देर आए पर दुरुस्त आए
देर आए पर दुरुस्त आए


"चल आज एक कैंप लगा है, वहाँ चलेगी?" शीतल ने रश्मि से पूछा।
" कैसा कैंप?"रश्मि ने पूछा।
"एक संस्था ने ब्लड डोनेशन कैंप लगाया, गरीब जरूरतमंद लोगों को मुफ़्त रक्त उपलब्ध कराती है।"शीतल बोली।
"अरे, शॉपिंग के लिए मॉल चलने का पूछने की जगह कहाँ ये समजसेवा करने का पूछ रही है? फालतू टाइम बर्बाद।" मुँह बनाकर रश्मि बोली।
"रश्मि रक्तदान, बहुत ज़रूरी है।समय बर्बादी नहीं है।तुझे कैसे समझाऊँ? छोड़ो । मैं चलती हूँ, कल मिलते हैं फिर।" शीतल यह कहकर चली गई।
रश्मि और शीतल बहुत अच्छी सहेलियाँ थीं। उनके पति भी आपस में अच्छे मित्र थे। दोनों परिवारों में घनिष्ठ मित्रता थी ।दोनों के बच्चे भी बराबरी के थे तो आपस में खूब खेलते थे।
शीतल और उसके पति श्याम कई समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े हुए थे। वे समय-समय पर अनाथ आश्रम , वृद्धाश्रम में दान और रक्तदान करते रहते थे। शीतल, रश्मि और उसके पति राज को भी समझाती कि तुम लोगों को भी रक्तदान करते रहना चाहिए।
राज का ब्लड ग्रुप 'ओ नेगेटिव' ( o-) था तो शीतल कहती कि यह बहुत ही मुश्किल से मिलने वाला रक्त समूह है और यदि राज, रक्तदान करेगा तो किसी मरते हुए इंसान की जिंदगी बचाई जा सकती है। इस पर राज कहता ," खून देने से कमजोरी आ जाती है तो क्यों व्यर्थ अपना समय और ऊर्जा बर्बाद करना।"
शीतल और श्याम उन्हें समझाते," पढ़े-लिखे समझदार इंसान होकर भी तुम ऐसी बातें करोगे, तो कैसे काम चलेगा? एक स्वस्थ व्यक्ति , निश्चित मात्रा में, नियत समय अंतराल पर , नियमित रूप से, रक्तदान कर सकता है और इससे कोई कमजोरी नहीं आती।"पर रश्मि और राज इन बातों को गंभीरता से नहीं लेते थे।
एक दिन राज, ऑफिस जाने के लिए ,सड़क पर बस का इंतजार कर रहा था। तभी एक तेज गति से आती हुई कार ने उसे टक्कर मार दी और वह उछलकर दूर जा गिरा।
कुछ समय बाद, रश्मि के पास अस्पताल से फोन आया। रश्मि बदहवास सी अस्पताल के लिए दौड़ी। उसने शीतल को भी सूचना दे दी ।जब वे लोग अस्पताल पहुँचे तो डॉक्टर ने कहा,"राज का बहुत खून बह गया है और उसे खून की सख्त जरूरत है पर उनके अस्पताल के ब्लड बैंक में 'ओ नेगेटिव' रक्त उपलब्ध नहीं है। इसलिए आप जल्द से जल्द खून का इंतजाम करें।"
रश्मि ने कुछ और अस्पतालों में भी पता लगाया पर वहाँ से भी निराशा ही हाथ लगी।
शीतल ने भी अपनी सभी सहयोगी संस्थाओं और अपने जान- पहचान वाले लोगों को फोन लगाकर, 'ओ नेगेटिव' खून का इंतजाम करने की विनती की। कुछ ही समय में शीतल के सहकर्मी का, एक मित्र रक्तदान करने के लिए वहाँ आ गया और उसके रक्तदान से राज की जान बच सकी।
धीरे-धीरे राज के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। एक दिन जब शीतल और श्याम उससे मिलने के लिए अस्पताल आए तब राज ने कहा," शीतल, जब मुझ पर मुसीबत आई तब मुझे एहसास हुआ। मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूँ और आज से, मैं वादा करता हूँ कि मैं नियमित रूप से जरूर रक्तदान करूँगा क्योंकि नियमित रक्तदान से मुझे कोई हानि नहीं होगी पर कई जिंदगियाँ , मौत के मुँह से वापस आ सकेंगी और कई परिवार बिखरने से बच जाएँगे।"
जब राज पूरी तरह ठीक हो गया तो वह और रश्मि नियमित रूप से रक्तदान करने लगे और अब वे अपने साथ-साथ, दूसरों को भी, अपनी आपबीती से मिली शिक्षा की कहानी सुना कर, रक्तदान के लिए प्रेरित करते थे।
दोस्तों , रक्तदान बहुत ज़रूरी है। अपने जीवन के लिए भी और दूसरों का जीवन बचाने के लिए भी।