अपने रचे नए सूरज के उजाले में अपने तन-मन को भिगोती रही थी माधुरी। अपने रचे नए सूरज के उजाले में अपने तन-मन को भिगोती रही थी माधुरी।
माधव जी इसी चिंता में घुले जा रहे थे कि बेटी की शादी के वक्त का कर्ज़ भी बाकी है! माधव जी इसी चिंता में घुले जा रहे थे कि बेटी की शादी के वक्त का कर्ज़ भी बाकी है...