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Yogesh Kanava

Abstract Drama Romance

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Yogesh Kanava

Abstract Drama Romance

सम्बल

सम्बल

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मोबाइल की घण्टी बजी, नीलमणि ने झट से मोबाइल उठाया और देखा, अरे वाह तिवारीजी का फोन है। झट से कान के लगाया और बतियाने लगी। दुनिया जहान की बातें। वैसे ऐसी कोई भी बात नहीं थी जो वो तिवारी जी से नहीं करती थी। समाज, साहित्य, राजनीति, आर्थिक विचार, वर्तमान परिदृश्य में युवा पीढी, स्त्री पुरूष सम्बन्ध और यहां तक की अन्तरंग सम्बन्धो पर भी। वैसे भी वो किसी भी विषय को वर्जित नहीं मानती थी। उसका मानना था कि जो कुछ इस सृष्टि में है तो वो वर्जित क्यों हो। तिवारी जी से उसकी मुलाकात एक तरह से वर्चुवअल कही जा सकती है क्यों कि साक्षात कभी मिले नहीं थे। बस फेसबुक के माध्यम से तिवारी जी की फ्रेण्ड रिक्लेस्ट आयी थी, प्रोफाईल देखने पर पता चला कि भारी भरकम साहित्यक कद है बन्दे का। कई बड़े पुरस्कार, लेखक, कवि और चिन्तक। फ्रेण्डलिस्ट भी बहुत लम्बी चोड़ी। बात करने में बन्दा एकदम बिन्दास, अपनी उम्र को नज़र अन्दाज करते तिवारी जी की फ्रेण्ड लिस्ट में कम उम्र की महिलाएं एवं पुरूष अधिक थे। कई बार वो सोचती थी कि क्या सोचकर मेरा नाम नीलमणि रखा था, फिर वो सोचती शायद मैं सांवली हूँ इसलिए। लेकिन सांवलापन भले ही हो नयन नक्श तीखे, चेहरे में गज़ब का आकर्षण जिसे देखेते ही कोई भी मोहित हो जाए। इसीलिए शायद वो नीलमणि है।

भरापूरा परिवार, सास, ससुर, दो बच्चे एक देवर, देवरानी उनके दो बच्चे और पति। वो खुद भी सरकारी सेवा में अच्छे पद पर कार्यरत हैं। पति की भी नौकरी उसके बाद लगी लेकिन वो भी अच्छे पद पर कार्यरत है। शादी को पूरे अठारह बरस हो गए हैं। बड़ा बेटा सतरह बरस का और छोटा बेटा पन्द्रह बरस का है। इतना सब कुछ होने के बाद भी नीलमणि खुश नहीं रह पाती है। हालांकि वह एक बहुत अच्छी पत्नी, मां और बहु है। सबकी सेवा में तत्पर, फिर सरकारी नौकरी और शाम को पूरा काम करके सुबह वहीं जल्दी उठना और रोज़ाना की तरह ही नौकरी जाना। खुद भी एक विदुषि सभी विषयों पर लिखना, पढ़ना और चर्चा करना उसे हमेशा ही अच्छा लगता था।

उसकी और अधिक जानने की इच्छा ही उसे चर्चा में आगे और आगे ले जाती थी। परिणाम स्वरूप वो उस विषय की गहराई में डूब जाती थी। अच्छी कुशल गृहणी के साथ अच्छी अधिकारी भी वो बन पायी अपनी इसी खूबी के कारण, लेकिन फिर भी भीतर ही भीतर एक टूटन, एक कमी महसूस करती थी हमेशा। उसे नहीं मालुम था कि आखिर वो कौन सी कमी है जिसका अहसास तो होता है लेकिन पता नहीं चल पाता है।

बचपन से ही सपने देखना और उनको फलीभूत करना उसका शगल रहा है। अब भी वही करती है। शायद उसी जुनून में वो पति से आगे निकल गयी और कोई भी पति यह नहीं चाहता है कि उसकी पत्नी ज्ञान और पैसे में उससे बहुत आगे हो जाए। पुरूष अंहकार को ठेस लगती है। वो अपनी ही धुन में चलती गई और आज साहित्यक क्षेत्र में पति से काफी बड़ा कद हो गया, सरकारी सेवा में वो पहले से ही पति से बड़े ओहदे पर थी। बस सब कुछ होते हुए भी कुछ अधुरापन, जिसकी थाह लेने के लिए एक मृग तृष्णा सी एक अलग किस्म की तलाश। किसकी तलाश नहीं मालुम लेकिन तलाश है कुछ अप्राप्य की।

