Rajeev Kumar

Inspirational

4.2  

Rajeev Kumar

Inspirational

सक्षम-असक्षम

सक्षम-असक्षम

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विपत्ति के आगे तो किसी का वश चलता नहीं, कोई तो इसको ईश्वर की इच्छा मान लेता है और कोई संघर्ष करकर पार भी निकल जाता है। बहुत से लोगों की तरह मंडल दंपत्ती पर भी विपत्ति औद दुःखो का पहाड़ टूटा था। प्रथम बार प्रसव पीड़ा झेलने के बाद मंडल दंपत्ती को मृत संतान की प्राप्ति हुई थी। मंडल दंपत्ती का मन दुःखांे के अथाह सागर में डुब गया था। सुख की उम्मीद छोड़ चुके मंडल दंपत्ती कि जीवन में खुशी की नई किरण फैलनेवाली है, आज पनकी मंडल की प्रसव पीड़ा हद से अधिक बढ़ गई तो डा0 श्रीमती शोभना सहाय ने इमिडिएट एक्शन लेते हुए सिजेरियन जन्म करवाया। काफी दर्द झेलने के बाद, खुशी हाथ लगी थी, उस पर भी कुठाराघात हुआ और विकलांग बच्चा पैदा हुआ। उदास दंपत्ती नियति मानकर बच्चे को घर ले आए।

विकलांग बच्चा के जन्म लेने की खबर तो पूरे गाँव में फैल गई थी । अबतक किसी ने भी मंडल दंपत्ती को इस बात का एहसास नहीं होने दिया था, लेकिन शानदार भोज में ढेर सारा भोजन ठंसूने के बाद, चचेरे भाई ने पवन मंडल से कहा ’’ वाह भइया, विकलांग बेटा के जन्म पर भी इतना खर्चा आपने किया, मैं तो एकबारगी सोचता, चलो अच्छा है। ’’ पवन मंडल ने पत्नी पनकी मंडल की आँखों में झांका और उनके हाथ पत्नी की हथेली को सहला रहे थे। कुछ ही दिनों में ही मंडल दंपत्ती को एहसास हो गया कि चचेरे भाई ने भोज के दिन जो बात कही थी, लगभग पूरे गाँव का समर्थन उनको प्राप्त है। इतने ताने सूनने के बाद भी मंडल दंपत्ती ने विकलांग बच्चे को कभी बोझ नहीं समझा। बड़े प्यार से पुत्र का नाम उदय रखा। इस बात की भी चर्चा गाँव मंे हाती रही। उदय के पाँव और हाथ दोनों अपंग थे।

गाँव मंे बहूत बड़े वैद्य आए, हालांकि उन्होने कुछ जड़ी-बूटी दी और कहा ’’ इस तेल से मालिश करो, तीन खुराक प्रतिदिन और उससे बड़ी बात भगवान पर भरोषा रखो। ’’ भगवान पर तो भरोषा बढ़ा मगर वैद्य जी की दवाईयां बेअसर। इसके बावजूद भी बड़े-बड़े डॉक्टरों का पता लगाते रहे।

विद्यालय में नामांकन करते समय शिक्षक ने उदय को देखकर, पवन मंडल की तरफ देखा और थोड़ा मुस्कराए भी, जाते-जाते पवन मंडल जी को एक टोन भी सुनायी पड़ा ’’ लगता है रूपया बहूत है, इसलिए खिचड़ी स्कूल में न डाल कर अंग्रजी स्कूल में डाल रहे हैंे। ’’ पवन मंडल अनसुना करके आगे बढ़ गए। प्रत्येक दिन पवन मंडल, बेटे उदय को कांधे पर बीठा कर छोड़ने जाते और ले आते।

उदय की विकलांग काया, बच्चों और कुछ शीक्षकों के लिए हंसी का कारण बन गया। शारिरीक बल भले ही उदय को न मिला हो, मगर आत्मिक बल की कोई कमी नहीं थी। उसने विकलांग, धरती का बोझ और न जाने क्या-क्या सुनने की आदत शुरू से ही डाल ली थी। कमलेश ने व्यंग्यवाण चलाते हुए, उदय से कहा ’’ चल छलांग लगाते हैं, देखते हैं कि कौन जितता है ? ’’ इस बात के साथ सारे बच्चे एक साथ ठहाका लगाकर हंस पड़े।

