शराबी
शराबी
लॉकडाउन के बाद यह मेरी पहली बस यात्रा थी। चारों ओर कोरोना का कहर अब थोड़ा कम हो गया था। मैं घर से कॉलेज के लिए निकला था। कॉलेज में उस दिन 5 वें सेमिस्टर की भर्ती चल रही थी।
मैं बस स्टैण्ड पर खड़ा था। 72 नंबर (दासनगर से पार्क सर्कस) रूट की बस आई और मैं उस पर चढ़ गया। बस ज्यादा भीड़ नहीं थी क्योंकि बस सीधे बस अड्डे से आई थी।
मैंने अपना फोन निकाला और अपने ब्लॉग पर कविताएं लिखने लगा। लगभग 20 मिनट बीत जाने पर बस हावड़ा मैदान (बस स्टॉपेज) आ पहुंची थी। हावड़ा मैदान से एक व्यक्ति बस में चढ़ा। उसकी आंखें लाल, बाल हल्के बिखरे हुए, एक हाथ में गमछा और पीठ पर वह बैग लादे हुए था। हल्के पैरों से लड़खड़ाते हुए वह मेरे सामने वाले सीट तक आ पहुंचा था। उसके बॉडी लैंग्वेज से वह नशें में लग रहा था।
बस चालू हुई और 2 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि इतने में उस व्यक्ति ने चिल्लाकर कुछ कहा। मेरा पूरा ध्यान कविता से हटकर अब उस पर केंद्रित हो गया था।
वह नशें की हालत में बोलना शुरू किया।
ये पश्चिम बंगाल के लोग, बहुत बुरे हैं ......
यहां सब के सब ग़लत लोग हैं......
यहां मैं पिछले दो घंटों से खड़ा हूं, कोई....; रास्ता नहीं बताता है....
सब के सब बुरे हैं।
इतने में ही लास्ट सीट में बैठा व्यक्ति उत्तेजित हो गया।
ए... सुनो। तुम पश्चिम बंगाल में रहता है और यहां के लोगों को ही गाली देता है। तुम बिहारी लोग न ऐसा ही है।
अब नशें में धूत व्यक्ति ने उस व्यक्ति को गालियां दे दी। वह और भड़क उठा। उसे एक दूसरे व्यक्ति ने शांत कराने की कोशिश की। अब वह व्यक्ति शांत हो गया था।
अब वह नशें में धूत व्यक्ति अनायास ही बोले जा रहा था।
यहां से मुझे सियालदाह जाना है और यहां के लोग मुझे दो घंटे से गलत रास्ता बता रहे हैं।
यहां के लोग बहुत बुरे हैं।
यह कईयों को बकवास लग रहा था। लेकिन मैं उसकी बातों को समझना चाहता था। उसकी बातों को सुनकर मैं मन ही मन सोच रहा था।
की क्या यहां सच में ऐसे लोग रहते हैं ?
मेरा तो जन्म ही पश्चिम बंगाल में हुआ है लेकिन मैंने कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया ?
क्या यह व्यक्ति झूठ बोल रहा है ?
नहीं, मुझे नहीं लगता। लेकिन एक दो ऐसे हो ही सकतें हैं जो गलत रास्ता बता दें। इसलिए शायद ये परेशान हो गए हैं।
इतने में बस के पहली सीट से आवाज़ आई।
कौन चढ़ाया है ये इस शराबी को बस में।
कंडक्टर कहां है।
अरे कंडक्टर, अरे...; इसको बस से नीचे उतारो।
बस कंडक्टर गेट से तुरंत भीतर की ओर आया और उस शराबी को चेतावनी देने लगा।
ये....! एक दम चुपचाप नीचे बैठ जा। नहीं तो बस से नीचे उतार दूंगा।
-(चिल्लाकर) बैठ चुपचाप ..!
वह शराबी नीचे बैठ गया। तभी एक व्यक्ति ने पूछा -"घर कहां है आपका ?"
घर तो बलिया में है। लेकिन मुझे जाना है सियालदाह।
दादा (भैया), ये बस सियालदाह जाएगी न ?
इतने में वह व्यक्ति बोलने लगा
नहीं ये बस सियालदाह नहीं जाएगी। बलिया जाएगी, बलिया...।
हा..., हां.....हा..!
पूरे बस में सभी हंस रहे थे।
तब मैंने उस व्यक्ति से कहा -
चाचा, ये बस सियालदाह जाएगी। मैं भी सियालदाह ही जाऊंगा। आप चुपचाप से बैठिए। सियालदाह आने पर मैं आपको बता दूंगा।
ख़ुश रहो बेटा , उनके मुंह से निकला यह शब्द एक सुखद अनुभव था।
लेकिन अगले ही क्षण बस के सामने वाली सीट से उस शराबी चाचा को बस से उतारने की गतिविधियां तीव्र हो गई।
अरे उतारो इसे, पूरा यहां तक बदबू आ रही है।
अब क्या था, इतना सुनते ही न जाने उस बस के कंडक्टर में इतनी फुर्ती कहां से आ गई। वह उस शराबी चाचा को घसीटने लगे और चलती बस से उन्हें घसीटकर नीचे उतार दिया।
यद्यपि बस की रफ्तार इतनी कम थी। जिससे कोई भी चलती बस से आसानी से उतर सकता था।
लेकिन उस बस कंडक्टर ने ऐसा क्यों किया ?
क्या उसे ऐसा करना चाहिए था ?
पूरे बस में किसी ने भी उसे ऐसा करने से क्यों नहीं रोका ?
और इतना सब होने के बाद भी मैं चुप क्यों था ?
इस बात का क्षोभ मुझे आज भी है।