रामचरितमानस की उपादेयता
रामचरितमानस की उपादेयता
रामचरितमानस में निरूपित रामकथा का स्रोत कोई एक ग्रंथ नहीं है। यह नाना पुराण निगमागम सम्मत रामकथा है। 'मानस' की कथा पर वाल्मीकि रामायण, आध्यात्म रामायण, श्रीमद्भागवत, प्रसन्नराघव नाटक, हनुमन्नाटक और भगवद्गीता का प्रभाव स्पष्टत: लक्षित होता है। इन स्रोतों के अतिरिक्त गोस्वामी जी की मौलिक उद्भावनायें जिन्हें वे भगवान शंकर का प्रसाद मानते हैं। विभिन्न स्रोतों के युग सापेक्ष मूल्यवान संदर्भों और मौलिक उद्भावनाओं के समन्वित रूप से 'मानस' की राम कथा का ताना-बाना तैयार किया गया है। घटनाओं का नियोजन, चरित्रों का विकास, व्यापक जीवनानुभूति, मानवीय संसक्ति और प्रभावी अभिव्यक्ति कौशल के कारण यह कृति भारतीय साहित्य का गौरव बन गयी है।
सूर सूर तुलसी शशि उड़गन केशवदास।
अब के कवि खद्दोत सम, जहां-तहां करत प्रकाश।।