Nirupama Naik

Inspirational

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Nirupama Naik

Inspirational

संघर्ष

संघर्ष

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मनुष्य जीवन अपने आप में एक संघर्ष है। इसमें कोई न हारता है न जीतता है। हर कोई बस लड़ता ही रहता है। जीत और हार हर पल में बदलते रहते हैं। जन्म के सूर्योदय से मृत्यु के सूर्यास्त तक हर इंसान बस ये संघर्ष जारी रखता है। कहते हैं हर सांस में ज़िन्दगी जीने का एक जुनून होना चाहिए, एक लक्ष्य होना चाहिए, एक उद्देश्य होना चाहिए। एक बार वो पता चल जाये तो ज़िन्दगी को किस तरह से जीना है उसका ज्ञान अपने आप मिल जाता है। आइये आज ऐसी एक लड़की के संघर्ष की कहानी सुनते है। 


सुश्मिता एक छोटे शहर की बड़ी होनहार लड़की थी। रूप रंग, बातचीत, चाल चलन से सबका मन मोह लेती। उसके सपने आसमानों की ऊंचाइयों को छूना था। वो ज़मीन से नाता तोड़े बिना क्षितिज तक पहुंचना चाहती थी। सुश्मिता एक मध्यवित्त परिवार से थी। और हर मध्यवित्त परिवार में लड़कियों के लिए सपनों का मतलब सिर्फ घर गृहस्ती बसाना माना जाता है। हालांकि अभी ज़माना बहुत बदल चुका है फिर भी उन सपनों को उड़ान भरपूर नहीं मिल पाती। और कभी किसी के नसीब में मिल भी जाए तो थोड़ी दूर उड़ते ही पतंग की तरह शादी के डोर में बांध दी जाती है। अब हमसफ़र और ससुराल अच्छा मिल जाए तो सपनों को नया रूप मिल जाता है, अगर नहीं तो वो सपने पतंग की तरह कट जाते हैं। 


सुश्मिता पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। बाकी सबमें भी वो कम न थी। उसे इंटीरियर डिजाइनिंग का बड़ा शौक था। पढ़ाई के लिए शहर में जाना पड़ा। आशाओं की पोटली बांधे, अरमानों को ढील देकर अपने सपनों के पतंग को उड़ाने के लिए ये उसका पहला कदम था। मुंबई जैसे बड़े शहर में उसके संघर्ष ने नींव रख ली। अपने हुनर और लगन के साथ उसने कड़ी मेहनत की और इंटीरियर डिज़ाइनर बन गई। उम्र अभी सिर्फ़ 25 साल थी। उसने कैम्पस में ही अपनी काबिलियत से अपने लिए एक बड़ी कंपनी के साथ अपनी नौकरी की शुरुआत की। लेकिन उसके मन में बड़ी बड़ी इमारतों का शौक न था, वो चाहती थी छोटी छोटी कोठरी को वो अनोखा रूप दे। ताकि उसने जिस तरह अपने छोटे से घर में अपने डिज़ाइन की कलाकारी की थी उसी तरह हर एक मध्यवित्त परिवार को इंटीरियर डिजाइनिंग करने का मौका मिल जाए। पर इसके लिए उसे इस क्षेत्र में अभिज्ञता की ज़रूरत थी। कुछ साल उसने शहर में ही काम किया। फ़िर उसने अपने टाउन में लौटने का निर्णय लिया। घरवाले भी खुश होगये। उसने अब अपनी एक इंटीरियर डिज़ाइनर की फ़ॉर्म खोल दी। पर जितनी मुसीबते उसे शहर में न मिली उनसे ज़्यादा उसे अपने ही इलाके में झेलने पड़े। लोगों की सोच नदी में आए बाढ़ की तरह होती होती है। अपने साथ कितनों के अरमानों को भी बहा ले जाती है। 


