श्रीरामचरितमानस- सुंदरकांड
श्रीरामचरितमानस- सुंदरकांड
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं।
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेघं विभुम्।।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं।
वन्देऽहं करूणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम।।
श्रीरामचरितमानस के पंचम सोपान सुंदरकांड में 60 दोहे हैं संपूर्ण विश्व में रामभक्त सुन्दरकाण्ड का नित्य पाठ करते हैं। गोस्वामी जी ने मंगलाचरण में भगवान राम की महिमा इस प्रकार की है शांत, सनातन, अप्रमेय, निष्पाप, मोक्षरूप, परम शांति देने वाले, ब्रह्मा, शंभु और शेष जी से निरंतर सेवित, वेदांत के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करूणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि, राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूं। गोस्वामी जी रघुनाथ जी से निर्भरा भक्ति की मांग करते हैं, फिर हनुमान जी महाराज की वंदना करते हैं। हनुमान जी का लंका प्रस्थान, सुरसा से भेंट, छायाग्राही दानवी का वध, लंकिनी पर मुष्ठिका का प्रहार, हनुमान- सीता संवाद, अशोक वाटिका में मां सीता का दर्शन,सीता-त्रिजटा संवाद, हनुमान सीता संवाद, राम की बानरी सेना का समुद्र के उस पार आने की सीता जी को सूचना देना, लंकादहन, हनुमान का चूड़ामणि के साथ लौटना, राम हनुमान संवाद, विभीषण का रावण द्वारा अपमान, विभीषण का राम की शरण में आना, रावण दूत शुक का प्रसंग, शुक द्वारा लक्ष्मण के पत्र का रावण के पास पहुंचना,समुद्र पर राम का क्रोध आदि प्रसंगों को समाविष्ट किया गया है और अंत में प्रभु श्रीराम के गुणगान का माहात्म्य विवेचन किया गया है।
सकल सुमंगल दायक, रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान।।