संस्कारों की जीत
संस्कारों की जीत
"बधाई हो दीदी!हमारी रानू को बहुत अच्छा घर-वर मिला है।शादी के बाद,राज करेगी हमारी बिटिया रानी।"नेहा चहकते हुए अपनी जेठानी माया से बोली।
माया ने फीकी हँसी हँसकर कहा,"हाँ!सो तो है।"
नेहा को थोड़ा अजीब लगा।रानू बिटिया की शादी इतने बड़े घर में पक्की होने पर भी जेठानी जी कुछ खुश नहीं लग रही हैं।इतने बड़े घर से,खुद सामने से रिश्ता आया है,न कोई माँग है।बहुत अच्छे लोग हैं।सादगी से ही शादी चाहते हैं तो माया दीदी खुश क्यों नहीं है?"
फिर नेहा ने सोचा कि दीदी तो मुझसे हमेशा ही नाराज रहती हैं शायद इसलिए मुझे अपनी परेशानी नहीं बता रही हों।
और नेहा अपने अतीत के गलियारों में खो गई।नेहा बेहद खूबसूरत,पढ़ी- लिखी,समझदार लड़की थी।उसका मायका बहुत संपन्न था।यश,नेहा के कॉलेज में ही पढ़ता था।दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। यश ने, पढ़ाई के बाद अपना कंप्यूटर का व्यवसाय शुरू किया जो अच्छा चल निकला।तो नेहा के माता-पिता ने भी इस रिश्ते के लिए रजामंदी दे दी।
यश मध्यमवर्गीय परिवार से था।जिसमें उसकी विधवा माँ,बड़ा भाई रमेश,भाभी माया और उनके दो बच्चे थे और अब इस परिवार में नेहा भी शामिल हो गई थी।नेहा ने हमेशा महसूस किया कि माया उससे उखड़ी-उखड़ी रहती है।नेहा की शादी के बाद,गृह प्रवेश के समय भी माया ने उससे ढंग से बात नहीं की थी।जब नेहा और यश की शादी पक्की हुई थी तो माया सबसे यही कहती थी,"इतने बड़े घर की बेटी है। इतनी सुंदर है,पढ़ी -लिखी है।देखना हमारा घर तुड़वाकर ही मानेगी। देवरजी को अलग करके ही दम लेगी।"
दरअसल माया स्वयं बहुत गरीब परिवार से थी उसके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी थी और वो चार बहनें ही थीं।जिनमें से बाकी की तीन बहनों की आर्थिक स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं थी।सिर्फ माया की स्थिति बेहतर थी।माया ने ससुराल मैं अपने सभी कर्तव्य बहुत अच्छे से निभाए थे और यश के लिए तो वह माँ जैसी ही थी।तो उसे लगता था कि कहीं बड़े घर की बेटी, उसका हँसता-खेलता परिवार न तोड़ दे।
नेहा ने शादी के बाद अपने मधुर स्वभाव से सबका दिल जीत लिया पर न जाने क्यों माया को यह सब दिखावा लगता था।समय बीतता गया नेहा भी दो प्यारे बच्चों की माँ बन गई।माया नेहा के बच्चों को खूब लाड़ करती पर नेहा के प्रति उसका रुख नहीं बदला। शायद माया ने नेहा के प्रति द्वेष की एक पक्की गाँठ बाँध ली थी।
इस बात से,कभी-कभी नेहा की सास,दुखी होकर उससे कहती,"नेहा बेटा!तू बहुत अच्छी है पर तेरी जेठानी पता नहीं क्यों तेरी अच्छाइयों को देख नहीं पाती।उसे लगता है तू अच्छे होने का दिखावा करती है पर तू अपना मन मैला मत करना।हमेशा इस घर की एकता को बनाए रखन। तेरे माँ-बाप ने तुझे बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं और मैं भी खुशनसीब हूँ कि तुझ जैसी सुघड़ और समझदार बहू मिली है।"
