Padma Verma

Inspirational

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Padma Verma

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दोस्ती की गहराई

दोस्ती की गहराई

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घर की घंटी बजी तो, दौड़कर रूपेश ने दरवाजा खोला। सामने काले बालों वाले अधेड़ उम्र के सज्जन को देख रूपेश ने दादा जी को आवाज लगाई - देखिए दादा जी, कोई आए हैं जो, अपने को आपका दोस्त बता रहे हैं। 


   मनोहर ऑंगन में पेपर पढ़ने में तल्लीन थे। इतनी सुबह - सुबह कौन आ गया ?  

    उत्सुकता के साथ नजरें उठा कर देखा तो आश्चर्य हुआ। पूछा -बिना किसी खबर के कैसे आना हुआ राजेश ? राजेश ने कहा - क्यों भई, अब तुमसे भी अप्वाइंटमेंट लेनी होगी क्या? 

  अरे‌, नहीं, नहीं ऐसी बात नहीं है। तुम्हें अचानक देखकर बहुत खुशी हो रही है। रूपेश इनसे मिलो, ये मेरे बचपन दोस्त हैं राजेश और ये जो इनके काले बाल देख रहे हो न, रंगाई - पुताई नहीं है बल्कि ओरिजनल हैं। 

    तब रूपेश ने कहा - आपके तो पूरे सफ़ेद हैं दादाजी। वाह ! मेरे दो दादाजी हैं - एक सफ़ेद बालों वाले और एक काले बालों वाले।


  ये कहानी तीन दोस्तों की है। जो बचपन से एक साथ पले- बढ़े। एक साथ स्कूल जाना और आना। थोड़े बड़े हुए तो कभी साइकिल, कभी बस से काॅलेज आना- जाना। 

  अपनी इच्छा मुताबिक विषयों को लेकर काॅलेज खत्म कर नौकरी- पेशे में लग गए। रमेश ने बैंक की नौकरी की । मनोहर ने व्यापार में अपना पैर मजबूती से जमाया और राजेश ने मार्केटिंग में अपनी किस्मत आजमाई।

        समय -चक्र के साथ सभीअपने जीवन में आगे बढ़ गए। अलग - अलग शहरों में रहते हुए, सभी अपने - अपने परिवार तथा नौकरी में व्यस्त हो गए। कभी कभार मुलाकात हो जाती।

   सबकी शादी हो गई। बच्चे बड़े हो गए। रिटायरमेंट के बाद एक दिन अचानक रमेश की तबीयत खराब हुई। वह अपना इलाज कराने मुम्बई सपत्नी आये, जहाॅं राजेश रहा करते थे। उसे गंभीर बीमारी ने जकड़ रखा था। कोरोना के समय में भी राजेश ने रमेश की काफी मदद की। उसके साथ अस्पताल में रहा करते।  

   कुछ हालत‌ सुधरने पर राजेश ने रमेश को सपत्नी अपने घर पर रखा। इनका बेटा अमेरिका में रहता था। कोरोना के कारण वह इंडिया आने में असमर्थ था। राजेश की पत्नी स्कूल में शिक्षिका थीं। उसने भी उनकी सेवा भाव में कोई कमी न छोड़ी। कुछ ठीक होने के आसार हुए तो, वे राजेश के मना करने बावजूद रमेश अपने गाॅंव चले गए। उनके जाते के साथ इधर राजेश की भी तबीयत बिगड़ने लगी। उसे भी उसी गंभीर बीमारी ने जकड़ा। 

       दौड़ा - दौड़ी बच्चे घर पहुंचे।  बड़े-बड़े डाॅक्टरों से सलाह - मशवरा लेकर इलाज शुरु करवाया। राजेश की पत्नी की हालत खराब हो गई। वह घबराने लगी कि आगे क्या होगा ? बच्चों ने समझाया - मम्मी धैर्य रखो पापा ठीक हो जाएंगे। डाॅक्टर ने दो गंभीर ऑपरेशन कराने की राय दी। बच्चों ने कुछ अन्य बड़े डाक्टरों से मशवरा लेकर ऑपरेशन के लिए हामी भर दी।

       पहले ऑपरेशन के दिन राजेश की पत्नी रीवा दिन -भर बिना पानी के' दीया ' जलाकर भगवान के आगे बैठी पाठ करती रही। बेटा-बेटी दोनों ऑपरेशन थियेटर के बाहर बिना खाना - पानी के अपने पापा को मौत के मुॅंह से लड़ते देखते रहे। कोरोना के कारण कोई भी रिश्तेदार आने में असमर्थ थे। फोन से हाल- चाल ले रहे थे। उन्हें भी घड़ी-घड़ी जवाब देना मुश्किल हो रहा था। लगभग साढ़े पाॅंच के बाद बच्चों को खबर मिली कि ऑपरेशन अच्छे से हो गया। पर, जबतक राजेश को होश नहीं आया परिवार ने पानी तक नहीं पी। बच्चे और पत्नी अनवरत सेवा में लगे रहे। अस्पताल जाना-आना हमेशा लगा रहा। राजेश घर आ गए पर, इलाज चलता रहा। राजेश ने एक दिन अपनी पत्नी से कहा कि बोझ सा लग रहा है। सारा परिवार मेरे पीछे लगा है तो, पत्नी ने कहा, अबतक आपने संभाला परिवार को, अब हमलोगों की बारी है कुछ मत सोचिए बस आशावादी बने रहिए, यही हमारे लिए काफी है। 

