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Ankita Bhadouriya

Inspirational Others

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Ankita Bhadouriya

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श्रेष्ठ कौन?

श्रेष्ठ कौन?

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सेन्ट्रल लाइब्रेरी के साहित्य वर्ग में बेहद गहमा-गहमी का माहौल था। एक लाइन में रखी विभिन्न भाषाओं में लिखी किताबों में इस बात को लेकर बहस चल रही थी कि कौन सी भाषा अधिक महान है।

सबसे पहले सुसंस्कारी संस्कृत बोली - " मैं विश्व की सबसे प्राचीन भाषा हूँ, मैं देववाणी कहलाती हूँ। विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ 4 वेद, 18 पुराण, 108 उपनिषद और महा पूजनीय रामायण, महाभारत और गीता का ज्ञान भी सर्वप्रथम मुख्यतः मुझमें ही लिखा गया था। वेदव्यास, वाल्मीकि, भवभूति और कालीदास जैसे महान कवि मेरे उपासक हैं। मैं ही समस्त भाषाओं की जननी हूँ, अतः तुम सब में मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूँ।"

तमिल साहित्य वाली किताब बोली - " अरे! संस्कृत बहन, बात तो आपकी सही है। वैसे अगर उत्पत्ति की बात की जाये तो उम्र में मैं आपसे थोड़ी ही छोटी हूँ। आप उत्तर भारत की भाषाओं की जननी हैं तो मैं भी दक्षिण की रानी हूँ। चोल, चेर और पांड्य शासकों के काल में दरबारी भाषा का गौरव मुझे प्राप्त है। और बहन सच्चाई तो ये है कि आपको बोलने और समझने वालों की संख्या हर दिन घटती जा रही है लेकिन मेरी ख्याती आज भी फैलती जा रही है। सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भारतीय भाषाओं में मैं तीसरे स्थान पर आती हूँ। भारत के अलावा और भी कई देशों में मेरे प्रशंसक हैं। रही बात साहित्यिक खजाने की तो कंबन रचित रामायण, तिरुवल्लुवर का नीति शास्त्र थिरूकुरल और प्रसिद्ध संगम साहित्य मेरे उत्कर्ष की गौरव गाथा ही तो हैं। तो श्रेष्ठता में तो सबसे आगे मैं ही हूँ।"

संस्कृत और तमिल भाषा की किताबों की बात सुनकर नर्म ज़ुबाँ वाली उर्दू से भी चुप ना रहा गया। उर्दू बेहद नफ़ासत से बोली - "ठीक है, ठीक है, इतिहास की नज़र में आप सब हमसे बड़ी हैं, लेकिन बड़े होने से ही तो कोई बेहतर नहीं बन जाता ना, आपा। सबसे बेहतर भाषा तो मैं हूँ, मुझमें नवाबी तहजीब है, गज़लों में नज़ाकत, हर्फ़ों में शराफत है। भाषाओं में सबसे ज्यादा सलीका मेरी ही जुबाँ में है। मिर्जा गालिब के शेर, हसन मंटो के किस्से और साहिर लुधियावनी की नज़्में आज भी आशिकों के लबों पर रहते हैं। मैं मोहब्बत की बोली हूँ, मैं ही सबसे बेहतर हूँ।"

अन्य सभी भारतीय भाषायें भी अपने-अपने बारे में बताकर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रही थीं कि तभी एक घमण्ड़ी ठहाका पूरी लाईब्रेरी में गूँज उठा। किताबों ने आवाज की दिशा में नज़रें उठाकर देखा वो आवाज अंग्रेजी साहित्य वाली अलमारी से आ रही थी।

गर्व में डूबी अंग्रेजी बोली - " तुम सब कुएँ के मेंढक की तरह सीमित रहकर ही सोच रही हो कि दुनिया बस इतनी सी है। लेकिन मुझसे पूछो दुनिया कितनी बड़ी है, क्योंकि मैं विश्व के हर कोने में बोली जाने वाली एकमात्र भाषा हूँ। कोई भी नौकरी हो, परीक्षा हो पहली माँग मेरी होती है। धनाढ्य और उच्च वर्ग की भाषा मैं हूँ। मुझे बोलने वाला अँगूठा छाप व्यक्ति भी ज्यादा पढ़ा-लिखा माना जाता है। आने वाले समय में तुम्हारा अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा, लोग सिर्फ मुझे बोलना-सुनना पसंद करेंगे। सोचो जरा, तुम्हारे भारत में ही तुमसे ज्यादा मैं बोली जाती हूँ। मैं समाज में मुझे बोलने व्यक्ति को श्रेष्ठता प्रदान करने की क्षमता रखती हूँ। अतः मैं ही तुम सब में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ हूँ।"