’’ ये विकलांग, चकित कर देगा , लगाकर छलांग। ’’ यह आवाज उदय के भीतर से आई थी।, इस पर बच्चे बहूत देर तक हंसते रहे थे।

होनहार विरवान के होत चिकने पात। पहली कक्षा में वो अव्वल आया। कुछ बच्चों और कुछ शिक्षकों के लिए तो आज भी उदय प्रशंसा का पात्र नहीं था। उन लोगों कि कोशिश अब उदय का मनोबल तोड़ने की होने लगी। एक शीक्षक ने कुछ गलत बताया तो उदय ने कहा ’’ किताब मे ंतो ऐसे लिखा है। शीक्षक ने आत्मग्लानी महसूस कर गुस्सा कर कहा ’’ अरे आइंसटीन की औलाद, ज्यादा बन मत, ज्यादा उड़ मत और अपनी हैसियत तो देख लिया कर। ’’ सारे बच्चों की मिश्रीत हंसी ने, उदय के मन को काफी ठेंस पहंूचायी। उदय इतना आहत हूुआ कि आँख से आँख से आँसू न बह सके और न छुप सके। उदय के दुखी मन ने सिर्फ इतना कहा ’’ हैसियत तो एक दिन पूरा स्कूल देखेगा।

छुट्टी के समय , धर्मेन्द्र ने कहा ’’ अरे उदय , तुम्हारा घोड़ा गाड़ी तो अभ तक नहीं आया ? ’’

विनय ने कहा ’’ चल मेरे घोड़े टीक टीक टीक। ’’

उत्तम ने कहा ’’ घोड़ा गाड़ी नहीं कांधा गाड़ी। तु तो विकलांग है, कैसे लगाता है छलांग कांधे तक ? ’’

और तीनों लड़के खिलखिलाकर हंस पड़े, हंसते हुए उनलोगों ने उदय की गुस्से में लाल हो चुकी आँखों में झांका तो तीनों झेंप कर कक्षा से बाहर निकल गए।

अपनं पिताजी के कांधे पर सवार हो घर जाते वक्त उदय खुश था, मगर रंग में भंग डालते हुए, पवन मंडल के चचेरे भाई ने पुछा ’’ भइया, आपका कांधा दर्द नहीं करता है, इतना बोझ सहन कैसे कर लेते हैं ? ’’ चचेरे भाई के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उछल-कुद रही थी।

पवन मंडल ने जवाब दिया ’’ बोझ कैसा रे मदनवा ? एक दिन तो मेरा कांधा मजबूत करेगा। ’’

तपाक से मदनवा ने कहा ’’ धरती का बोझ कितना भारी होता होगा आप समझ सकते हैं भइया। आस-पास के गाँव में एक भी विकलांग तरक्की किया क्या ? ’’

पवन मंडल कन्नी काटकर निकल गए। पनकी मंडल ने उदय के बाल में कंघी करते हूए कहा ’’ मन छोटा नहीं करते। मेरा राजा बेटा तो एक दिन बहूत बड़ा आदमी बनेगा। जो बुरा सोचते है सोचने दो। ’’ माँ ने बेटे के गाल को चुमा और पितजी के कांधे पर सवार हो उदय स्कूल आ गया।