  इसी बीच खबर मिली कि रमेश नहीं रहे। अब तो राजेश को संभालना मुश्किल हो रहा था। बहुत समझाने पर उनकी मानसिक स्थिति कुछ ठीक हुई। दिन आगे बढ़ता गया। इलाज चलता रहा। दूसरे ऑपरेशन में भी उसी तरह की घबराहट रही। ईश्वर की कृपा रही। ऑपरेशन अच्छे से हो गया। दो बार नाक में फूड- पाईप भी लगाई गई। कष्ट तो राजेश को झेलना था ही, साथ- साथ परिवार दिन- रात लगा रहा। अब राजेश कुछ ठीक होने लगे। 

   तभी एक दिन अचानक 'तीसरे ' दोस्त मनोहर ने फ़ोन किया। उसी रोग से पीड़ित हो कर वहीं इलाज करा रहे थे। सुनकर अटपटा सा लगा। ऐसे कैसे हुआ। अधेड़ उम्र में तीनों दोस्त एक ही बीमारी से पीड़ित होकर एक जगह इलाज कराने लगे थे। ' दोस्ती ' इस कदर अपना ' रंग 'दिखाएगी। ये किसी ने न सोचा था। 

  दोनों दोस्त अब रोजाना फोन पर घंटों बातें करते। अपने दुख-सुख की बातें करते। अपने दिनचर्या की विस्तार से बातें करते। यहाॅं तक की 'शौच 'के समय भी फोन कानों में होता। बात सही भी थी। दोस्त से बढ़कर हमदर्द दूसरा कोई हो ही नहीं सकता। 

     आश्चर्य की बात कि ये दोनों दोस्त अधेड़ावस्था से युवावस्था में चले गए। घंटों हॅंसी - ठिठोली की बातें होती रहती। अपने बचपन में खो से गए। ये दोस्ताना रवैया टाॅनिक का काम करने लगा। दोनों अच्छे होने लगे। 

   एक दिन मनोहर ने बताया कि उसका रिपोर्ट बिल्कुल ठीक आया है। अब उसे छ: महीने बाद जाॅंच के लिए आना है और फिर साल भर बाद। ये सुनकर राजेश को बहुत खुशी हुई और वह अपने लिए भी थोड़ा आशावादी हो गये। राजेश ने मनोहर को खाने पर सपत्नी बुलाया।

   दूसरे दिन जब मनोहर घर पर सपत्नी आये तो दोनों दोस्त गले मिलकर इतने खुश हुए मानो उनकी वर्षों की मुराद पूरी हो गई। दोनों ने कहा- भई, हमारी पत्नियाॅं और बच्चे हमारे साथ न होते तो हमारा क्या होता?' रमेश ' के लिए दोनों ने शोक व्यक्त किया। राजेश ने कहा यदि रमेश

मुंबई छोड़ गाॅंव न गया होता तो वह भी आज हमारे साथ दावत पर होता। खैर ईश्वर की यही मर्जी थी। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।

  दोनों दोस्त खाते वक्त पुरानी यादों में खो गए। कुछ अनसुनी दास्तान के भी चर्चे हुए। पत्नियाॅं कुछ और सुनने को बेताब थीं। उन्होंने पूछा भी कि आप लोगों की ' गर्ल फ्रेंड ' तो होगी ही। इसपर राजेश ने बड़ा प्यारा सा जवाब दिया। अरे ! उन दिनों के 'गर्ल -फ्रेंड ' का क्या ? जमाना बिल्कुल अलग था। हमारे अभिभावक इतने सख्त थे कि 'गर्ल - फ्रेंड 'में भी 'माॅं की तस्वीर' बेलना लिए हुए दिखने लगती थी। शादी भी तो परिवार की मर्जी से हुआ करती थी। असली ' गर्ल - फ्रेंड ' तो पत्नी ही होती है जो, जीवन भर साथ निभाती है। मनोहर ने भी इस बात पर हामी भरी और कहा पत्नियाॅं सही मायने में जीवन साथी होती हैं। 

  अब मनोहर के जाने का वक्त हो गया। दुखी मन से राजेश ने मनोहर को विदा किया, यह वादा लेते हुए कि

फोन का सिलसिला बरकरार रखेगा और सच में गाॅंव जाकर भी मनोहर ने उस वादे को निभाया। एक को फोन करने में देर होती तो दूसरा फोन करके हाल - चाल ले लेता।  ये सिलसिला आज भी बरकरार है। आगे भी बरकरार रहेगा। दादा, नाना बनने पर भी वादा बरकरार रहेगा। अब राजेश भरपूर आशावादी हो गए।ठीक भी होने लगे क्योंकि, दोस्ती - टाॅनिक जो पी रहे थे,  ये जिगरी दोस्त, जो दवाइयों की अपेक्षा हजा़र गुणा ज्यादा असर कर रहा था। 

  मनोहर ने एक तस्वीर भी भेजी थी। जिसमें वे अपने नाती, पोते और प्यारे 'डाॅगी ' के साथ बैठकर गाड़ी चला रहे थे। राजेश ने अपनी पत्नी से कहा - देखो, इसमें मनोहर क्या जॅंच रहा है ! पत्नी ने कहा - बिल्कुल सही कहा आपने। आगे आप भी दादा बनकर सैर करेंगे। आशावादी बने रहिए।

  ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ---


  रहे दोनों दोस्तों 

  का हाथ ....

  पोता - पोती, नाती- नतिनी

  के साथ ....

  रहे चलती हमेशा ...

  दोस्ती - टाॅनिक,

  की सौगात ....



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