आज फिर सूर्यकिरण जी का कॉल आया था आज वो कुछ ज्यादा ही रोमान्टिक मूड में थे सो कुछ आगे ही बोल गए थे। वैसे नीलमणि और सूर्यकिरण जी की उम्र का अन्तर बहुत बड़ा था, समझिए कि कोई पच्चीस बरस से थोड़ा ज्यादा, फिर भी वो आज पूरे मूड में थे सो बोल गए कुछ वो बातें भी जो शायद उम्र के लिहाज से नहीं बोली जानी चाहिए थी। खैर आज नीलमणि को भी थोड़ा अच्छा नहीं लगा था वैसे उसे बात करना बेहद अच्छा लगता था लेकिन सूयकिरण जी ने जिस प्रकार से रोमान्टिक अन्दाज़ में बातचीत की वो उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था।

वैसे भी सूर्यकिरण और तिवारी जी लगभग एक ही उम्र के हैं लेकिन तिवारी जी और सूर्यकिरण जी के व्यवहार में ज़मीन आसमान का फ़र्क है। तिवारी जी से इतनी खुली होने के बावजूद उन्होने कभी भी कोई औछी बात नहीं बोली थी लेकिन सूर्यकिरण जी ने तो आज हद ही कर दी थी। नीलमणि की एक बात और थी कि वो पति के साथ हुए झगड़े, तिवारी जी के साथ हुई बातचीत, सूर्यकिरण जी के साथ हुई बातचीत सब कुछ अनिमेश को ज़रूर बताती थी। अनिमेश जी हांँ वो भी नीलमणि का मित्र ही कहिए जिसे वो पति के बाद अपना सब कुछ मानती थी। अनिमेश से भी उसकी मुलाकात बस उसी अनजानी तलाश का ही परिणाम थी। एक दिन अचानक ही किसी के साथ उसकी मुलाकात अनिमेश से हो गई थी, अनिमेश भी एकदम बिन्दास किस्म का लेखक। वैसे यूंँ भी कह सकते हैं ज्यादातर लेखक या तो बिन्दास होते हैं या कुण्ठित। अब यह मालुम नहीं चला कि अनिमेश कुण्ठित था या बिन्दास लेकिन बन्दा एकदम दिलचस्प, उसकी बातें, बोलने का स्टाइल, बिल्कुल अलग। नीलमणि को उसकी बातों और स्टाइल में कुछ कुछ आर के का आभास मिल रहा था। आर के जी हांँ नीलमणि प्यार से उसे आर के ही कहती थी, साथ पढ़े, बढ़े, जवान हुए, उमंगे जागी ,प्यार हुआ और फिर अलग अलग जगह पर शादी। एक अधुरा मिलन, एक अधुरी प्यास जिसने पूरे जीवन भर का खालीपन भर दिया था नीलमणि के जीवन में। इसी खालीपन को भरने के प्रयास में जिस भी शख्स में आर के जैसे गुण दिखते, बातचीत का लहजा, बोलने का अन्दाज़ जैसे ही दिखते वो उसकी बातों से प्रीभावित सी हो जाती थी। हालांकि यह बात सही है कि अभी तक अनिमेश के अलावा आर के की छविवाला कोई भी शख्स उसे नहीं मिला था इसलिए यूं भी कह सकते हैं कि अनिमेश ही वो व्यक्ति था जिसके लिए आर के के बाद उसका दिल धड़कता था।

