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Priyanka Gupta

Inspirational Others

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Priyanka Gupta

Inspirational Others

श्रेय

श्रेय

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मुझे यात्रा करने का बहुत शौक है। यात्रा करने से हमारे कई पूर्वाग्रह समाप्त होते हैं और साथ ही कई प्रकार की रूढ़ धारणाएं जो, गाहे बगाहे हमारे दिल दिमाग में घर कर जाती हैं, वे भी दूर होती हैं। यात्रा के लाभों पर तो हम फिर कभी भी चर्चा कर ही लेंगे।

अपने शौक के कारण मैं यात्रा पर जाने के बहाने ढूंढ़ती रहती हूँ। इसलिए मेरे ऑफिस में भी कभी काम से बाहर जाने का अवसर मिलता है तो मैं नहीं छोड़ती हूँ। ऐसे ही एक बार मुझे ऑफिस के काम से पूरे तीन महीने के लिए कहीं बाहर जाना पड़ा। तीन महीने एक लम्बी अवधि थी तो, बीच में एक वीकेंड के लिए मेरे पति और उनके कुछ दोस्तों ने अपने परिवार के साथ मेरे शहर, जहाँ पर मैं कुछ दिन के लिए बस गयी थी घूमने आने का निर्णय लिया।

हम सबने एक सेल्फ ड्रिवेन टैक्सी शहर घूमने के लिए कर ली। यह तय किया गया कि ड्राइव मेरे पति रितेश ही करेंगे। हम शहर की कई जगहों पर घूमे। सब सिटी टूर का बहुत आनंद ले रहे थे। शहर एक दम हरा भरा और साफ़ सुथरा था। अभी तक का अनुभव सबके लिए बढ़िया था।

हम शहर के एक प्राचीन स्मारक को देखने के बाद पार्किंग में खड़े थे। हम लोग गाड़ी बैठ गए। रितेश भी ड्राइविंग सीट पर बैठ गए और गाड़ी स्टार्ट की। जैसे ही हम रवाना होने वाले थे, रितेश का कोई महत्वपूर्ण फ़ोन कॉल आ गयी। मैं ड्राइविंग करते हुए बात करना बिलकुल अल्लोव नहीं करती हूँ। इसलिए रितेश ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए ही फ़ोन पर बात करने लगे। जल्दी जल्दी में रितेश ने अपना पर्स खिड़की के नीचे बनी हुई जगह पर रख दिया। सामान्यतया रितेश अपना पर्स दोनों सीट्स के बीच बनी हुई जगह पर रखते हैं।


रितेश फ़ोन पर व्यस्त थे, हम सब अपनी बातों में व्यस्त। गाड़ी में बैठे बैठे थोड़ी गर्मी सी लगने लगी, तो रितेश ने अपनी साइड वाला गेट थोड़ा सा खोल लिया। तब ही थोड़ी देर में 2 -4 भिखारी भीख मांगने के लिए आ गए। रितेश फ़ोन पर व्यस्त थे, हम लोग भिखारियों की सुनने में और उन्हें भगाने में। थोड़ी देर में भिखारी चले गए और रितेश की कॉल भी कम्प्लीट हो गयी और हम रवाना हो गए।

थोड़ी दूर जाके पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरवाया। पेमेंट करने के लिए रितेश अपना पर्स निकलने लगे। लेकिन रितेश का पर्स वहां नहीं था। पूरी गाड़ी में अच्छे से ढूंढा, लेकिन पर्स नदारद था। खैर आजकल पर्स में कैश तो रखते नहीं हैं, लेकिन सारे कार्ड्स जैसे ATM, क्रेडिट आदि थे। कार्ड्स को तुरंत ब्लॉक करवाया।


अब सब अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रहे थे कि आखिर रितेश का पर्स गया कहाँ ? हम दोबारा पार्किंग स्थल पर गए, वहां भी ढूंढा, लेकिन पर्स नहीं मिला। तब वहां खड़े स्ट्रीट वेंडर्स ने बताया कि यहाँ पर कुछ लोग पॉकेटमारी, चैन खींचना आदि असामाजिक गतिविधियों में लिप्त हैं।


अब हम सबको समझ आया था कि, वो लोग भिखारी नहीं थे,बल्कि पॉकेटमार थे। बातों में लगाकर रितेश का पर्स उड़ा ले गए। रितेश अपना licesnse भी पर्स में ही रखते थे। लाइसेंस दोबारा बनवाना टेढ़ी खीर है ,तो इसलिए सबका mood थोड़ा off हो गया था।

वीकेंड के बाद सब लोग रितेश समेत वापस अपने घर चले गए और मैं अकेली वहां रह गयी। सोमवार को मैं अपने ऑफिस पहुंची। तब रितेश का फ़ोन आया और उन्होंने बताया कि ," मेरा पर्स पार्किंग के पास किसी को मिला। मेरे कार्ड पर लिखे फ़ोन नंबर को देखकर मुझे फ़ोन किया था। वह सज्जन तो घर के पते पर पर्स कूरियर करने को बोल रहे थे। लेकिन मैंने उन्हें बताया कि मेरी पत्नी अभी वहां उसी शहर में है। वो आपसे आकर ले लेगी। तुम्हारा फ़ोन नंबर भी दे। तुम्हें भी उनका नंबर मैसेज कर देता हूँ। पर्स में से केवल नकद ही गायब है, बाकी सब उसमें है। "


पॉकेटमार ने पैसे निकलकर पर्स वहीं फेंक दिया होगा और उन सज्जन ने पर्स में जरूरी कार्ड ,लाइसेंस आदि देखकर रितेश को फ़ोन किया होगा। मैंने उन सज्जन को फ़ोन मिलाया और उनसे उनका एड्रेस पूछा ताकि मैं उनसे मिलकर उन्हें धन्यवाद भी दे दूँगी। रितेश ने यह भी कहा था कि ,"बेचारा निम्न वर्ग का है तो तुम उसके 1000 -500 रुपये भी दे देना।


लेकिन उन सज्जन की बात सुनकर मैं निःशब्द हो गयी ,उन्होंने कहा ,"मैडम ,आप यहाँ पर नयी हो, हमारी मेहमान हो, आप अपना पता बता दीजिये ,मैं ही आपको पर्स दे जाऊँगा। " वह सज्जन मेरे ऑफिस आये। मैंने उनके लिए एक उपहार मंगवा लिया था, सिर्फ उनके प्रति कृतज्ञता दर्शाने के लिए। सोचा था कि ,आएंगे तो कम से कम उन्हें एक कप चाय पिलाऊंगी और उपहार दूँगी। लेकिन वह सज्जन व्यक्ति रितेश का पर्स मेरे क्लास 4 को ही पकड़ा कर चले गए। मैं उनका चेहरा भी नहीं देख पायी। रितेश के दिए हुए नंबर पर फ़ोन किया तो पता चला कि उन्होंने किसी दूसरे के फ़ोन से फ़ोन किया था और उस दिन अपनी दुकान न लगाकर वह उसी व्यक्ति साथ बैठे रहे थे ,ताकि मुझसे बात करके पर्स सौंप सके।

दुनिया में आज भी इतने अच्छे लोग मौजूद हैं, अच्छाई को दिखाना तो दूर श्रेय भी लेना नहीं चाहते। आज जब हम कोरोना संकट में अपनी छोटी सी मदद को भी दूसरों पर बड़े एहसान के रूप में दिखा रहे हैं ,वहां उन सज्जन के इतने बड़े एहसान को याद कर दिल भर आता है।



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