इतना कहते ही अंग्रेजी भाषा की सभी किताबें जोरदार ठहाका लगाकर हँसने लगीं। और भारतीय भाषाओं वाली किताबें अपने अस्तित्व को लेकर चिंता में डूब गईं।

तभी लाइब्रेरी के दूसरे कोने से किसी के मधुर सुरों में गुनगुनाने की आवाज सुनाई दी। आवाज हिन्दी साहित्य वाली अलमारी से आ थी। अन्य भारतीय भाषायें हिन्दी से फुसफुसाते हुये बोलीं - "बहन, तुम्हें डर नहीं कि आने वाले समय में लोग हमें भूलकर अंग्रेजी ही बोलेंगे। तुमने अंग्रेजी की बात नहीं सुनी क्या? तुम चाहकर भी अपनी श्रेष्ठता साबित नहीं कर सकतीं और इसी कारण हमारे मिटने पर खुशियाँ मना रही हो?"

हिन्दी मुस्कुराई, फिर मधुर आवाज में गुनगुनाते हुये बोली -


बड़े बड़ाई ना करें , बड़े न बोले बोल ।

‘रहिमन’ हीरा कब कहै, लाख टका मेरा मोल ॥


"निश्चित ही आप सभी श्रेष्ठ हैं। मेरा तो बस छोटा-सा परिचय है, मैं गूढ़ नहीं सरल हूँ, देवभाषा नहीं धरती के लोगों की प्रिय भाषा हूँ, दरबारों की नहीं आमजन की बोली हूँ। अंग्रेजी की तरह धनाढ्य वर्ग की नहीं सबकी हूँ क्योंकि मेरी लोकप्रियता किसी वर्ग विशेष तक सीमित नहीं है, अमीर-गरीब सब मुझे प्रिय हैं। मैं बनावटी नहीं एकदम सच्ची भावनाओं वाली भाषा हूँ। भारतीय माँओं की फिक्र में मैं हूँ, चोट लगने पर बच्चों के दर्द में मैं हूँ, नेताओं के वादों में मैं हूँ, युवाओं के फौलादी इरादों में मैं हूँ, किसानों के संघर्ष और सैनिकों के बलिदान में मैं हूँ, मजदूरों की मेहनत और विद्यार्थियों के सपनों में मैं हूँ, प्रेमियों के विरह और श्रृंगार में भी बस मैं ही हूँ।


मेरी सबसे बड़ी खूबी ये है कि मैं सभी को सम्मान देती हूँ, दूसरी भाषाओं के शब्द मैं अपने शब्दकोष में ऐसे संजो लेती हूँ जैसे वो हमेशा से मेरे ही थे। अनपढ़ और ग्रामीण परिवेश से आये देशज शब्द भी मुझमें आकर आदर पा जाते हैं। मेरा साहित्य सागर जितना विशाल है, जिसमें मीरा की तड़प है, सूरदास का समर्पण है, सामाजिक कुरीतियों पर कबीर और रहीम के तंज हैं। प्रेमचंद, गुलेरी, निराला, दिनकर, सुभद्रा कुमारी जैसे महान लेखक और कवियों ने मुझे सजाया है। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक समस्त भारत को एक डोर में पिरोने की कोशिश में हूँ। मैं तुम सबसे अधिक श्रेष्ठ बनने की प्रतिस्पर्धा में नहीं हूँ, मैं तो बस हर दिन खुद में ही श्रेष्ठ बनने की कोशिश में हूँ। "

इतना कहकर हिन्दी फिर से मधुर आवाज में गुनगुनाने लगी, हिन्दी भाषा की आवाज में अभी भी गर्व या द्वेष नहीं था, बस अपने अस्तित्व पर संतोष का भाव था।

**********

बाकी सभी भाषायें अब समझ चुकीं थीं कि श्रेष्ठता का पैमाना क्या होता है और कौन-सी भाषा सच में श्रेष्ठ है। अब लाइब्रेरी में बहस नहीं हो रही थी, चारों तरफ सिर्फ हिन्दी की मद्धिम ध्वनि गूँज रही थी, जिसमें वो कबीरा का भजन गुनगुना रही थी -


जो सुख पाऊं राम भजन में,

जो सुख पाऊं राम भजन में,

सो सुख नाहीं अमीरी में,

मन लागो मेरो यार फकीरी में........।


समाप्त



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