श्राद्ध
श्राद्ध
पंखुड़ी जब सो कर उठी तो उसकी नाक में खुशबू का झोंका आया सभी हलवे की खुशबू तो कभी खीर की, कभी कचौड़ियों की महक तो कभी पूरियों की। आंख मलते हुए उठी और बोली- मांआज क्या त्यौहार है इतनी सारी चीजें क्यों बन रही है ?
मां बोली आज तुम्हारे दादा जी का श्राद्ध है बहुत से लोग खाना खाने आएंगे। पहले ब्राह्मण भोजन फिर कन्या भोजन होगा। उनकी पसंद की चीजें बनी हैं।
बाल मन सोचने लगा जब दादा जी जिंदा थे तब वह इन चीचों को खाने के लिए तरस जाते थे। समय पर नहीं खाना नहीं दिया जाता था। आज उनके मरने के बाद यह कार्यक्रम हो रहा है। अपने बड़े भाई से कहा तो उन्होंने कहा पापा ये कार्यक्रम नहीं होगा।
ये पकवान हम जरूरतमंदों में बांट देंगे। इंसान के जीवित रहते उसे खिलाकर तृप्त करना चाहिए मरने के बाद लड्डू बंटवाए तो क्या ?