समधी
समधी
"समधी शब्द को लोग बस बोलते हैं। ना तो उसका मतलब जानते हैं। ना ही उसके अर्थ को सार्थक करते हैं। आप निश्चिंत रहें मैं भेड़चाल में शामिल नहीं हूं। मतलब भी जानता हूं और निभाना भी!!" - किशोर जी ने माधव जी को कहा।
किशोर जी के बेटे की पहली शादी आपसी मनमुटाव के चलते टूट गई थी।उन्होंने अपने बेटे की दूसरी शादी करवाई । रिश्ता किशोर जी के जीजा जी ने ही करवाया था।लड़की का परिवार उतना संपन्न नहीं था,जितना कि किशोर जी का।इसलिए शादी का अधिकतर खर्च किशोर जी ने ही उठाया, बहुत ही सादगी पूर्ण तरीके से शादी हुई।
शादी के बाद बहू की पहली दीवाली थी। किशोर जी के यहां भी अधिकतर परिवारों की तरह रस्म थी कि पहली दीवाली पर ससुराल पक्ष और बेटी के लिए , बेटी के मायके से उपहार भेजे जाएं।आजकल रस्मों पर भी आधुनिकता का रंग चढ़ गया अब लोग कपड़े भेंट करने की बजाय, मंहगे तोहफे, चांदी के बर्तन, ड्राई फ्रूट्स, कई चीजों के बाहरी पैक इतने मंहगे होते हैं कि अंदर मौजूद सामग्री उससे सस्ती होती है।
किशोर जी के समधी माधव जी इसी चिंता में घुले जा रहे थे कि बेटी की शादी के वक्त का कर्ज़ भी बाकी है और अब इतना बड़ा त्योहार।इतने बड़े घर की बहू है, तोहफा भी उनके अनुसार ही देना पड़ेगा।
माधव जी ने अपनी बेटी सौम्या को फोन लगाया -" बेटी!! कैसी हो! सब कुशल मंगल तो हैं? सास - ससुर का स्वास्थ्य ठीक है!!"
सौम्या -" अरे पिताजी!! इतने सारे प्रश्न एक साथ!! आप ठीक तो हो!! कुछ परेशान से लग रहे हो!! "
माधव जी -" नहीं बेटा!! बेटियों के बाप कब चिंता से मुक्त होते हैं। ये तो मन का वहम है की बेटी के हाथ पीले करदो तो सारी चिंता दूर!! असल में तो जीते जी और उसके बाद तक कि चिंता भी माता पिता को पहले ही हो जाती है। "
सौम्या -" पिताजी!! आप बिल्कुल चिंता ना करें। मैं बिल्कुल ठीक हूं। सब बहुत अच्छे हैं और ससुरजी तो आपकी तरह ही मेरा ख्याल करते है, इसलिए उन्हें भी पिताजी ही बोलती हूं मैं।"
माधव जी -" बहुत अच्छी बात है बिटिया!! उन जैसा असाधारण आदमी मैंने आजतक नहीं देखा। इतने धनवान फिर भी जमीन से जुड़े व्यक्ति । जिनके पास बैठकर कोई खुद को छोटा बड़ा समझ ही नहीं सकता!!
अच्छा तुम्हारी सासूमां से पूछकर जरुर बताना ; दीवाली पर तुम्हारे ससुराल में दुल्हन के घर से तोहफे आने का क्या रिवाज है!!"
सौम्या -" ठीक है पिताजी!! पर आप ज्यादा खर्च मत करना!! मेरी 2 बहनें और भी हैं।"
माधव जी -" तू चिंता मत कर बिटिया!! उनके भाग का उनको मिल जाएगा। अच्छा तुम पूछकर जरुर बताना! अपना ध्यान रखना!!"तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, माधव जी ने दरवाज़ा खोलकर देखा तो किशोर जी ढेर सारे तोहफों के साथ दरवाजे पर थे।
माधव जी -" अरे समधी जी आप!! आइए!! आपने इतना कष्ट क्यूं किया। मैं तो एक दो दिन में आपकी तरफ आने ही वाला था!!"
किशोर जी -" अरे!! बैठने तो दीजिए!! समधन जी और दोनों बेटियों को भी बुला लीजिए।"
माधव जी -" जी ज़रूर!! अरे!! सुनो!! देखो समधी जी आएं है। चाय नाश्ते का बंदोबस्त करो!!"
दोनों बेटियों ने भी आकर प्रणाम किया।
किशोर जी -" लो बच्चों!! तुम्हारे लिए दीवाली के तोहफे और कुछ मिठाइयां !!"
माधव जी हाथ जोड़ते हुए -" समधी जी!! इतना शर्मिंदा ना करें!! शादी में भी आपने ज़िद्द करके इतना खर्चा किया । अब ये तो बेटी के बाप का फ़र्ज़ है। मुझे मेरी औकात के अनुसार पूरा करने दें! बेटी के घर के तोहफे देकर मुझे पाप का भागीदार ना बनाएं!"
किशोर जी -" ये आपने कैसी बात करदी समधी जी!!
समधी का मतलब पता है आपको!! या आप भी बस दुनिया की तरह इसे एक रिश्ते का नाम मात्र मानते हैं!!
सम धी - " सम मतलब समान, धी मतलब बेटी। " अब आपकी बेटी, मेरी बेटी समान है। तो वो मेरी भी बेटी हुई।अभी आपने कहा कि बेटी के बाप का फ़र्ज़ निभाने दो।तो मैं भी बेटी के बाप का ही फ़र्ज़ निभा रहा हूं। "
ये सुनकर माधव जी की आंखों में आंसू आ गए, किशोर जी ने उन्हें गले से लगाया और कहा -" आप बिल्कुल चिंता ना करें!! आपको पाप का भागीदार नहीं बनने दूंगा। तोहफे आपके लिए नहीं हैं, मेरी बेटी की; बहनों के लिए हैं। आपके पास तो मैं एक प्रार्थना लेकर आया हूं।"
माधव जी -" अरे!! आप प्रार्थना नहीं ;आदेश दीजिए।"
किशोर जी -" चलिए फिर आदेश ही सही!! आप दीवाली के तोहफों पर कुछ खर्च नहीं करेंगे। आपको अपनी बेटी के घर कुछ भेजना है प्यार स्वरूप तो उसकी मां की हाथों की बनी मिठाइयां लेकर आ जाइए कभी भी।"
माधव जी निशब्द हो गए, उनके दिल के भाव पलकों में आंसू बनकर अटक गए।
इतने में किशोर जी ने बोला -" ये आंसू बहने नहीं चाहिए समधी जी। समधी की परिभाषा बस समझाना नहीं निभाना भी जानता हूं मैं। चलिए अब चाय पीते हैं साथ में!"
माधव जी ने किशोर जी को गले से लगाया, कुछ बोलते तो शायद आंसू शब्दों से पहले बह निकलते; इसलिए सबने बैठकर चाय पी।
किशोर जी ने माधव जी की दीवाली को दिल वाली दीवाली बना दिया।
