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Saroj Verma

Romance

4  

Saroj Verma

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संगम--भाग(२)

संगम--भाग(२)

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छोटा सा कस्बा है, रामपुर ! जहां मास्टर किशनलाल रहते हैं ,कस्बा छोटा जरूर है लेकिन स्कूल और कालेज की सुविधा है वहां पर____

मास्टर किशनलाल का पूरा नाम किशनलाल उपाध्याय है, सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई तो सब लोग सम्मान में मास्टर जी कहने लगे, ऐसा नहीं है कि उन्हें रूपए-पैसे की दिक्कत है इसलिए सरकारी नौकरी कर रहे हैं,बस उन्हें बच्चों को पढ़ाने का बहुत शौक है,कस्बे से उनका गांव ज्यादा दूर नहीं है लेकिन मां-बाप की अकेली संतान थे और मां-बाप के जाने के बाद कौन से नाते-रिश्तेदार सगे होते हैं इसलिए गांव छोड़कर कस्बे में आ गये और वहीं मास्टर हो गये, गांव की जमीन बटिआ पर दे दी है तो गेहूं-गल्ला गांव से आ जाता है, यहां कस्बे में नहीं लेना पड़ता,साल भर का गुजारा चल जाता है, गांव भी कभी-कभी तीज-त्योहार में जातें हैं, साफ-सफाई और दिया-बाती करके चले आते हैं।

बहुत हंसमुख और मिलनसार है, साथ-साथ दयालु भी है, गरीब बच्चे जिन्हें पढ़ने का शौक है, उनको मुफ्त में ही पढ़ा देते हैं, दान-पुण्य भी करते हैं___

पहली पत्नी सुमित्रा से उनकी बड़ी बेटी प्रतिमा है और दूसरी पत्नी सियादुलारी से एक बेटा है जिसका नाम आलोक है,कुल मिलाकर ऐसे ही जीवन चल रहा है।

गांव की कुछ जमीन बेचकर उन्होंने यहां रामपुर में कस्बे से थोड़ा दूर एकांत में जमीन लेकर घर बना लिया,घर बहुत ही खुला और हवादार बनवाया है जैसा वो चाहते थे___

दरवाजे के ऊपर से जाती हुई हरी-हरी बेल,घर के पीछे एक आम का पेड़, जो गर्मियों में आमों से लदा रहता है,घर के आगे बाड़े में नीम का पेड़,जिस पर सावन में झूला डलता है और तीज में सारी औरतें और लड़कियां शगुन करने यहीं आती है और बगल में फूल-फुलवारी लगा रखीं हैं और थोड़ी जगह मौसमी सब्जियां भी उगा लेते हैं,घर के सामने थोड़ी दूरी पर गौशाला बना रखी है जिसमें एक गाय और एक भैंस पली है, गौशाला के बगल में एक कमरा बना है जिस पर टीन छाया है,जहां दीनू रहता है,वो ही गौशाला और फुलवारी की देखरेख करता है।

जलपान करके श्रीधर और दीनू अपने कमरे में पहुंचे, आराम किया,शाम हुई दोनों बाहर आए,दीनू बोला जा अंदर से चारपाई बाहर ले आ और बैठ जा मैं अभी जानवरों को देखकर आता हूं, दाना-पानी देकर गोबर उठाकर अभी आया लेकिन श्रीधर बोला, बाबा तुम बैठो मुझे बताओ क्या करना है, मैं कर देता हूं___

नहीं तू,बैठ मैं करता हूं, दीनू बोला।

श्रीधर, बोला बाबा अब मैं बड़ा हो गया हूं, आपका हाथ बंटाने के लायक हो गया हूं, मुझे बताओ,क्या करना है।

दीनू बोला,तू ही कर लें और श्रीधर गौशाला में चला गया।

शाम को कुछ पकौड़ियां और चाय लेकर प्रतिमा आई और बोली काका लो चाय पी लो और आपका बेटा कहां है, उसे भी बुला लो,

दीनू बोला,वो जानवरों को दाना-पानी दे रहा है,कहता है कि अब मैं बड़ा हो गया हूं।

प्रतिमा, श्रीधर को चाय देने आई!!

श्रीधर बोला, अरे तुम अंदर यहां गोबर के बीच क्यो आई, मुझे आवाज दे देती तो मैं ही आ जाता।

प्रतिमा कुछ नहीं बोली और चाय देकर आ गई।

श्रीधर, गौशाला से बाहर आया, दीनू बोला,हाथ धोकर पकौड़ियां खा ले,श्री ने हाथ धोए और पकौड़ियां खाने लगा और बोला___

पकौड़ियां बहुत अच्छी बनी है बाबा.....

प्रतिमा बिटिया ने बनाई है,सक्षात् अन्नपूर्णा वास करती है उसके हाथों में,सुबह खाना भी तो उसी के हाथ का खाया था तूने!!

बिचारी,बिन मां की बच्ची है, सौतेली मां घर का सारा काम करवाती है और ऊपर से उस पर चिल्लाती भी है।

बहुत अच्छी बच्ची है, भगवान करे! बहुत अच्छा वर मिले जैसा नाम है बिल्कुल वैसी ही है प्रतिमा जैसी , हमेशा खुश रहे अपने ससुराल में, दीनू बोला।

थोड़ी देर में प्रतिमा अपने पिता जी के पुराने धोती-कुरता ले आई,

बोली,ये इधर आओ,क्या नाम है तुम्हारा?

जी, श्रीधर......श्रीधर बोला।

ये लो पहन लेना और अगर छोटा -बडा हो तो बताना, मरम्मत कर दूंगी।

अंधेरा हुआ,प्रतिमा खाना बनाकर ले आई___

बोली काका,ये लो खाना और संकोच मत करना, खाना कम पड़े तो बता देना।

ठीक है बिटिया,जीती रहो!! दीनू बोला।

थोड़ी रात गये__

किशनलाल जी रात का खाना खाकर, बाड़े में टहल रहे थे, उन्होंने देखा कि श्रीधर बाहर चारपाई डालकर,उस पर लालटेन रखकर पढ़ रहा है,एक ही चारपाई है तो दीनू अंदर जमीन पर लेटा होगा, उन्होंने सोचा।

तभी उन्होंने श्रीधर को आवाज दी___

श्रीधर उनके पास आया__

किशनलाल लाल जी बोले, तुम आज से हमारे घर के बरामदे में पढ़ा करो, यहां बिजली का बल्ब लगा है और तखत भी पड़ा है, लालटेन की रोशनी में आंखें फोड़ने की जरूरत नहीं है,एक मच्छरदानी भी देते हैं, आराम से रात को यहीं रहो।

श्रीधर बोला, ठीक है मालिक__

सुनो, मालिक मत कहो,सब हमें मास्टर जी कहते हैं,तुम भी वहीं कहो, किशनलाल जी बोले।

श्रीधर ने हां में गर्दन हिलाई और चला गया।

दूसरे दिन ये बात सियादुलारी को बता चली तो, किशनलाल जी से बोली, हां करते रहो भलाई, हमने तो धर्मशाला खोल रखी है, सबको बांटते रहो,बन जाओ राजा हरिश्चन्द्र, मैं छक गई तुमसे जी,

अरी भाग्यवान, बांटने से कभी घटता नहीं, गरीबों की दुआएं मिलती है, किशनलाल जी बोले, कभी तो खुश हो जाया करो।

तुम कभी खुश रहने दोगे, तभी तो रहूंगी, सियादुलारी बोली।

क्रमशः____


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