संध्या आरती

संध्या आरती

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अनिल जब ओटो से उतरा तो बिल्डिंग देख कर लगा कि यहाँ तो सब साधारण फ्लैट ही होंगे। उसे आश्चर्य हुआ। महंगी जीवनशैली के आदी उसके चाचा यहाँ कैसे रहते होंगे। पर जब उनसे बात हुई थी तब तो उन्होंने अपना नया पता यहीं बताया था।

अनिल कोई दस साल बाद इस शहर में अपने गुरूजी के समागम में हिस्सा लेने आया था। वह उन्हें बहुत मानता था। छोटी उम्र में उन्होंने सन्यास ले लिया था। सारे देश में बहुत से आश्रम थे उनके। वह चाह रहा था जल्द से जल्द अपने गुरूजी की तस्वीर रख कर संध्या आरती कर सके।

जब वह सीढ़ियां चढ़ कर तीसरे फ्लोर पर पहुँचा तो उसे और अधिक आश्चर्य हुआ। यह एक कमरे का साधारण फ्लैट था। सिर्फ एक पंखा लगा था। चाचाजी फर्श पर चटाई डाले बैठे थे।

"चाचाजी आपने वकालत छोड़ दी। अब आप इतने साधारण ढंग से क्यों रहते हैं ?"

"वकालत मैं अभी भी करता हूँ। फीस भी पहले की तरह ही वसूलता हूँ। अपनी ज़रूरतें पूरी करने के बाद जो बचता है वह समाज की आवश्यकता पर खर्च कर देता हूँ।"

अपने चाचा की बात सुन कर संध्या आरती करने की अनिल की इच्छा खत्म हो गई।


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