठुूँगा तो बीमार पड़ जाउँगा। फिर यह हाथ का काम है जो मेरा अपना है। जब तक सलामत है हाथ पैर चलते रहेगा।" बात तो ठीक कह रहे थे वे, जब स्वस्थ लोग भी काम करना बंद देते हैं तो मन और शरीर भी अकड़ जाता है। फिर चाचा जी की तो उम्र भी हो चुकी थी। इस उम्र में अपनी पसंद का काम उन्हे स्फुर्ती ही दे रहा था जिससे वह फिट भी है तो काम करने में आखिर हर्ज ही क्या है। मैं यह बात सोच ही रही थी कि ऑटो आ गया........
