श्रीरामचरितमानस-अरण्यकाण्ड🌸
श्रीरामचरितमानस-अरण्यकाण्ड🌸
मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमान्ददं।
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।।
मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं।
वन्दे ब्रह्मकुलं कलङ्कशमनं श्रीरामभूपप्रियम्।।
उमा राम गुन गूढ़ पंडित मुनि पावहिं बिरति।
पावहिं मोह बिमूढ़ जे हरि बिमुख न धर्म रति।।
श्रीरामचरितमानस के तृतीय सोपान अरण्यकांड में मंगलाचरण के बाद देवराज इंद्र के पुत्र जयंत की कथा, अत्रि मिलन, सीता अनुसूया संवाद, विराध वध, राम जी का मुनियों से मिलना, प्रभु राम की प्रतिज्ञा, गीधराज जटायु से मित्रता, पंचवटी निवास, सुर्पणखा प्रकरण, सीता जी का अग्नि प्रवेश, मारीच वध, सीता हरण, कवन्ध उद्धार, शबरी राम मिलन, नवधाभक्ति, शबरी उद्धार, राम-नारद संवाद और अन्त में संतों के लक्षणों का विस्तृत विवेचन, सत्संग की महिमा का विशद वर्णन---
रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग।
राम भगति दृढ़ पावहिं बिनु बिराग जप जोग।।
दीप सिखा सम जुबति तन, मन, जनि होसि पतंग।
भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग।।