आज भी नीलमणि अनिमेश के कॉल का इन्तज़ार कर रही थी कि जैसे ही फोन आए वो सूर्यकिरण जी से हुई बातचीत बताए। दरअसल आज वो थोड़ी उखड़ भी गई थी। सूर्यकिरण जो उसकी उम्र से लगभग पच्चीस -तीस बरस बड़े थे, जिनका नाम साहित्य में बहुत बड़ा है लेकिन आज उनकी बात से उसका मूड ऑफ हो गया था। हांलाकि अपनी बिंदास हंसी और व्यवहार के कारण नीलमणि की और किसी भी पुरूष का आकर्षित होना स्वाभाविक है लेकिन शायद आज सूर्यकिरणजी ने सीमाओं का कुछ ज्यादा ही उल्लंघन कर दिया था इसलिए नीलमणि कुछ ज्यादा ही उखड़ी सी थी वो तपाक से बोली - सुना अनि मैं ..... मैं आज समझ ही नहीं पा रही हूँ कि आखिर पुरूष की सोच केवल स़्ी देह तक ही क्यों किमट कर रह जाती है मुझ से तीस बरस बड़े सूर्यकिरण जी जिनकी मैं बहुत इज़्ज़त करती थी आज उन्होने मुझे .... मुझे प्रपोज किया है अन्तरंग सम्बन्ध के लिए। मैं आर के के साथ बरसों रही लेकिन उसने एक बार भी मुझे छुआ तक नहीं तुम्हारे साथ भी हूँ लेकिन .....। पता नहीं कितनी गंदगी रखते हैं अपने दिमाग में, अरे अपनी उम्र तो देखो पैर तो कब्र में लटके हैं और मेरे से रोमांस चाहिए .... साला खडूस बुढा।

अरे नीलू बस अब गाली तो मत दो यार ,तुम्हारे मुंह से गाली अच्छी नहीं लगती है। अच्छा ये बताओ वो रिसर्च पेपर का क्या हुआ तुम किसी कवि पर लिख रही थी ना।

हाँ वो बस आज शुरू करूंगी यार ,क्या करूं आज तो बस मेरा दिमाग ही खराब कर दिया इसने।

अरे अब छोड़ो भी और बताओ

अरे हां मैं तो भूल ही गई थी अनि वो है ना पंखुरी के सम्पादक जो तुम्हारे से मिलने आए थे और ना जाने क्या-क्या कह गए थे

हां याद है लेकिन उसका क्या हुआ

अरे सुनो भी तो, आज उसने मेरी फ्रेण्ड रिक्वेस्ट मानली एफ बी पर बस फिर क्या था मैने भी अपनी पूरी भड़ास उस दिन वाली निकाल दी - अब तो वो बस बावला हो रहा है, लगता है कोई दूसरा सूर्यकिरण है।

अरे यार नीलू तुम ए पंगे मत लिया करो क्या ज़रूरत थी उससे बात करने की। चलो छोड़ो अब फालतू की बातें मत करना और हाँ उससे हुई बातचीत एफ बी पर मत रखना डिलीट मार दो तुम्हारे पति ने देख लिया तो तेरे लिए संकट हो जाएगा यार

जी सरकार--और वो शरारती आवाज़ में बोलती फोन काटकर अपना काम करने लगी। वो अभी काम में लगी ही थी कि तिवारी जी का फोन आगया। वैसे भी तिवारी जी दिन में एक या दो बार तो फोन कर ही लेते थे। वो अपसेट तो थी ही तिवारी जी का फोन नहीं उठाया। लेकिन थोड़ी ही देर बात फोन दुबारा धनधना उठा इस बार उसने उठा ही लिया, बातों का सिलसिला शुरू हुआ ना चाहते हुए भी उसके मुं से सूर्यकिरण से हुई बातचीत निकल ही गई। तिवारी जी ने इत्मिनान से उसकी बात सुनी और बोल -

देखो नीलमणि यह पुरूष की प्रवृति है कि जब भी कोई महिला थोड़ा सा हंस बोलकर रहती है या थोड़ा सा बिन्दास बन जाती है तो पुरूष उसे सर्व सुलभ मान लेता है और बस फिर शुरू हो जाता है। यही हाल उस सूर्यकिरण का है वैसे मैं उसे जानता हूँ एक नम्बर का औरतखोर है साला। अपनी आदतों से बाज नहीं आता है। मैं जानता हूँ उसकी फितरत।

आप जानते हो उनको

हां मैं जानता हूँ, खैर छोड़ो ये बताओ वो तुम्हारे मित्र क्या नाम बताया था ...............

