मुझे तो मानव शरीर चाहिए
मुझे तो मानव शरीर चाहिए
प्रयोगशाला में खुशी का माहौल था। क्योंकि नए प्रयोग के बाद पहली बार के लिए उसे दुनिया की सैर करने की आजादी मिली थी। वह एक संक्रमित जीव था जिसकी सबसे ज्यादा पसंदीदा काम था मानव शरीर में प्रवेश कर दुनिया की सैर करना। उसे न तो रंगभेद से मतलब था। न किसी लिंग भेद से पर उसे तलाश रहती थी बेहद कमजोर शरीर वालों से। क्योंकि वह इसमें आसानी से प्रवेश कर निशाना बना लेने में सक्षम हो जाता। वैसे तो उसे केवल एक शरीर चाहिए होती । पर कमजोर शरीर उसे ज्यादा पसंद थी। दुनिया में हाहाकार मचाने में सफल जीव घूमते घामते भारत में भी पहुंच गया। उतावले जीव पर भारत की पहले से ही नजर थी लेकिन उसे नई भूमि में आकर खूब उधम मचाने का मन था। कुछ यात्रियों की मदद से वह आया मगर तभी....... उसने महसूस किया -
" अरे यह क्या लोगों को क्या हुआ है ? सड़कें इतनी सुनसान क्यों है? हमने तो सुना था इस देश में लोगों की बड़ी भीड़ रहती है । पर यहां तो लोग दिखाई नहीं दे रहे है! कहां दुबक गए? जीव सोचने लगा। उसे कहां पता था कि भारत ने चेन तोड़ने की पूरी बंदोबस्त कर लिया है । कुछ पल के लिए निराश होकर जीव कुछ मायूस हो गया। मगर थोड़ी दूर पर जाकर उसका चेहरा फिर से खिल उठा। वहां कुछ लोग इकट्ठा होकर नारे लगाने में व्यस्त थे। "बेवकूफ इंसान! तुमने मुझे अभी तक नहीं पहचाना है । अच्छा है तुम्हारी बेफिक्री ही मेरी जीत है। जब तुम्हें मेरी ताकत की कोई परवाह नहीं है। तो मुझे उड़ान भरने में क्या हर्ज है? लड़ो आपस में मेरा क्या, मुझे तो मानव शरीर चाहिए.. .... तुम चाहे कोई भी हो। जीव कुटिलता से मुस्कुराया और चुपके से एक नए शरीर में घुस गया।