सीख:जीवन की
सीख:जीवन की
मोहन एक छोटे से कस्बे में रहता था।वह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था।सभी उसे बहुत प्यार करते थे।अधिक लाड़-प्यार के कारण वह जिद्दी और बहुत शरारती हो गया था।
जब भी मोहन की माँ उसे किसी भी शरारत के लिए डाँटती फटकारती तो मोहन की दादी उसका बचाव करते हुए कहती,"अरे बहू कोई बात नहीं।अभी मेरा मोहन छोटा ही तो है।धीरे-धीरे सब समझ जाएगा और बच्चे शैतानी नहीं करेंगे तो और कौन करेगा?"
मोहन की माँ मन मसोसकर रह जाती।मोहन चार साल का हो गया पर दादी ने कहा कि वह अभी बहुत छोटा है इसलिए उसे स्कूल नहीं भेजा।मोहन की माँ उसे घर में ही पढ़ाती थी।छह बरस का होने पर उसका दाखिला पास के एक स्कूल में,कक्षा एक में कराया गया।मोहन स्कूल जाने में बहुत आनाकानी करता था क्योंकि वहाँ उसे अनुशासन में रहना पड़ता था।वह रोज रोना-धोना मचाता लेकिन माँ उसे कभी प्यार से समझा-बुझाकर तो कभी सख्ती के साथ स्कूल जरूर भेजती।
मोहन का मन,स्कूल में, पढ़ाई में कम और शैतानियों में ज्यादा लगता था।वह कभी किसी साथी की पेंसिल तोड़ देता,कभी किसी का टिफिन गिरा देता तो कभी किसी से मारपीट करता।शिक्षक भी उसे समझा-समझा कर थक गए थे।मोहन से कोई बच्चा दोस्ती नहीं करता था।
किसी तरह दो वर्ष निकले पर मोहन की उद्दंडता में कोई सुधार नहीं आया।जब वह कक्षा तीन में आया तो एक नया लड़का सूरज उसकी कक्षा में दूसरे शहर से पढ़ने के लिए आया।वह भी बहुत शरारती था।अब सूरज, मोहन को परेशान करने लगा। मोहन का ध्यान शैतानी करने से ज्यादा, सूरज की शैतानियों से बचने में लगने लगा। सूरज कभी मोहन का पानी फैला देता तो कभी उसका टिफिन खा जाता।
जब कुछ दिन तक यही सब चला तो एक दिन मोहन अपनी माँ के सामने रोते हुए बोला,"माँ,सूरज मुझे बहुत परेशान करता है,आप उसकी शिकायत करना। कभी-कभी मुझे उसकी वजह से भूखा भी रहना पड़ता है।मोहन की माँ यह सुनकर भावुक हो गई।
उसने तुरंत मोहन को प्यार से गले लगाकर समझाया, "देखा बेटा!जब कोई हमें परेशान करता है तो हमें कितना बुरा लगता है।तुम भी जब अपने दोस्तों को परेशान करते थे तो तुम्हें तो मजा आता था पर वे बेचारे कितने दुखी और उदास होते होंगे।बेटा! मेरी एक बात याद रखना,हमेशा दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा तुम अपने लिए चाहते हो।मैं कल तुम्हारे स्कूल चलूँगी तथा सूरज और उसके माता-पिता से भी बात करूँगी।"
मोहन रोते हुए बोला,"हाँ माँ!मुझे समझ आ रहा है कि मैं कितना गलत था।आप मुझे माफ कर दो।अब मैं कभी किसी को परेेेशान नहीं करूँगा।मैं अपने सारे दोस्तों से भी माफी माँग लूँगा और वादा करता हूँ एक अच्छा बच्चा बनूँगा।"
"मेरा राजा बेटा!" कहकर मोहन की माँ ने उसे सीने से लगा लिया।