हां याद आया अनिमेश ........... उसकी किसी किताब का ज़िक्र कर रही थी तुम।

वो क्या था ना उनकी अभी एक ताजा किताब आई है आपके अवलोकनार्थ भेजनी थी

हाँं तो भेज दो, तुम्हारा मित्र है तो निश्चय ही अच्छा राइटर तो होगा ही।

वो तो आप बताएगें। मेरे को तो अच्छे लगते हैं।

अच्छा भिजवा दो।

और फिर फोन कट गया। नीलमणि सोच रही थी कितना अन्तर है तिवारीजी में सूर्यकिरण में और अनिमेश में। तीनों ही पुरूष है लेकिन तीनों के ही बिल्कु ल अलग अलग भाव है। बस यूं ही सोचते सोचते वो सो गई। डोर बेल की आवाज़ से अचानक ही उसकी आँंख खुली, पता ही नहीं चला शाम के छः बज गए थे। दरवाजा खोला तो बाई बरतन साफ करने के लिए आई थी। वो बरतन करके चली गई, थोड़ा सा सर भारी हो रहा था सोचा चाय बना लेती हूँ, चाय बनाई लेकिन ख़यालों में ध्यानही नही रहा चाय पत्ति दो बार डाल दी थी सो एकदम कड़क बनी थी चाय। चाय पी ही रही थी कि छोटे बेटे के चिल्लाने की आवाज़ से न चाहते हुए भी वो उठ खड़ी हुई। उसके पास जाकर देखा तो उसने पूरा कमरा फैला रखा था। पूछने पर पहले कि तरह ही चिल्ला पड़ा मेरी चीजों को क्यों छेड़ते हो, मैने पचास बार बोला है मेरी चीजों को मत छेड़ा करो। वो सकते में आ गई इतना छोटा लड़का अभी नवीं क्लास में ही पढ़ रहा और इस तरह का बर्ताव। वो सोचने लगी जब इसके पापा होते हैं तो ये एकदम सीधा सा रहता है उनके जाते ही अब तो पूरा रावण हो गया है। उसका चिल्लाना कम न हुआ था वो भी गुस्से में बोली

ये क्या तमीज है तेरी, पूरा कमरा फैला रखा है।

मैने कह दिया ना आगे से आप मेरे कमरे को नहीं छेड़ोगी, बस।

इस तरह के व्यवहार को छोटे से वो कभी उम्मीद ही नहीं कर सकती थी लेकिन आज के इस व्यवहार ने उसे अन्दर तक झकझोर दिया वो सोचने लगी इस लड़कि कि इसके पिता के अलावा कोई ठीक नहीं कर सकता है। उसे कुछ नहीं सूझा बस अनिमेश को फोन लगाया। अनिमेश ने उसका का रिसिव नहीं किया। वो फिर लगी काल करने लेकिन इस बार फोन स्विच ऑफ आया। उसकी झल्लाहट और बढ़ गई उसे लगा कि एक बार फिर आर के उससे बिछड़ रहा है। वो अनिमेश में ही आर के की छवि देखने लगी थी। वो और ज्यादा झल्ला रही थी। मैं ऐसा नहीं होने दूंगी अब आर के मुझ से अलग नहीं हो सकता है। वो और अधिक झल्ला रही थी। इसी झल्लाहट में उसने छोटे को तीन चार थप्पड़ जड़ दिए।

अगले दिन कोई ग्यारह बजे अनिमेश का काल आया। नीलमणि का मन किया नहीं उठाए मगर एक अनजानी सी चाह ने फोन काल रिसिव करवा लिया वो धीर से बोली हैलो।

हां नीलु क्या हुआ कल मै घर पर था तुम्हें मालुम है ना मैं घर पर तुम्हारा काल नहीं ले सकता हँॅूं। पत्नी पचास सवाल पूछती है यार

तो जाओ ना किसने कहा है मुझसे बात करने को, जाओ उसी के पास, उसी से बात करो। और झट से फोन काट दिया। उधर अनिमेश सोच रहा था आखिर ये समझना क्यों नहीं चाहती है कि मेरा भी घर परिवार है, उसके प्रति भी जिम्मेदारी है।

उधर वो सोच रही थी -

आर के जैसा होने में और आर के होने में बहुत बड़ा अन्तर है। आज आर के मेरे साथ होता तो ......।

उधर अनिमेश दफ्तर की उलझनो से पहले ही परेशान था और बीच में ही नीलमणि का यह व्यवहार, और ज्यादा परेशान हो गया था वो लेकिन कर कुछ नहीं सकता था वो सोच रहा था

आर के इसका अतीत है जिसको ओढे वो हमेशा चलती है। आर के इसका आत्मबल है ......... अगर वो इसका आत्मबल है तो फिर मैं क्या हूँ इसका ..........

