सीख
सीख
अलसायी सी सूबह मौसम में उमस आज पूरे तन-बदन को झंकझोर कर रख देने के लिए जुगत में था। वो चाह कर भी विस्तर नहीं छोड़ पा रही थी। थोड़ा सा और, पाँच मिनट और करते-करते एक घंटा निकल गया तो कुछ ताजगी का अनुभव उसको हुआ। संगीता ने हाथों से टटोल कर देखा तो उसका पाँच वर्षीय बेटा, बिस्तर पर नहीं मिला। खुद से ही सवाल किया कि आज जल्दी मुझ से पहले कैसे उठ गया। जा कहाँ सकता है, करने के बाद धो तो खुद से ही लेता है। जरूर बाथरूम ही गया होगा। ’’ दीपक दीपक। ’’ बोलकर संगीता ने आवाज लगायी और रसोईघर में दाखिल हुई तो देखकर दंग रह गई। दोनों हाथों से अपनी आँखों को मलकर संगीता ने अपना शक दूर किया कि कहीं मेरी आँखें धोखा तो नहीं खा रही है। संगीता ने देखा कि उसका दीपक फ्रीज मे रखा, रात का सना आटा निकालकर, सही से बेलकर रोटी की शक्ल दे चुका है। गोलाई-बेलाई इतनी सफायी से दीपक ने की कि संगीता के मन में कौतूहल का जगना स्वाभाविक ही था। घुटनों के बल पर फश पर बैठ कर संगीता ने दीपक से प्रश्न किया ’’ क्या हो लहा है दिपू ? ’’
दीपक ने चमक कर पीछे मुड़कर देखा और तूतलाती-हकलाती मासूमियत भरी आवाज में कहा ’’ मम्मी मम्मी ओटी ओटी। ’’ दीपक के चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान तैर रही थी और इसके बाद भाव विहवल होकर संगीता ने दीपक को गले से लगा लिया और सोचने लगी कि अगर दीपक को अगर सिखाया जाए तो ये बहुत कुछ सीख सकता है।
संगीता हर रोज तैयार होकर बेटे को स्कूल छोड़ने तो जाती ही थी, मगर आज वो खुद को बड़ी बुलंदी से तैयार कर रही थी, खुबसूरती के लिए नहीं बल्कि प्रतिभा जागृति के लिए। संगीता ने दीपक के टीचर से मिलकर बात की और पढ़ायी के साथ-साथ एक्स्ट्रा क्यूरिकुलर एक्टिविटी ( पढ़ाई के अतिरिक्त प्रतिभा ) पर विशेष ध्यान देने को कहा। दीपक के उज्जवल भविष्य के सपने बुनते-बुनते संगीता खुद को गौरवान्वित महसूस करने लगी।