उदय स्कूल के टॉयलेट रूम में अपनी असमर्थता का पूरा-पूरा एहसास कर रहा है, पूरा जोर लगा रहा है। दरवाजा पिट रहा है। आज परींक्षा है और किसी ने ऐसा भद्दा मजाक किया, उदय रो रहा है और भगवान को याद भी कर रहा है। दरवाजा पीटनें की आवाज सुनकर पास से गुजर रे पी.टी. टीचर ने दरवाजा खोला तो जानकर बहूत क्रोधित हुए कि आज ही के दिन किसी ने ऐसा गंदा मजाक किया है। कक्षा के शरारती बच्चे सकपका गए उदय को पी.टी. टीचर के साथ देखकर। पी.टी. टीचर श्री धनराज सिंह ने कहा ’’ इसको टॉयलेट रूम में किसने बंद किया था। ’’ बच्चे हंसने लगे तो पी.टी.टीचर ने कहा ’’ चुप हो जाओ। तुमको शर्म आनी चाहिए। ऐसी शरारत करते हुूए। ’’ उन जलनेवाले शरारती बच्चे कि योजना विफल हुई और उदय पीछले साल की तरह इस साल भी अव्वल आया। उदय पी.टी. टीचर को नमस्ते करता और पी.टी. टीचर भी हाल-चाल पुछते। पी.टी.टीचर और उदय की नजदिकी का एहसास कर कुछ बच्चे भी उदय के साथ हो लिए, उसके दोस्त बन गए। पहले पी.टी. के प्रियर्ड में उदय अकेला कमरे में बैठा कुछ सोचता रहता, मगर अब पी.टी. टीचर के आदेश पर उदय के दोस्त लोग उसका उत्साहवर्धन करते और अपने साथ खेल के मैदान में ले जाते। पी.टी.टीचर ने कूछ दिनों तक सिर्फ देखने के लिए और उत्साहित होने के लिए कहा। शिक्षक कक्षा में पी.टी.टीचर धनराह सिंह का मखौल उड़ाते हुए धर्मनाथ पाण्डेय जी ने कहा ’’ अब तो लगता है कि अपने विद्यालय के पी.टी. टीचर नया किर्तीमान रचनेवाले हैं। सारे टीचर पाण्डेय जी की तरफ देखने लगे तो पाण्डेय जी ने कहा ’’ हाँ, हमारे पी.टी. टीचर श्री धनराज सिंह जी , एक विकलांग को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक दिलवाने वाले हैं। ’’ सारे शिक्षक एक साथ ठहाका लगाकर हंस पड़े। पी.टी. टीचर भी मूस्करा दिए थे और उन्होंने कहा ’’ जी नहीं मैं उदय को ओलम्पिक में उतारने की कोशिश नही ंकर रहा हूं मगर दावा करता हूं कि उदय मेथेमेटिक्स के ओलम्पियाड में जरूर अव्वाल आएगा। इतना सूनने के साथ ही पाण्डेय जी वहाँ से उठकर चल दिए। पी.टी.टीचर ने उदय के माता-पिता से मिलकर उनका भी उत्साहवर्धन किया। मेथेमैटिक्स के शीक्षक को मनाकर कुछ आर्थिक प्रलोभन देकर इस योजना में शामिल कर लिया।

प्रघानाध्यापक को जब इस बात की खबर हुई तो उन्होंने पी.टी.टीचर धनराज सिंह की पीठ थपथपाते हूए कहा ’’ वेलडन, विकलांग ओलम्पिक संस्था की योजना भी बना रहे हैं आप ? कीप इट अप। ’’ बोलकर सिढ़ीयों से नीचे उतरकर प्रधानाध्यापक खिलखिलाकर हंस पड़े। उदय और उसके माता-पिता को गाँव में अक्सर यह सूनने को मिल जाता कि उदय अब खेलेगा-कुदेगा।

मैट्रिक की परीक्षा में जिला में अव्वल आने के बाद अपने खर्च पर पी.टी. टीचर ने इंटरमिडिएट मंे नामांकन करवा दिया और इधर मेथेमेटिक्स ओलम्पियाड में भी उदय ने अपना परचम लहराया। मेथेमेटिक्स टीचर ने गुढ़ ज्ञान देकर उदय को शानदार जीत दिलावायी। ये ता तो बहूत बाद मेें सामने आई कि पाण्डेय जी ने पूरी तैयारी कर ली थी कि उदय नहीं बल्कि मेरा बेटा ओलम्पियाड में चूनाए, इसके लिए उदय का नाम ही हटवाने की बहूत कोशिश की मगर असफल रहे। मेथेमेटिक्स में ऑनर्स करने के बाद जब प्रशासनिक सेवा के लिए परीक्षा देने गए तो, उदय का टेढ़ा-मेढ़ा पैर और हाथ देखकर एक ने कहा ’’ अब तो हमलोगों का चान्स खा जाएगा। ’’