....... शायद वर्तमान का सम्बल

....... हूँ शायद यही है। तो फिर इसका पति क्या है इसके लिए ..........

(उसके ज़हन में एक विचार कौंधा)

...... वो इसका यथार्थ है .........

.... हूँ ....... तो इसका मतलब यह हुआ आर के आज भी इसका आत्मबल है, मैं वर्तमान का सम्बल और इसका पति इसका यथार्थ है। .......बिल्कुल यही है और यथार्थ हमेशा यथार्थ ही रहता है। आत्मबल या वर्तमान का सम्बल दोनो ही दिल के भीतर कहीं बसे होते हैं। जो यथार्थ के सामने नहीं आते हैं। वो इसी प्रकार से सोचे जा रहा था तभी उसकी पत्नी का फोन आया कि उसकी अचानक से तबियत ज्यादा ही खराब हो गई है। वो तत्काल घर रवाना हो गया था। वस्तुतः अनिमेश अपनी पत्नी, अपने परिवार को बहुत चाहता था, और एकदम केयरिंग हसबेण्ड, केयरिंग फादर और केयरिंग पर्सन है। घर जाकर पत्नी को दवा दी, उसे बिस्तर पर सुलाया और खुद उसका सर अपनी गोद में लेकर बैठा रहा। अब उसके ख़यालों में नीलमणि नही थी, बस उसकी पत्नी थी, ख़यालों में भी, चिन्ता में भी और सामने भी।

उधर नीलमणि सोच रही थी मैं क्यों पागल हुई जा रही हूँ अनिमेश के लिए, उसका भी भरापूरा घर है, परिवार है, उनके प्रति उसकी जिम्मेदारियां हैं। फिर मैं क्यों उससे इतनी उम्मीद करती हूँ। मुझे क्या हो गया है। इसी उधेड़ बुन में उसने एक बार फिर अनिमेश को फोन लगाया लेकिन नो रिप्लाई रहा। वो घर में ही बैठ गई आज आफिस भी नहीं गई थी। न जाने कब उसे नींद आ गई थी लेकिन जब मोबाइल की घंटी बजी तो आंख खुली अनिमेश का ही कॉल था।

हैलो

क्या कर रही हो नीलू

कुछ नहीं बस आंख लग गई थी ज़रा

हूँ

क्या हुआ बोला ना अनि कुछ

क्या बोलूं तुम समझना ही नहीं चाहती हो बोलता हूँ तो मुझ से भी लड़ने लगती हो।

नहीं अब बोलो ना, नहीं लडूंगी अब

हूँ ..... देखो अनि तुम जानती हो आर के तुम्हारा आत्मबल है और उसकी जैसी छवी जिसमें भी मिलती है तुम बस उसके पीछे पागल हो जाती हो। अपने आत्मबल को अपनी कमज़ोरी मत बनाओ। और यह सब हो रहा है इसलिए कि तुम्हारे लिए जो अप्राप्य है उसकी तलाश तुम्हे, मुझ तक, तिवारीजी और सूर्यकिरण तक ले गई। शायद आर के की छवि के सबसे नजदीक मैं हूँ इसलिए तुम अपने पति के बाद मुझ पर सबसे ज्यादा भरोसा करने लगी हो, इसलिए मैं तुम्हारा वर्तमान सम्बल हूँ। लेकिन एक बात तुम्हें समझनी होली नीलू ......।

