रामचरितमानस- बालकांड
रामचरितमानस- बालकांड
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं कव्चिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति।।
श्री रामचरितमानस में सात काण्ड हैं। प्रत्येक काण्ड का आरंभ महाकाव्य की रीति के अनुसार मंगलाचरण से किया गया हैं। गोस्वामी जी का मंगलाचरण भी अद्वितीय व विलक्षण हैं। वे रामकथा का अपने को रचनाकार नहीं मानते वे स्वयं कहते हैं " संभु प्रसाद सुमति हिय हुलसी। रामचरितमानस कवि तुलसी।।"
बालकांड के आरंभ में बुद्धि की देवी मां सरस्वती, विघ्न विनाशक भगवान गणेश, मां भगवती पार्वती, भगवान शंकर, आदि कवि वाल्मीकि जी महाराज, हनुमानजी महाराज, रामबल्लभा मां सीता जी, ब्रम्हा, विष्णु, महेश, वानर, भालू, असुर और अंत में अनन्तकोटि ब्रम्हांड नायक सर्वशक्तिमान अकारण ही करूणा वरूणालय भगवान श्रीराम की स्तुति की गई है।इसके अनंतर भाषा में स्वान्तः सुखाय रघुनाथ गाथा लिखने की घोषणा की गई है। तत्पश्चात्, गुरूवंदना, ब्राम्हण संत वंदना, खल वंदना, रामसीयमय जगत की वंदना, रामभक्ति से प्रेरित कविता की महिमा, राम नाम की महिमा, मानस-माहात्म, याज्ञवल्क्य-भारद्वाज सम्वाद, सती का भ्रम, शिव द्वारा सती का त्याग, सतीदाह, पार्वती जन्म, शिव को पति रूप में पाने के लिए पार्वती का घोर तप, काम दहन, शिव पार्वती विवाह, नारद मोह, मनु शतरूपा की कथा, राम जन्म, विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा, अहिल्या उद्धार, सीता स्वयंवर, धनुर्भन्ग, परशुराम संवाद, सीता राम विवाह जैसे प्रसंगों का आख्यान किया गया है। अंत में राम चरित्र की महिमा का गुणानुवाद करने और सुनने के महात्म्य को रेखांकित किया गया हैं।
निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसी कह्यो।
रघुवीर चरित अपार बारिधि पारू कबि कौनें दह्यो।।
उपवीन ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं।
बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्वदा सुखु पावहीं।।
सिय रघुवीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुं सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।