नेहा मुस्कुराकर कहती," माँजी,मेरे घर में यही सिखाया गया है कि परिवार,घर के सभी लोगों से मिलकर बनता है।परिवार के सभी सदस्य व्यवहार में एक जैसे हों यह जरूरी नहीं लेकिन हाँ,उनको एक साथ जोड़े रखना ही उस परिवार को खुशहाल बनाता है।परिवार में मतभेद हों पर मन में भेद नहीं होना चाहिए।आप चिंता ना करें माँ जी! मेरी तरफ से आपको कभी कोई शिकायत नहीं मिलेगी।"
और हुआ भी यही,नेहा ने कभी किसी को शिकायत का कोई मौका नहीं दिया।हालांकि जब-जब नेहा के मायके से,किसी भी तीज-त्योहार पर उपहार आते तो माया को हमेशा लगता कि नेहा उसे नीचा दिखाएगी पर नेहा ने कभी भी ऐसा कोई व्यवहार नहीं किया।
तभी नेहा की सास ने उसका नाम पुकारा तो नेहा की तंद्रा टूटी।वह रसोई में जाकर चाय बनाने लगी।
चाय पीकर नेहा, माया के कमरे में गई।माया गुमसुम सी बैठी हुई थी।
नेहा बोली,"दीदी कोई परेशानी है क्या? हम सब एक परिवार हैं। सुबह से देख रही हूँ आप उदास हैं।बताइए न....
माया धीमे स्वर में बोली,"नहीं कोई परेशानी नहीं है नेहा।तुम जाओ।"
नेहा से नहीं रहा गया।आँखों में आँसू भरकर बोली," दीदी मेरी शादी को इतने साल हो गए।आप मुझसे हमेशा नाराज रहती हैं।आज तो बता दीजिए क्या कारण है नाराजगी का?आप को मेरी कसम है।"यह पूछकर नेहा रोने लगी।
नेहा को रोता देख,माया भी रो पड़ी।माया बोली,"नेहा, तुम बहुत अच्छी हो।बस मैं ही अपने गरीब मायके के कारण,तुमसे कटी-कटी रहती थी।मुझे लगता था कि तुम्हारे आने पर इस घर में मेरा महत्व कम हो जाएगा तुम अपने रईस घर की शान दिखाओगी पर तुम बहुत अच्छी हो।मैं ही कुंठित होती रही।"
कुछ देर रोकर,जब दोनों के दिल का मैल धुल गया तो नेहा ने कहा,"दीदी!अब बताओ वाकई में परेशानी क्या है?"
तो माया सुबकते हुए बोली,"नेहा,तुम तो मेरे मायके में बहनों की आर्थिक स्थिति जानती हो और मेरे भाई भी नहीं है। रानू का भात कौन भरेगा?यही चिंता मुझे खाए जा रही है।"
नेहा आँसू पोंछकर बोली,"दीदी!बस इतनी सी बात है आपके भाई नहीं है तो क्या हुआ?मेरे भाई भी तो आपके ही भाई हैं।मेरे भैया रानू की शादी में भात की रस्म पूरी करेंगे।रानू उनकी भी तो भाँजी है।हम सब एक परिवार हैं,दीदी। परिवार हर सुख और दुख में हमेशा एक साथ खड़ा रहता है।आप इतनी सी बात के लिए इतनी उदास थी।मैंने तो हमेशा से ही सोच रखा था और मेरे भैया तो हमेशा कहते हैं,"जैसे मेरे लिए तेरे बच्चे वैसे ही माया दीदी के बच्चे हैं।"
यह सुनकर माया ने रोते-रोते,नेहा को गले लगाकर बोली,"नेहा,तू मेरी देवरानी है,यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफा है।जिसने सदा पूरे परिवार का हित सोचा है।तू बहुत बड़े दिल और संस्कारों वाली है।मुझे मेरी हर गलती के लिए माफ कर देना।तू सदा खुश रहे।"
और माया ने,नेहा पर आशीषों की झड़ी लगा दी।