 उदय ने उस लड़के की व्यंग्य वाण को बड़ी सहजता से लेते हुए कहा ’’ कोई किसी का चान्स नहीं खाता है बड़े भाई, सब अपनी-अपनी मेहनत और किस्मत का खाते है। ’’

विकलांग सेवा केन्द्र में सहायता स्वरूप मिले हाथ रिक्शा से उतरकर जब उदय सिढ़ीयां चढ़ने लगा तो सब देखकर आश्चर्यचकित थे। वो सिढ़ीयों पर किसी सांप की तरह रंेंग कर चढ़ रहा था, उसके बदन मे इतनी फुर्ती थी कि जितनी फुर्ती के साथ सक्षम लोग चढ़ रहे थे उतनी ही फुर्ती से असक्षम भी चढ़ रहा था।

उदय प्रथम बार उपायुक्त के रूप में चयनित होकर पूरे गाँव की बोलती बंद करा दी थी। पहली पोस्टिंग अपने ही जीले में हूई तो उदय के माता-पिता काफी खूश थे। अब उदय की अवमानना कोई नहीें कर रहा था , क्योंकि अब वो सबके लिए प्रेरणाश्रोत बन गए थे। उन्होंने अपने नियम बनाए, उस नियम से अधिक लोग खुश थे मगर कुछ लोग दुखी थे। कोई भी अतिविशिष्ट व्यक्ति सीधे बिना अपॉएन्टमेन्ट के कभी नहीं मिल सकता था और नियम से मिलने वालों के लिए उनके मन में सेवा भाव।

विधायक नवल किशोर त्रिपाठी ने कहा ’’ अब इस विकलांग से भीख मांग तभी तो मिलने की इजाजत मिलेगी, इसका जल्दी ही कुछ करना पड़ेगा। ’’

उदय जी ने चपरासी को बेल बजाकर अन्दर बूलाया, चपरासी ने बाहर आकर विधायक जी से कहा ’’’ सर अन्दर बूला रहे हैं, तो विधायक जी ने अपनी मुंछ पर ताव देकर अपनी पी.ए. की तरफ देखा और बिन अपॉएन्टमेन्ट के लिए उपायुक्त से मिलने के चान्स पर खुद के रूतवे पे इतराए भी। उपायुक्त उदय मंडल जी का पहला प्रश्न यही था ’’ विकलांग को क्या भीख दे रहे हैं आप ? और क्या इसका जल्दी करना पड़ेगा ? ’’ उदय आग बबूला हो गए थे और विधायक त्रिपाठी जी कमरे में लगे सी.सी.टी.वी कैमरा की तरफ नजर दौड़ाने लगे।

’’ जाइए, आपका काम एक महिने तक नहीं करूंगा। जहाँ शिकायत करनी है वहाँ कर दीजिए। ’’ उपायुक्त पर अपन वश न चलता देखकर विधायक जील कुर्सी परसे उठने लगे तो उदय जी ने पुछा ’’ अच्छा काम क्या था ? ’’

’’ शहर में विकलांग बच्चों के लिए एक विद्यालय खोलना है, इसी सिलसिले में आपसे बात करनी थी। ’’

उपायुक्त उदय जी ने कहा ’’ ये काम तो हर काम से पहले होना चाहिए, ये मदद आपका रूतवा देखकर नहीं कर रहा हूं बल्कि अपने जैसे कई बच्चों की मदद करने के लिए कर रहा हूं। ’’

मंडल दंपत्ती को उपायूक्त बेटे के विवाह में भी थोड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा मगर एक रिश्ता जो उदय के लिए ही बना था, ज्योति जिसने उदय को कभी उसकी शारिरीक बनावट का एहसास नहीं होने दिया।


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