सिलाई शिक्षिका
सिलाई शिक्षिका
रीवा शादी के बाद अक्सर मैके जाता करती थी। मैके से तो हर लड़की को लगाव होता ही है, वो भी अगर मायका जमशेदपुर हो तो सोने पे सुहागा । पर ,इस बार उसकी गाड़ी अपने फ़्लैट के पास रुकी तो भीड़ देख कर रीवा थोड़ी घबरा गई । गाड़ी से उतरते ही दौड़ती हुई भीड़ में शामिल हुई। तब पता चला की चार नम्बर में जो ' सिलाई शिक्षिका ' रहती थी ,उनका आज देहांत हो गया है। उन्हीं का पार्थिव शरीर है। उसके सभी भाई - भाभी, बच्चे सभी उनके काम में बढ़ - चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।
इस समय उनके श्रद्धा भाव को देख कर कोई भी कह सकता है कि पार्थिव शरीर से उन्हें बहुत स्नेह रहा होगा । अपनी विधि - विधान के बाद उन्हें अन्तिम यात्रा के लिए ले जाया गया । और रीवा ऊपर आ गई ,पर ,उसे ऐसा लग रहा है कि वह कहीं खो सी गई है।पुरानी बातें उसके मस्तिष्क में चलचित्र की भाॅंति घूमने लगी ।
' सिलाई शिक्षिका ' जिसका नाम सुलोचना था , उन्हें रीवा अक्सर सिलाई क्लास जाते देखा करती थी।
सुलोचना आंटी छह भाई बहन थी । उनके पिताजी काफी बीमार रहा करते थे और माॅं बचपन में ही चल बसी थीं। घर की सारी जिम्मेदारी सुलोचना आंटी ने ही संभाला था। भाईयों को पालने के चक्कर में सुलोचना आंटी ने शादी नहीं की । भाई सब पढ़कर अच्छे ओहदे पर नौकरी करने लगे। सभी मिसाल दिया करते थे उस परिवार की । नौकरी करने के बावजूद सभी भाई बहन बूढ़े पिताजी के साथ एक साथ रहा करते थे।
अब शादी का सिलसिला शुरू हुआ। बहन की शादी की आश में बड़े भाई की भी काफी उम्र हो चुकी थी। किसी तरह उनके उम्र से समान कोलकाता की शिक्षिका से शादी हुई। शादी की पार्टी में बहुत सारे लोग आमंत्रित थे । रीवा का परिवार भी था । ससुराल आकर बड़ी भाभी ने नौकरी नहीं की । घर संसार संभालने में लग गई। एक प्यारी सी बेटी हुई। जिसे सुलोचना आंटी शाम को सिलाई क्लास से आने के बाद उसे घुमाया करती। घर खुशहाली से भरा रहता था। एक दिन सुलोचना आंटी के पिताजी भी उन सबको छोड़ कर चले दिए ।
धीरे - धीरे सभी भाईयों की शादी होती गई और सभी अपने बीवियों के साथ अलग अपने घर में सिफ्ट होते चले गए । यहाॅं बड़े भाई -भाभी और सुलोचना आंटी रहने लगी । पर्व त्यौहार पर सभी भाईयों का सपरिवार जुटान होता ।
धीरे - धीरे घर में सुलोचना आंटी को लेकर तनाव रहने लगा । सबको पालने वाली बहन सब पर बोझ बन गई। अब सुलोचना आंटी सभी भाईयों के कुछ - कुछ दिन रहने लगी। भाईयों के भी बच्चों को पाला -पोसा ।
अब उन्हें कभी - कभी ही देख पाते थे फ़्लैट के लोग ।
पता चला कि आजकल वह सिलाई सिखाने की जगह पर ही एक कमरा लेकर रहती हैं। वहीं उन्होंने अपना ऑंख का ऑपरेशन भी करवाया। एक दिन बड़े भाई -भाभी के घर काला चश्मा लगा कर आई थी। रीवा की माॅं से भेंट हुई तो उनके चेहरे पर लाचारी के शिकन दिखे । कहने लगी भाईयों के लिए मैंने अपना परिवार नहीं बनाया इन्हें ही अपना परिवार समझा । परन्तु देखिए आज ये परिवार वाले हैं और मैं बुढ़ापे में अकेली हूॅं। सिलाई क्लास में ही रहती हूॅं। वहाॅं एक छोटा सा लड़का रखा है जो मेरी मदद करता है। अब वही मेरा परिवार है। चिंता यही है कि मरूॅंगी तो क्या होगा ?
कुछ दिन बाद यह भी पता चला कि वह काफी बीमार हैं पर किसी भाई ने अपने घर नहीं लाया । वहीं के लोग देखभाल करते रहे। अस्पताल में भी रहीं पर तब भी परिवार वालों ने खोज खबर नहीं ली। भाईयों को देखने के लिए उसकी ऑंखे पथरा गई।
मरने के दो दिन बाद बड़े भाई -भाभी लेकर आए अपने फ़्लैट के नीचे रखे और अब क्रिया क्रम कर रहे हैं और इतना स्नेह दिखा रहे हैं जैसे सुलोचना आंटी से अगाध प्यार रहा हो ।
श्राद्ध-भोज पर भी बहुत लोगों को आमंत्रित किया। खाना भी बड़ा स्वादिष्ट बनवाया। गरीबों, पंडितों को दान- दक्षिणा दिया। जीते - जी तो बहन खाने को , साथ रहने को तरस गई और अब आत्मा की शान्ति के लिए इतनी खातीरबात हो रही है । किसलिए ?
ये लोग किससे डर रहे हैं? भगवान से , समाज में अपनी इज्जत से या भूत-प्रेत से ?
पर क्यों ? जीते जी इज्जत का ख्याल नहीं रहा तो अब ,क्यों ?
समाज को बदलना होगा। मरने के बाद के रीति- रिवाज और बाह्याडम्बर को छोड़ना होगा।
जिंदा में इन्सान, इन्सान का ख्याल रखे उससे बढ़कर कोई रीति , भगवान, इज्जत और आत्मा की नहीं होती ।
काश सुलोचना आंटी के परिवार ने भी ये समझा होता तो, आंटी की आत्मा को शांति मिलती।
रीवा अश्रुपूर्ण नेत्रों से सोचती रही अभी भी समाज को बदलना बाकी है। हमें इसमें सहयोग देना होगा क्योंकि हम भी तो इसी समाज का हिस्सा हैं।