शुक्ल पक्ष से कृष्ण पक्ष
शुक्ल पक्ष से कृष्ण पक्ष
मेरी कॉलोनी यूँ तो बड़ी ही शांत और क्लांत कॉलोनी है मगर कभी-कभार छोटे-मोठे धमाके सुनायी दे जाते हैं मगर उनकी गूँज सिर्फ दो पडोसी मक़ान तक ही सीमित रहती है, हम जैसे गृह-घुस्सू प्राणी को उनका पता अगले दिन पता लगता था जब कोई बताता था कि इस एल. ओ. सी. पे ही कल धमाके हुए थे!
ख़ैर, मुद्दे से न भटकते हुए, मैं आप सबका परिचय करवाता हूँ कर्नल साहब से! नाम छोड़िये क्या करेंगे उसे जानकर क्यूंकि आज के माहौल में नाम के हिसाब से ही तय होता है कि फलां आदमी क्या कर सकता है और क्या नहीं! तो हम उन्हें कर्नल साहब ही कहेंगे! कर्नल साहब जैसा कि विदित हो रहा है भारतीय थल सेना से कर्नल के पद रिटायर हुए थे! इकलौता बेटा करगिल की लड़ाई में देश को न्योछावर कर दिया था जिसने मरणोपरान्त वीर-चक्र का तमगा हासिल किया था! वो २१ सालां नौजवान अपना फ़र्ज़ अता कर चला गया मगर पीछे छोड़ गया गर्वित पिता और बिलखती माँ को! ख़ैर! आज कर्नल साहब ६० और ७० के मध्य खड़े थे मगर सेहतमंद एवं आत्म-निर्भर जो हर कार्य आज भी स्वयं करने में विश्वास करते हैं! मैं तो ख़ैर निशाचर हूँ जब मेरे सोने का समय होता तब वो पार्क में रोजाना की तरह घूमने रहे होते थे! कभी मिलते तो मीठी सी तड़ी दे देते कि "यंग मैन ट्राई टू गेट अप अर्ली इन द मॉर्निंग (अर्थात जवान बच्चे! सुबह जल्दी उठने की कोशिश किया करो!)" ख़ैर न कर्नल साहब ने अपनी आदत बदली और न ही मैंने अपनी!
एक दिन कर्नल साहब एक छोटे से बच्चे को लेकर आते दिखे जो कि मैला-कुचैला दिख रहा था, उस दिन ऑफिस का काम थोड़ा ज़्यादा था तो मैं कर्नल साहब के आने तक जगा हुआ था! तो मैंने पूछा,"कर्नल सर! ये कौन है? कहाँ से ले आये इस छोटे नवाब को?" मेरे इस प्रश्न पे कर्नल खिलखिलाकर हँसने लगे,",अरे ये भाई, इस भरी सर्दी में ये मेरी पेण्ट खींचकर कहने लगे कि अंकल सर्दी लग रही है ज़रा चाय पिला दो न, मुझे दया आ गयी और मैंने इन नन्हें साहब से इनके माँ-बाप का पूछा तो पता चला कि ये अनाथ हैं, तो मैं इन्हें उठा लाया!" पूरी कॉलोनी इनको कुड़मुड़ाता बूढा मानती थी मगर आज मैंने इनकी असलियत के दर्शन किये थे!कर्नल साहब को एक और शौक़ था और वो था खगोलविज्ञान यानि एस्ट्रोनॉमी का! हर महीने १५ दिन यानि एक पक्ष चन्द्रमा को देखकर बिताते थे और कई तारामंडलों का उन्होनें सविस्तार वर्णन अपनी एक डायरी में भी किया था! चाँद की सतह के दर्शन तो कई बार मैंने भी किये थे उनकी छत पे जाकर!वक़्त बीतता गया वो ७ सालां बच्चा आज ग्यारह साल का बालक हो गया था!
एक दिन मैं ट्यूर से आया तो कर्नल साहब मुझे सुबह घूमकर आते हुए नहीं दिखे तो पता चला कि जिस दिन मैं आया था उससे एक दिन पहले अल-सुबह ही नींद में कर्नल साहब को दिल का दौरा पड़ा और वो तत्क्षण ही स्वर्गस्थ हो गए! अब उनकी पत्नी जो कि अब और वो छोटा ही बचे थे!कर्नल साहब के देहावसान के चंद दिनों के भीतर मेरा तबादला भी बाहर हो गया! १५ साल बीत गए और फिर से मैं पदोन्नति लेकर अपने पुराने शहर में लौट आया और आते ही कर्नल साहब के घर की तरफ़ गया ही था कि रास्ते में मुझे मेरे वही पुराने ख़बरी पड़ोसी मिल गए जिनसे मुझे कॉलोनी की एल. ओ. सी. पे युद्ध और युद्धविराम की ख़बरें मिलती थी! उनसे रामा-श्यामा कर मैंने उनसे कर्नल साहब के घर तक जाने की इज़ाज़त मांगी कि उन्होनें अचानक ही मेरा हाथ पकड़ मुझे एक तरफ़ ले लिया! "भाई! वहाँ मत ही जा कर्नल साहब से परिचित होने का तमगा टाँककर!" उन्होनें कहा तो मैंने विस्मय का भाव लिए उनसे पूछ ही लिया,"क्यों क्या हुआ?" जो कहानी सामने आयी वो कुछ इस तरह से थी वो भी उनके शब्दों में:तुम्हारे और कर्नल साहब के जाने के बाद, कर्नल साहब की पत्नी के पास सिवाये उनके गोद लिए बेटे के कोई सहारा नहीं था! उसकी पढ़ाई-लिखाई में उन्होनें अपना पूरा सामर्थ्य लगा दिया! इंजीनियरिंग करके वो अच्छी खासी नौकरी भी करने लगा! पिछले साल न जाने किसने उसको क्या पट्टी पढ़ाई कि उसने बैंक पेपर्स का नाम लेकर तमाम प्रॉपर्टी अपने नाम करवा ली और कर्नल साहब की मिसेज़ को बाहर निकाल दिया! उनका परिवार के नाम पे कोई था भी नहीं क्यूंकि वो भी अनाथ थी कर्नल साहब की तरह ही! सुना अभी चंद महीनों पहले ही उनका भी देहावसान हो गया है!कहानी सुनते-सुनते गोधूलि से रात हो गई! अचानक नज़र ऊपर गई तो तारे तो निकल आये थे मगर आसमान में नामो-निशान ही नहीं था,कि तभी अचानक मुझे याद आया कि आज तो अमावस्या है! कर्नल साहब की बस एक ही गलती थी कि जिस चाँद को वो कृष्ण पक्ष से शुक्ल पक्ष की तरफ़ ले जाना चाहते थे उसी चाँद ने उनकी दुनिया लील ली और देखिये आज अमावस्या और है!