Ranjan Shaw

Others

3  

Ranjan Shaw

Others

मैं हिन्दी नहीं जानता...

मैं हिन्दी नहीं जानता...

3 mins
356


एक दिन जब मैं कलकत्ता में बाजार करने के लिए गया तो लोग मुझे हीन भाव से देखने लगे । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये लोग मुझे ऐसे क्यूं देख रहे हैं । मैंने कारण जानने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे बहिरागत और हिंदी के बच्चे जैसे अपशब्दों से मेरा अपमान करना आरंभ कर दिया । मुझे क्रोध तो आया लेकिन मैं चुप रह गया ।

मेरे मन में कई सवाल तो आए पर उनका जवाब देने वाला वहां कोई नहीं था । मैं उस दिन चुपचाप बाजार से घर वापस आ गया । लेकिन मेरे मन में यह सवाल खटकती रही की उन्होंने मुझे बहिरागत (प्रवासी) और हिंदी के बच्चे क्यूं कहा ।

उस घटना के हुए अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ था कि मैंने बाजार की एक दुकान पर भीड़ जमी हुई देखी । लोग कह रहे थे हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है इसलिए हिंदी में दुकान के ऊपर साइन बोर्ड लिखना पश्चिम बंगाल में स्वीकार्य नहीं है । आप लोग बहिरागत हैं, आपको पश्चिम बंगाल में व्यापार करना है तो आपको बंगला में दुकान का साइन बोर्ड लिखना होगा ।


भारत में २२ भाषाओं को बोलने और पढ़ने-लिखने की स्वीकृति मिली है । बाकी सारी बोलियां हैं । हिंदी एक भाषा है और बंगला भी एक भाषा है । भाषा का मतलब किसी पर दबाव बनाना नहीं होता है । भाषा तो सिर्फ संवाद करने का साधन मात्र है । चाहे वह संवाद बोल कर किया जाए या लिखकर.....।


अगर उस दुकानदार का साइन बोर्ड हिंदी में लिखा है तो यह निश्चित है कि वहां रहने वाले ज्यादातर लोग हिंदी बोलते होंगे जिससे वह आसानी से संवाद कर सकता है । वह अंग्रेजी में भी अपनी साइन बोर्ड लिख सकता है और बंगला में भी, यह उसकी आजादी है । भारत के प्रत्येक राज्य में त्रिभाषी कानून है । जिसके अंतर्गत प्रत्येक राज्य के निवासी हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ उस राज्य के क्षेत्रिय भाषा में किसी भी दफ्तरी कामकाज को कर सकता है ।


यह जो भाषाओं के आधार पर लोगों को बांटने की आधारशिला रखी जा रही क्या यह सही है । मैंने जब यह सवाल अपने साथी मित्र से कहा तो उनका उत्तर स्पष्ट था कि वे भाषा के आधार पर विभाजन चाहते हैं । पश्चिम बंगाल बंगला भाषा-भाषी लोगों का क्षेत्र है यहां अन्य भाषा के लिए कोई जगह नहीं है ।


सुना था चिंगारी को आग बनते देरी नहीं लगती और आज देख भी लिया । मैंने जब छानबीन करना चालू किया तो मुझे पता चला कि कुछ लोगों ने मिलकर एक संस्था बनाई है जो बंगला भाषा-भाषी लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रही है । उनका उद्देश्य था बंगालियों को बंगला बोलने पर शर्म नहीं आए । लेकिन क्या उनका लक्ष्य सही दिशा में है ।


अब वह दुकानदार अपनी दुकान बंद करके इस राज्य को छोड़कर चला गया और जो जा नहीं सकते थे उन्होंने बंगला में लिखना और बोलना आरंभ कर दिया है । उस दुकान में काम करने वाले कर्मचारी बेरोजगार हो गए । इस प्रकार की घटनाएं अब हर रोज ही हो रही है बंगाल में । लेकिन अभी भी इस प्रकार की घटनाओं का ना ही कोई हिसाब है और ना ही कोई जवाब है ।


जो रह रहें हैं बंगाल में अब उनसे पूछो तो कहते हैं मैं हिन्दी नहीं जानता....................!


------------------------------

पूरी घटना कई सारी घटनाओं का सारांश है ।


Rate this content
Log in