Lokanath Rath

Tragedy Inspirational

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Lokanath Rath

Tragedy Inspirational

संसार का खेल

संसार का खेल

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सुजाता प्रसाद आज ४५ साल की उम्र में बिलकुल अकेली पड़ गयी.अपनी घर में बैठे बैठे वो सोच रही है अब आगे क्या करेगी .आज उसकी पिता माता की बरसी है .थोड़ी देर में पंडितजी भी आजायेंगे .सब कुछ तैयार करके राखी है पर एक उम्मीद है सायद उसकी भाई बहन आजायेंगे .कमसे कम आज के दिन तो उनके साथ वो दिन बिता सकती .दरवाजा की घंटी बजी .सुजाता उठके गयी ,सायद वो लोग आगये .दरवाजा खोली तो देखा पंडितजी खड़े है .वो आँखों से आंसू पोछते हुए पंडितजी को अंदर बुलाई .पंडितजी अपनी पूजा सुरु करदिये .पूजा ख़तम होते ही सुजाता ने पंडितजी को खाना खिलाके पुरे सम्मान के साथ बीड़ा की .पंडितजी जाते जाते बोलगये,'' बेटा तुमको तुम्हारी पिता माता का सदा आशीर्वाद रहेगा .'' पंडितजी को प्रणाम करके सुजाता अपनी पिता माता के तस्वीर के पास बैठके थोड़ी रोई और उसको बीते हुए दिन का याद आने लगे .

रमेश प्रसाद सहर के नामी वकील थे .पत्नी ममता देवी गृहिणी थी .उनका तीन बेटी और एक बेटा के साथ हसी खुसी उनकी संसार चल रहा था .सुजाता उनकी पहेली संतान थी .वो पढ़ने लिखने में तेज थी और उसको तस्वीर बनाना और लिखने का सौक था .सुजाता के निचे आरती और सुनीता दो बेटी और उनका बेटा आलोक सबसे छोटा था .उनकी सारे बच्चे अच्छे पढ़ते थे .सुनीता की पैदा होने का ५ साल बाद आरती का जन्म हुआ था .सुजाता १२ पास करके ग्रेजुएशन का आखिर साल में थी तब अचानक एक दुर्घटना में रमेश प्रसाद और उनकी पत्नी ममता देवी का निधन हो गया . तब आरती दसवीं में ,सुनीता आठवीं में और आलोक ६ कख्या में पढ़ते थे .अचानक उनकी दुनिया बदल गया .सुजाता बड़ी होक एक पत्रकार बनना चाहती थी ,पर अब वो क्या करेगी कुछ समझ में नहीं आ रहा था .अब उसकी बभाई और बहन को सम्भाल ने होगा .पुरे परिबार का जिम्मेदारी उसको लेनी होगी .पिता माता का अंतिम संस्कार करने के बाद वो कालेज जाना बंद कर दी .घर में अपने भाई और बहेनो को पढ़ने लगी और कुछ बचो को टूशन देना चालू कर दी .उसकी भाई बहेनो को पढाई में कोई दिक्कत आने नहीं दी .वो टूशन करने के साथ कुछ कार्टून भी बनाना चालू कर दी और एक सहेली के पिता जो हिंदी अखवार के सम्पादक थे, उनके सहायता से उसमे छपाने दी .उसमे भी कुछ आमदनी होने लगा .देखते देखते उसकी कार्टून की चर्चा होने लगी .और कुछ अखवार में भी वो भेजने लगी .इधर आरती १२ के बाद ग्रेजुएशन करने लगी .सुनिदा दसवीं की पास करके १२ में दाखिला ले ली और आलोक ८ मे पढ़ रहा था .उसकी पिता माता का इच्छा था की आलोक डाक्टर बनेगा .सुजाता उसको पूरा करने में पूरी ताकत लगा दी .इस बीच सुजाता ने ग्रेजुएशन का परीक्षा प्राइवेट में दे के पास कर ली थी .अब उसकी टूशन बढ़ने लगा .उधर उसकी कार्टून का भी मांग और बढ़ने लगा .वो उस दोनों काम में पूरा लगन के साथ लगी रही और आलोक का पढाई के थोड़ा ज़्याद ध्यान देती थी . देखते देखते साल गुजर गया .रिश्तेदार लोग उसको शादी करने के लिए बोले और सुजाता उसके प्रति ध्यान नहीं दी .वो चाहती थी की अपनी बहेनो की शादी कार्वागी और भाई को डाक्टर बनाएगी .आरती पढाई ख़तम करके एक सरकारी नौकरी में लग गयी .सुनीता एम् बी ए की पढाई ख़तम करके एक बड़ी निजी कंपनी में काम करने लगी .आलोक १२ के बाद मेडिकल कालेज के दाखिला की तैयारी कर रहा था .तब आरती और सुनीता की शादी सुजाता ने उनकी पसंद किये हुए अच्छे घर में कर दी .वो लोग अपने पति और ससुराल में खुस थे .इधर आलोक भी मेडिकल के दाखिला परीक्षा में पास हो गया .सुजाता ने उसकी जमा किये हुए पैसे से उसका दाखिला करदिये . अब उसको और टूशन करना नहीं पड़ता ,वो एक अखवार में सह सम्पादिका के तौर पे काम करने लगी .आरती और सुनीता दूसरे सहर में रहते थे .साल में एक दो बार आते थे .कमसे कम पिता माता की बरसी में तो आते थे.