तरह तरह की बातों से घरवालों को संकोच होने लगा। लड़की है और शहर के इमारतों और दफ्तरों की सजावट करने जाती है। आदमियों के साथ उठना बैठना देर रात तक क्लाइंट मीटिंग एक मध्यवित्त परिवार की लड़की के लिए लोगों को उसके चरित्र का वर्णन करने का साधन बन जाता है। 


परिवार वाले अब चिंता में पड़ गए और सोचा बेटी का सपना तो पूरा हो गया अब शादी करा देते हैं। वरना समाज में और बातें उठेंगी। लेकिन सच तो ये है कि लोगों के बातों का सिलसिला एक बार शुरू हो जाए तो ख़त्म नही होता। केंकड़े जैसे अपने बिरादरी में से किसी को ऊपर उठता देख उसका पैर खींच लेते हैं, वैसे ही होता है।


सुश्मिता पर अपने इरादों की पक्की की थी। उसने ठान ली थी हर एक मुश्किल को पार करेगी, अपनों के बीच ही अपनी एक स्वतंत्र पहचान बनाएगी। शादी के लिए उसने मना नहीं किया क्योंकि उसको अपनी ज़िम्मेदारियाँ पता थी, माँ-बाप के लिए बेटी की शादी क्या मायने रखती हैं ये उसे मालूम था। उसने वही सोचा कि ये काम तो वो शादी के बाद भी जारी रख सकती है।


सुश्मिता की शादी एक अच्छे खानदान में हो गई। लड़का भी होनहार था। उसको भी ऐसी लड़की की तलाश थी जो अपने आपमें एक अलग पहचान रखती हो, स्वाभिमानी हो। शादी के बाद उसकी ज़िन्दगी और सरल सी लगने लगी। पति के साथ ही अपने काम में निकल जाए करती। शाम को देर हो जाए तो पति साथ में लेने आ जाते। कहीं मीटिंग देर तक चले तो सुशील उसे लेने भी जाया करता। उसने और पीछे न मुड़ने की ठान ली। लेकिन ये सवेरा भी शाम और रात बनकर ढलने लगा। 


सुशील के आस पास में सबको इस बात से जलन थी। दोनों कमाने वाले और आपस में इतना सुलझा और प्यारा सा रिश्ता रखने वाले पति-पत्नियों को ये सब झेलना ही पड़ता है। समझदार इन बातों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। और नासमझ वाले अपने आप को ही ले डूबते हैं। सुशील को लोगों की बातें अब कांटे जैसी चुभने लगी। उसने सुश्मिता से कुछ कहा तो नहीं मगर ख़ुद बहुत बेचैन और परेशान रहने लगा। सुश्मिता को कुछ अजीब तो लग रहा था लेकिन उसे सुशील पर बहुत भरोसा था। 


एक दिन सुश्मिता को मीटिंग से आते वक्त देर हो गई। सुशील बहुत गुस्से में था। सुश्मिता ने हमेशा की तरह सुशील का इंतजार किया कि वो लेने आएगा लेकिन वो नहीं आया। वो टैक्सी से घर पहुंची। फ़िर उसने सुशील से कहा- क्या हुआ आज आप नहीं आए मुझे लेने। फोन भी नही उठाया, तबियत तो ठीक है ना?


सुशील- यहां सब ठीक है, बस कुछ चीज़ें ठीक नहीं हो रही। वक़्त रहते सही हो जाए तो बेहतर होगा।

 

इतना कहकर वो कमरे में चला गया।


सुश्मिता उस दिन बहुत परेशान थी। उसने सुशील से कभी इस तरह के प्रतिउत्तर की आशा नही की थी।


वो अगले दिन अपने घर पर गई और घरवालों से इस बारे में बात की। सबने वही कहा जो एक लड़की को आगे बढ़ने से रोकता है।

पति का इस तरह गुस्सा होना शक की पहली सीढ़ी होती है। जो धीरे धीरे बहुत बड़ी इमारत बन जाती है। और वो इमारत शादी जैसे खूबसूरत आशियाने को अपने प्रभाव से तहस नहस कर देती है।