बोलो ना रूक क्यों गए

मैं सोच रहा हूँ कहीं फिर तुम उलझ ना पड़ो मुझसे

तो क्या हमेशा उलझती ही रहती हूँ तुमसे

देखो तुम अब भी कितने गुस्से में बोल रही हो

ओह सॉरी ........... लेकिन अब सीधे से बोलो तुम

अरे डांट क्यों रही हो यार

अच्छा जी अब बोलो

हूँ ..... मैं कह रहा था उस अप्राप्य की तलाश ही

देखो तुम अब फिर तलाश बोल रहे हो वो ना तो तलाश है और ना ही मेरा भटकाव

अरे यार सुन तो लो

लेकिन मेरा भटकाव नहीं है

मैने भटकाव कब कहा

लेकिन तलाश तो कहा ना, वैसे सुनलो मुझे किसी की तलाश नहीं है। समझे

जी समझ गया ...... कि ...... तुम्हे समझाना मेरे वश में नहीं है।

ओह हो क्या क्यों नाराज हो रहे हो बोलो ना

तो मैं कह रहा था कि आर के किसी कारणवश तुम्हे नहीं मिला, अप्राप्य रहा आज भी उसी अप्राप्य को हासिल करने की बात अवचेतन में है और वही अवचेतन की अवस्था में तुम मेरे से मिले हो और मैं तुम्हारा वर्तमान का सम्बल बन गया हूँ।

यह तो बिल्कुल ठीक है।

और तुम्हारा आज भी आत्मबल आर के ही है। लेकिन जो समझाना चाह रहा हूँ वो यह है कि तुम्हारा यथार्थ तुम्हारा पति है। यह तय है कि मैं तुम्हारा सम्बल बना रहूँगा लेकिन इन बच्चों के लिए तुम्हे अपने पति की नौकरी वाले शहर मे ही स्थानान्तरण करवा लेना चाहिए।

वो मैं नहीं करूंगी।

देखो हम सब कुछ परिवार और बच्चों के लिए ही तो करते है ना

वो तो है

तो बस समझो अब

लेकिन

अब कोई लेकिन नहीं मैं तुम्हारा सम्बल हमेशा रहूँगा। ओ के।

हूँ

बस इतना कह कर अनिमेश ने फोन काट दिया और अपने काम मे जुट गया। नीलमणि उसकी बात को कितना समझ पाई, कितना नहीं समझी इसको सब भविष्य पर छोड़ दिया उसने। अनिमेश के इस तरह से फोन काटने पर वो अन्दर से टूटी हुई सी महसूस कर रही थी। उसे लगा उसका आर के आज फिर उससे छूट गया है ...... वो कुछ भी नहीं समझ पा रही थी तभी उसने एक निर्णय लिया। आज बरसों बाद उसने आर के को फोन लगा दिया। आर के ने फोन उठाते ही वो बोल पड़ी

सुनो फोन मत रखना मैं जानती हूँ तुम्हारी पत्नी है बच्चे हैं लेकिन मैं आज भी तुम्हारे बिना एकदम अधुरी हूँ। एकदम अधुरी, इसलिस प्लीज मेरी बात सुनलो, मैं इतने बरसों में तुम्हे आज तक बिल्कुल नहीं भूल पाई हूँ। बहुत कोशिश की मैने भुलाने की लेकिन जितनी कोशिश की उतना ही तुम ज्या़दा याद आए। सोचा पति और बच्चों में मन लगाऊं, लेकिन तुम्हारी याद हमेशा बीच मे ही आती रही।

आज मैं बिल्कुल टूट चुकी हूँ, बस मुझे संभालो।

देखो सब ठीक हो जाएगा, मैं भी तुम्हे बिल्कुल नहीं भुला पाया हूँ, तुम्हारी ही ज़िद थी मैं तुम्हे फोन नहीं करूं सो नहीं किया लेकिन इसके मायने ये नहीं है कि तुम्हे याद नहीं किया।

और फिर बड़ी देर तक दोनों ने बात की। एक दूसरे के सुख दुख की प्यार प्रीत की, गुज़रे ज़माने की सब बातें। आज नीलमणि बिल्कुल तनाव रहित हो गई थी। वो सोचने लगी मैं आर के से अलग थी ही कब, बिना वजह ही उसके छवि के पीछे भाग रही थी बहुत अन्तर है सच, छवि और यथार्थ में। आर के तो मेरी सांसो में बसा है जो अलग हो ही नहीं सकता है। लेकिन यह भी सच है कि अनिमेश मेरा सम्बल है।


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