J P Raghuwanshi

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श्रीरामचरितमानस-अयोध्याकाण्ड

श्रीरामचरितमानस-अयोध्याकाण्ड

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नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।

पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।


श्रीगुरू चरन सरोज रज निज मनु मुकुरू सुधारि।

बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।


श्रीरामचरितमानस के द्वितीय सोपान अयोध्या कांड में मंगलाचरण के पश्चात राम के राज्याभिषेक का प्रस्ताव, राज्याभिषेक की तैयारी, मां सरस्वती की प्रेरणा से मन्थरा की ईर्ष्या, कैकई-मन्थरा वार्तालाप, कैकयी अम्बा द्वारा महाराज दशरथ से वरदान मांगना, श्री लक्ष्मण और मां सीता के साथ प्रभु राम का वन गमन, राम जी का श्रृंगवेरपुर पहुंचना, राम केवट संवाद, प्रयागराज में भारद्वाज-राम संवाद, वाल्मीकि मिलन, महाराज दशरथ की मृत्यु, श्रीभरत का चित्रकूट आगमन, चित्रकूट सभा, श्रीभरत का अयोध्या लौटना, अयोध्या की राज्य सिंहासन पर प्रभु राम की चरण पादुका की प्रतिष्ठा, श्रीभरत का नन्दिग्राम निवास जैसे प्रसंगों पर विस्तार से चर्चा की गई है और सोपान के अन्त में श्री भरत के उज्जवल चरित्र के श्रवण की महिमा का गान किया गया है।


सिय राम प्रेम पियूष पूरन होत जनमु न भरत को।

मुनि मन अगम जम नियम सम दम बिषम ब्रत आचरत को।।

दुख दाह दारिद दंभ दूषन सुजस मिस अपहरत को।

कलिकाल तुलसी से सठन्हि हठि राम सनमुख करत को।। 


भरत चरित करि नेमु तुलसी जो सादर सुनहिं।

सीय राम पद पेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।



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