सुशील के पास वापस आई और कहा- आप के मन में कुछ है तो बता दें, यूँ ख़ुद परेशान और गुस्से में रहने से क्या होगा, अगर कोई बात आपको अच्छी न लग रही हो तो आप बोल दें।।


सुशील- अब तुम इस तरह देर तक मीटिंग्स में न रहो। और जितना हो सके घर पे ज़्यादा ध्यान दो। शादी को दो साल हो गये अब गृहस्ती और परिवार की ओर तुम्हारा ज़्यादा वक़्त दिया करो। मुझे रोज़ रोज़ के ताने सुनने पसंद नहीं।


बस ये था सुश्मिता के जीवन के संघर्ष की सबसे कठिन कड़ी।


पति-पत्नी के रिश्ते में शक एक ऐसा दीमक है जो एक बार आ जाए तो धीरे धीरे उस रिश्ते को खोखला कर देता है। उसने तुरंत निश्चय किया कि अब उसे और काम नहीं करना। उसने अपना फर्म बंद कर दिया। बिना कुछ कहे बिना कुछ पूछे उसने चुप चाप अपने सपने को अपनी दिल की गहराई में दबा कर रख दिया। वक़्त बीतता गया, वक़्त के साथ ज़िन्दगी भी। परिवार बढ़ने के साथ साथ आर्थिक अवस्था भी तंग हो चुकी थी। सुशील का बिज़नेस भी कुछ अच्छा नहीं चल रहा था। एक दिन उसके ससुराल वालों ने निश्चित किया कि गाँव में जो पुरानी हवेली है उसे बेचकर कुछ पैसे इकठ्ठा कर ले और सुशील का बिज़नेस भी सुधर जाए। अब खरीददार की खोज होने लगी। उनका गाँव वाराणसी में था जहाँ पर्यटकों की भीड़ बहुत होती है। एक ख़रीददार भी मिल गया उसे वाराणसी में होटल खोलना था।


तभी सुश्मिता ने कहा- हम इस हवेली को बेचने के वजह खुद इसका इस्तेमाल करके अपनी आर्थिक अवस्था सुधार सकते हैं। किसी दूसरे को होटल बनवाने के लिए बेचने से अच्छा होगा हम खुद इसे चलायें।


ये सुनकर सबने मुह फ़ेर लिया। लेकिन सुशील को सुश्मिता की ये बात पसंद आई। उसने पूछा- लेकिन हवेली को होटल बनाने के लिए हमे बहुत खर्चा करना पड़ेगा। और उतना हमारे पास नहीं है।


सुश्मिता ने अपनी बरसों की साधना और मेहनत के बल पर खुद उस हवेली का इंटीरियर करवाया। छोटी से छोटी चीज़ से उस हवेली को अपने संचित राशि से एक नया रूप दिया। देखते ही देखते ये बिज़नेस बुलंदियों को छूने लगा। अब तरह सुशील को अपने ग़लत व्यवहार पर बहुत पछतावा हुआ। लेकिन सुश्मिता ने उसे समझाते हुए कहा-


जीवन संघर्ष में जीत से ज़्यादा राह और राहगीर की ज़रूरत होती है। मैं अगर उस दिन अपने सपने को पाने की आस में आपको छोड़ देती तो मेरी राह मुश्किल बन जात और मेरा राहगीर खो जाता। मैंने अपने सपने को पाने का संघर्ष अपने आप मे जारी रखा। इंतज़ार था तो बस एक राह की जो हमारे आर्थिक स्थिति ने मुझे दिखाई और आप जैसे राहगीर की जिसने देर में सही लेकिन साथ खड़ा होकर दिखाया। शक जैसे दीमक से लड़ना कठिन था मेरे लिए और सही वक्त का इंतजार करना उससे आसान था। सुशील की आँखें भर आईं और उसने सुश्मिता को अपने बाहों में ले लिया और कहा- ये संघर्ष अब हम दोनों का है। कांटे भी हमारे फूल भी हमारे। बस में कांटो को चुनता जाऊंगा तुम फूलों को समेटती जाना…...।


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