देखते देखते आलोक भी एम् बी बी एस पास कर लिया. वो पी जी करने दिल्ली चला गया . सुजाता तब भी उसका ख्याल रखती थी .वो कभी उसकी भाई बहनो को पिता माता का कमी महसूस करने नहीं दी .अचानक सुजाता को आलोक ने वह दिल्ली में शादी करने का खबर दी . सुजाता थोड़ी दुखी हुयी पर वह जाके शामिल हुयी. आरती और सुनीता उनकी परिबार के साथ वहां पहुंचे हुए थे .शादी ख़तम होने के बाद सुजाता आलोक को सिर्फ एक बात बोली ,'' तुम अपनी पत्नी के साथ एक बार चलो अपने सहर में माता रानी के मंदिर में एक छोटी सी पूजा करनी है .हमारे माता पिता ने तुम्हारे लिए उनसे मन्नत मांगे थे .उनको थोडी सी शान्ति मिलेगी". ये सुनते ही सुनीता और आरती ने बोले ,''दीदी इस बात में अब कौन विश्वाश करता है .और हमारे माता पिता अब तो नहीं रहे .अब सायद आलोक को यहाँ नयी नयी नौकरी मिली है .हम लोगों के पास तो समय नहीं है .बाकी आलोक जाने .'' तब फिर आलोक ने बोलै ,'' दीदी अभी तो मेरे लिए मुश्किल होगा .बाद में हम चले जायेंगे .'' सुजाता को तीनो का बात तीर जैसा चूमने लगा .वो कुछ नहीं बोली और घर वापस आ गयी .घरमे आकर वो अपनी पिता माता के तस्वीर के सामने बहुत रोई .उसको लगा जैसे वो पूरा अकेली हो गयी . उसकी दोनों बहन बड़ी खुसी से अपने परिबार के साथ उनकी जिंदगी बिता रहे है .वो लोग सुजाता के साथ कभी कभी फोन पे बात कर लेते .सुजाता की जिंदगी के बारे में कभी वो लोग सोचते नहीं है .इधर भाई आलोक अपनी नयी जिंदगी शुरु कर रहा है ,वो भी अपनी दुनिया में खुस है .ये सब पे लिए सुजाता कभी दुखी नहीं होती .वो तो ये सब बड़ी बहन होने के नाते अपनी फ़र्ज़ समझ के जो कुछ किया .

लेकिन आज पहेली बार ऐसा हुआ की अपने माता पिता के बरसी में वो लोग कोई नहीं आये .ये उसको बहुत दुखी कर दिया .वो अपने आप को पहेली बार एकदम अकेली महसूस कर रही है .उसको अब उसकी एक रिस्तेदार का बात याद आ रहा है जब वो अपनी शादी के लिए ना कर दी थी सिर्फ अपनी भाई और बहेनो को बड़ा करने के लिए .उन्होंने बोले थे ,'' बेटा तुम जो कर रही हो अछि बात है पर खुद की जिंदगी का भी ख्याल रखा करो .ये सब बड़ा हो जायेंगे ,अपनी अपनी घर संसार बसा लेंगे .तब तुम बिलकुल अकेली पड़ जायेगी .ये संसार का खेल है ''.......


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